काका हाथरसी
साँचा:स्रोतहीन
साँचा:ज्ञानसन्दूक
| label1      = हाथरस, उत्तर प्रदेश, भारत
| data1       = प्रभुलाल गर्ग
साँचा:Birth date
हाथरस, उत्तर प्रदेश, भारत
| label2      = मौत
| data2       = साँचा:Death date and age
| label3      = मौत की वजह
| data3       = 
| data4       = 
| label4      = शरीर मिला
| label5      = समाधि
| class5      = label
| data5       = {{{resting_place}}}
| label6      = आवास
| class6      = label
| data6       = 
| label7      = राष्ट्रीयता
| data7       = 
| label8      = उपनाम
| class8      = उपनाम
| data8       = 
| label9 = जाति
| data9 = 
| label10 = नागरिकता
| data10 = 
| label11 = शिक्षा
| data11 = {{{शिक्षा}}}
| label12 = शिक्षा की जगह
| data12 = 
| label13 = पेशा
| class13 = भूमिका
| data13 = हास्य कवि
| label14 = कार्यकाल
| data14 = 
| label15 = संगठन
| data15 = 
| label16 = गृह-नगर
| data16 = 
| label17 = पदवी
| data17 = 
| label18 = वेतन
| data18 = 
| label19 = कुल दौलत
| data19 = 
| label20 = ऊंचाई
| data20 = 
| label21 = भार
| data21 = {{{भार}}}
| label22 = प्रसिद्धि का कारण
| data22 = 
| label23 = अवधि
| data23 = 
| label24 = पूर्वाधिकारी
| data24 = 
| label25 = उत्तराधिकारी
| data25 = 
| label26 = राजनैतिक पार्टी
| data26 = 
| label27 = बोर्ड सदस्यता
| data27 = 
| label28 = धर्म
| data28 = 
| label29 = जीवनसाथी
| data29 = 
| label30 = साथी
| data30 = 
| label31 = बच्चे
| data31 = 
| label32 = माता-पिता
| data32 = 
| label33 = संबंधी
| data33 = 
| label35 = कॉल-दस्तखत
| data35 = 
| label36 = आपराधिक मुकदमें
| data36 = 
| label37 = 
| data37 = साँचा:Br separated entries
| class38 = label
| label39 = पुरस्कार
| data39 = 
| data40 = 
| data41 = 
| data42 = 
}}
सन १९०६ में हाथरस में जन्मे काका हाथरसी (असली नाम: प्रभुलाल गर्ग) हिंदी हास्य कवि थे। उनकी शैली की छाप उनकी पीढ़ी के अन्य कवियों पर तो पड़ी ही, आज भी अनेक लेखक और व्यंग्य कवि काका की रचनाओं की शैली अपनाकर लाखों श्रोताओं और पाठकों का मनोरंजन कर रहे हैं।
 
  व्यंग्य-विधा एवं काका
व्यंग्य का मूल उद्देश्य लेकिन मनोरंजन नहीं बल्कि समाज में व्याप्त दोषों, कुरीतियों, भ्रष्टाचार और राजनीतिक कुशासन की ओर ध्यान आकृष्ट करना है। ताकि पाठक इनको पढ़कर बौखलाये और इनका समर्थन रोके। इस तरह से व्यंग्य लेखक सामाजिक दोषों के ख़िलाफ़ जनमत तैयार करता है और समाज सुधार की प्रक्रिया में एक अमूल्य सहयोग देता है। इस विधा के निपुण विद्वान थे काका हाथरसी, जिनकी पैनी नज़र छोटी से छोटी अव्यवस्थाओं को भी पकड़ लेती थी और बहुत ही गहरे कटाक्ष के साथ प्रस्तुत करती थी। उदाहरण के लिये देखिये अनुशासनहीनता और भ्रष्टाचार पर काका के दो व्यंग्य :
बिना टिकिट के ट्रेन में चले पुत्र बलवीर
जहाँ ‘मूड’ आया वहीं, खींच लई ज़ंजीर
खींच लई ज़ंजीर, बने गुंडों के नक्कू
पकड़ें टी.टी., गार्ड, उन्हें दिखलाते चक्कू
गुंडागर्दी, भ्रष्टाचार बढ़ा दिन-दूना
प्रजातंत्र की स्वतंत्रता का देख नमूना
या फिर:
राशन की दुकान पर, देख भयंकर भीर
‘क्यू’ में धक्का मारकर, पहुँच गये बलवीर
पहुँच गये बलवीर, ले लिया नंबर पहिला
खड़े रह गये निर्बल, बूढ़े, बच्चे, महिला
कहँ ‘काका' कवि, करके बंद धरम का काँटा
लाला बोले - भागो, खत्म हो गया आटा
या फिर:
‘काका’ वेटिंग रूम में फंसे देहरादून।
नींद न आई रात भर, मच्छर चूसे खून॥
मच्छर चूसे खून, देह घायल कर डाली।
हमें उड़ा ले ज़ाने की योजना बना डाली॥
किंतु बच गए कैसे, यह बतलाए तुमको।
नीचे खटमल जी ने पकड़ रखा था हमको ॥
हुई विकट रस्साकशी, थके नहीं रणधीर।
ऊपर मच्छर खींचते नीचे खटमल वीर॥
नीचे खटमल वीर, जान संकट में आई।
घिघियाए हम- “जै जै जै हनुमान गुसाईं॥
पंजाबी सरदार एक बोला चिल्लाके –
त्व्हाणूँ पजन करना होवे तो करो बाहर जाके॥
काका हाथरसी का अविस्मरणीय योगदान उनकी सदा याद दिलायेगा।
अतिरिक्त जानकारी एवं कवितायें
- संक्षिप्त जीवनी Hathras Online
- संक्षिप्त परिचय एवं कविताओं का संग्रह IndiaWorld on the Net
- संक्षिप्त परिचय एवं कुछ कवितायें Anubhuti Hindi
- काका हाथरसी की चुटकियां
- इंडिया वर्ल्ड ऑन दि नेट
- काका हाथरसी @ कविता कोश: हिन्दी कविताओं का अकूत भंडार