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वैज्ञानिक समाज अब भारतीय तथा यूरोपीय संस्कृतियों के बहुत से समान या समरूप अवयवों को स्वीकार करने लगा है। इसकी शुरुआत [[व्याकरण|वैयाकरणों]] ने की जब उन्हें भारतीय एवं यूरोपीय भाषाओं में बहुत कुछ साम्य के दर्शन हुए। इसके उपरान्त [[भारतविद्या]] के अध्येताओं (इण्डोलोजिस्ट) ने पाया कि यह साम्य [[दर्शनशास्त्र|दर्शन]], [[मिथक]] और [[विज्ञान]] सहित अनेकानेक क्षेत्रों में है। इसके पूर्व यह माना जाता था कि [[भारत]] और [[यूरोप]] के बीच सम्पर्क बहुत नया (भारत के उपनिवेशीकरण से शुरू होकर) है। किन्तु [[पुरातत्वशास्त्र|पुरातत्व]] और [[मानविकी]] में नये अनुसंधानों ने यह साबित कर दिया है कि भारत और यूरोप के सम्पर्क अनादिकाल से आरम्भ होकर मध्ययुग होते हुए आधुनिक युग में भी रहा है। | वैज्ञानिक समाज अब भारतीय तथा यूरोपीय संस्कृतियों के बहुत से समान या समरूप अवयवों को स्वीकार करने लगा है। इसकी शुरुआत [[व्याकरण|वैयाकरणों]] ने की जब उन्हें भारतीय एवं यूरोपीय भाषाओं में बहुत कुछ साम्य के दर्शन हुए। इसके उपरान्त [[भारतविद्या]] के अध्येताओं (इण्डोलोजिस्ट) ने पाया कि यह साम्य [[दर्शनशास्त्र|दर्शन]], [[मिथक]] और [[विज्ञान]] सहित अनेकानेक क्षेत्रों में है। इसके पूर्व यह माना जाता था कि [[भारत]] और [[यूरोप]] के बीच सम्पर्क बहुत नया (भारत के उपनिवेशीकरण से शुरू होकर) है। किन्तु [[पुरातत्वशास्त्र|पुरातत्व]] और [[मानविकी]] में नये अनुसंधानों ने यह साबित कर दिया है कि भारत और यूरोप के सम्पर्क अनादिकाल से आरम्भ होकर मध्ययुग होते हुए आधुनिक युग में भी रहा है। | ||
००:३८, ९ अक्टूबर २०२४ के समय का अवतरण
वैज्ञानिक समाज अब भारतीय तथा यूरोपीय संस्कृतियों के बहुत से समान या समरूप अवयवों को स्वीकार करने लगा है। इसकी शुरुआत वैयाकरणों ने की जब उन्हें भारतीय एवं यूरोपीय भाषाओं में बहुत कुछ साम्य के दर्शन हुए। इसके उपरान्त भारतविद्या के अध्येताओं (इण्डोलोजिस्ट) ने पाया कि यह साम्य दर्शन, मिथक और विज्ञान सहित अनेकानेक क्षेत्रों में है। इसके पूर्व यह माना जाता था कि भारत और यूरोप के बीच सम्पर्क बहुत नया (भारत के उपनिवेशीकरण से शुरू होकर) है। किन्तु पुरातत्व और मानविकी में नये अनुसंधानों ने यह साबित कर दिया है कि भारत और यूरोप के सम्पर्क अनादिकाल से आरम्भ होकर मध्ययुग होते हुए आधुनिक युग में भी रहा है।