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}} फादर कामिल बुल्के (अंग्रेजी: Father Kamil Bulcke) (1 सितंबर 1909 – 17 अगस्त 1982) बेल्जियम से भारत आये एक मिशनरी थे। भारत आकर मृत्युपर्यंत हिंदी, तुलसी और वाल्मीकि के भक्त रहे। इन्हें साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा सन 1974 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया।[१]
प्रारंभिक जीवन
कामिल बुल्के का जन्म बेल्जियम के वेस्ट फ्लैंडर्स में नॉकके-हेइस्ट नगरपालिका (म्यूनीपीलिटी) के एक गांव रामस्केपेल में हुआ था।[२] इनके पिता का नाम अडोल्फ और माता का नाम मारिया बुल्के था। अभाव और संघर्ष भरे अपने बचपन के दिन बिताने के बाद बुल्के ने कई स्थानों पर पढ़ाई जारी रखी।[३]
बुल्के ने पहले से ही ल्यूवेन विश्वविद्यालय से सिविल इंजीनियरिंग में बीएससी डिग्री हासिल कर ली थी। 1930 में ये एक जेसुइट बन गए। [४]नीदरलैंड के वलकनबर्ग, (1932-34) में अपना दार्शनिक प्रशिक्षण करने के बाद, 1934 में ये भारत की ओर निकल गए और नवंबर 1936 में भारत, बंबई (अब मुम्बई) पहुंचे। दार्जिलिंग में एक संक्षिप्त प्रवास के बाद, उन्होंने गुमला (वर्तमान झारखंड) में पांच साल तक गणित पढ़ाया। वहीं पर हिंदी, ब्रजभाषा व अवधी सीखी। 1938 में, सीतागढ़/हजारीबाग में पंडित बदरीदत्त शास्त्री से हिंदी और संस्कृत सीखा। यह यहीं था कि इन्होंने हिंदी सीखने के लिए अपना आजीवन जुनून विकसित किया, जैसा कि बाद में याद किया:
इन्होंने ब्रह्मवैज्ञानिक प्रशिक्षण (1939-42) भारत के कुर्सियॉन्ग से किया,1940 में हिंदी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग से विशारद की परीक्षा पास की। जिसके दौरान इन्हें पुजारी की उपाधि दी गयी (1941 में)। भारत की शास्त्रीय भाषा में इनकी रुचि के कारण इन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय (1942-44) से संस्कृत में मास्टर डिग्री और आखिर में इलाहाबाद विश्वविद्यालय (1945-49) में हिंदी साहित्य में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की, इस शोध का शीर्षक था राम कथा की उत्पत्ति और विकास ।
करियर
1950 में यह पुनः रांची आ गए। संत जेवियर्स महाविद्यालय में इन्हें हिंदी व संस्कृत का विभागाध्यक्ष बनाया गया। सन् 1950 में बुल्के ने भारत की नागरिकता ग्रहण की। इसी वर्ष वे बिहार राष्ट्रभाषा परिषद् की कार्यकारिणी के सदस्य नियुक्त हुये। सन् 1972 से 1977 तक भारत सरकार की केंद्रीय हिन्दी समिति के सदस्य बने रहे। वर्ष 1973 में इन्हें बेल्जियम की रॉयल अकादमी का सदस्य बनाया गया।
कामिल बुल्के और रामचरितमानस
पेशे से इंजीनियर रहे बुल्के का वह ब्योरेवार तार्किक वैज्ञानिकता पर आधारित शोधसंकलन "रामकथा: उत्पत्ति और विकास" करता है कि राम वाल्मीकि के कल्पित पात्र नहीं, इतिहास पुरूष थे। तिथियों में थोड़ी बहुत चूक हो सकती है। बुल्के के इस शोधग्रंथ के उर्द्धरणों ने पहली बार साबित किया कि रामकथा केवल भारत में नहीं, अंतर्राष्ट्रीय कथा है। वियतनाम से इंडोनेशिया तक यह कथा फैली हुई है। इसी प्रसंग में फादर बुल्के अपने एक मित्र हॉलैन्ड के डाक्टर होयकास का हवाला देते थे। डा० होयकास संस्कृत और इंडोनेशियाई भाषाओं के विद्वान थे। एक दिन वह केंद्रीय इंडोनेशिया में शाम के वक्त टहल रहे थे। उन्होंने देखा एक मौलाना जिनके बगल में कुरान रखी है, इंडोनेशियाई रामायण पढ़ रहे थे।
होयकास ने उनसे पूछा, मौलाना आप तो मुसलमान हैं, आप रामायण क्यों पढते हैं। उस व्यक्ति ने केवल एक वाक्य में उत्तर दिया- और भी अच्छा मनुष्य बनने के लिये! रामकथा के इस विस्तार को फादर बुल्के वाल्मीकि की दिग्विजय कहते थे, भारतीय संस्कृति की दिग्विजय! इस पूरे प्रसंग पर विस्तार से चर्चा करते हुए डा० दिनेश्वर प्रसाद भी नहीं अघाते। 20 वर्षों तक वह फादर बुल्के के संपर्क में रहे हैं। उनकी कृतियों, ग्रंथों की भूमिका की रचना में डा० प्रसाद की गहरी सहभागिता रही है।[५]
मुख्य प्रकाशन
- (हिंदी) रामकथा : उत्पत्ति और विकास, 1949
- हिंदी-अंग्रेजी लघुकोश, 1955
- अंग्रेजी-हिंदी शब्दकोश, 1968
- (हिंदी) मुक्तिदाता, 1972
- (हिंदी) नया विधान, 1977
- (हिंदी) नीलपक्षी, 1978
पहचान
भारत सरकार द्वारा 1974 में इनके साहित्य व शिक्षा के क्षेत्र में योगदान के लिए पद्म भूषण से सम्मानित किया। यह सम्मान भारत सरकार द्वारा दिया जाने वाला तीसरा सर्वोच्च सम्मान है, जो देश के लिये बहुमूल्य योगदान के लिये दिया जाता है। भारत सरकार द्वारा दिए जाने वाले अन्य प्रतिष्ठित पुरस्कारों में भारत रत्न, पद्म विभूषण और पद्मश्री का नाम लिया जा सकता है। [३][६]
निधन
17 अगस्त 1982 में गैंगरीन के कारण एम्स, दिल्ली में इलाज के दौरान मृत्यु हो गयी।[७]
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
- 'हिन्दी चेतना' पत्रिका का फादर कामिल बुल्के विशेषांक
- रामकथा - उत्पत्ति और विकाससाँचा:Dead link (भारत का डिजिटल पुस्तकालय)
- ↑ साँचा:Cite web
- ↑ २.० २.१ Father Camille Bulcke साँचा:Webarchive The Telegraph, Wednesday, 3 January 2007.
- ↑ ३.० ३.१ हिन्दी के अनन्य साधक: फादर कामिल बुल्के - देशबंधु - 1 सितंबर 2013
- ↑ Obituaryसाँचा:Dead link Indo-Iranian Journal, Publisher: Springer Netherlands. ISSN 0019-7246 (Print) 1572-8536 (Online). Issue: Volume 25, Number 4 / June 1983.
- ↑ साँचा:Cite web
- ↑ साँचा:Cite web
- ↑ साँचा:Cite web