गुरु हर राय

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साँचा:ज्ञानसन्दूक | label1 = कीरतपुर साहिब, रूपनगर, पंजाब, भारत | data1 = 16 जनवरी 1630
कीरतपुर साहिब, रूपनगर, पंजाब, भारत | label2 = मौत | data2 = 6 अक्टूबर, 1661
कीरतपुर साहिब, भारत | label3 = मौत की वजह | data3 = | data4 = | label4 = शरीर मिला | label5 = समाधि | class5 = label | data5 = | label6 = आवास | class6 = label | data6 = | label7 = राष्ट्रीयता | data7 = | label8 = उपनाम | class8 = उपनाम | data8 = सप्तम नानक | label9 = जाति | data9 = | label10 = नागरिकता | data10 = | label11 = शिक्षा | data11 = {{{शिक्षा}}} | label12 = शिक्षा की जगह | data12 = | label13 = पेशा | class13 = भूमिका | data13 = | label14 = कार्यकाल | data14 = 1644–1661 | label15 = संगठन | data15 = | label16 = गृह-नगर | data16 = | label17 = पदवी | data17 = | label18 = वेतन | data18 = | label19 = कुल दौलत | data19 = | label20 = ऊंचाई | data20 = | label21 = भार | data21 = {{{भार}}} | label22 = प्रसिद्धि का कारण | data22 = | label23 = अवधि | data23 = | label24 = पूर्वाधिकारी | data24 = गुरु हरगोबिंद सिंह | label25 = उत्तराधिकारी | data25 = गुरु हरकिशन | label26 = राजनैतिक पार्टी | data26 = | label27 = बोर्ड सदस्यता | data27 = | label28 = धर्म | data28 = | label29 = जीवनसाथी | data29 = माता कृशन कौर | label30 = साथी | data30 = | label31 = बच्चे | data31 = बाबा राम राय और गुरु हरकिशन | label32 = माता-पिता | data32 = | label33 = संबंधी | data33 = | label35 = कॉल-दस्तखत | data35 = | label36 = आपराधिक मुकदमें | data36 = | label37 = | data37 = साँचा:Br separated entries | class38 = label | label39 = पुरस्कार | data39 = | data40 = | data41 = | data42 = }}

साँचा:सिक्खी साँचा:प्रवेशद्वार

स्वयं गुरु हरि राय की हस्तलीपि में लिखा हुआ मूल मंत्र

हर राय या गुरू हर राय (साँचा:Lang-pa) सिखों के सातवें गुरु थे। गुरू हरराय जी एक महान आध्यात्मिक व राष्ट्रवादी महापुरुष एवं एक योद्धा भी थे। उनका जन्म सन् १६३० ई० में कीरतपुर रोपड़ में हुआ था। गुरू हरगोविन्द साहिब जी ने मृत्यु से पहले, अपने पोते हरराय जी को १४ वर्ष की छोटी आयु में ३ मार्च १६४४ को 'सप्तम्‌ नानक' के रूप में घोषित किया था। गुरू हरराय साहिब जी, बाबा गुरदित्ता जी एवं माता निहाल कौर जी के पुत्र थे। गुरू हरराय साहिब जी का विवाह माता किशन कौर जी, जो कि अनूप शहर (बुलन्दशहर), उत्तर प्रदेश के श्री दया राम जी की पुत्री थी, हर सूदी ३, सम्वत १६९७ को हुआ। गुरू हरराय साहिब जी के दो पुत्र थे श्री रामराय जी और श्री हरकिशन साहिब जी (गुरू) थे।

गुरू हरराय साहिब जी का शांत व्यक्तित्व लोगों को प्रभावित करता था। गुरु हरराय साहिब जी ने अपने दादा गुरू हरगोविन्द साहिब जी के सिख योद्धाओं के दल को पुनर्गठित किया। उन्होंने सिख योद्धाओं में नवीन प्राण संचारित किए। वे एक आध्यात्मिक पुरुष होने के साथ-साथ एक राजनीतिज्ञ भी थे। अपने राष्ट्र केन्द्रित विचारों के कारण मुगल औरंगजेब को परेशानी हो रही थी। औरंगजेब का आरोप था कि गुरू हरराय साहिब जी ने दारा शिकोह (शाहजहां के सबसे बड़े पुत्र) की सहायता की है। दारा शिकोह संस्कृत भाषा के विद्वान थे। और भारतीय जीवन दर्शन उन्हें प्रभावित करने लगा था।

एक बार गुरू हरराय साहिब जी मालवा और दोआबा क्षेत्र से प्रवास करके लौट रहे थे, तो मोहम्मद यारबेग खान ने उनके काफिले पर अपने एक हजार सशस्त्र सैनिकों के साथ हमला बोल दिया। इस अचानक हुए आक्रमण का गुरू हरराय साहिब जी ने सिख योद्धाओं के साथ मिलकर बहुत ही दिलेरी एवं बहादुरी के साथ प्रत्युत्तर दिया। दुश्मन को जान व माल की भारी हानि हुई एवं वे युद्ध के मैदान से भाग निकले। आत्म सुरक्षा के लिए सशस्त्र आवश्यक थे, भले ही व्यक्तिगत जीवन में वे अहिंसा परमो धर्म के सिद्धान्त को अहम मानते हों। गुरू हरराय साहिब जी प्रायः सिख योद्धाओं को बहादुरी के पुरस्कारों से नवाजा करते थे।

गुरू हरराय साहिब जी ने कीरतपुर में एक आयुर्वेदिक जड़ी-बूटी दवाईयों का अस्पताल एवं अनसुधान केन्द्र की स्थापना भी की। एक बार दारा शिकोह किसी अनजानी बीमारी से ग्रस्त हुआ। हर प्रकार के सबसे बेहतर हकीमों से सलाह ली गयी। परन्तु किसी प्रकार कोई भी सुधार न आया। अन्त में गुरू साहिब की कृपा से उसका ईलाज हुआ। इस प्रकार दारा शिकोह को मौत के मुंह से बचा लिया गया।

गुरू हरराय साहिब ने लाहौर, सियालकोट, पठानकोट, साम्बा, रामगढ एवं जम्मू एवं कश्मीर के विभिन्न क्षेत्रों का प्रवास भी किया। उन्होने ३६० मंजियों की स्थापना की। उन्होने भ्रष्ट 'मसन्द पद्धति' सुधारने हेतु सुथरेशाह, साहिबा, संगतिये, मिंया साहिब, भगत भगवान, भगत मल एवं जीत मल भगत जैसे पवित्र एवं आध्यात्मिक लोगों को मंजियों का प्रमुख नियुक्त किया।

गुरू हरराय साहिब ने अपने गुरूपद काल के दौरान बहुत सी कठिनाइयों का सामना किया। भ्रष्ट मसंद, धीरमल एवं मिनहास जैसों ने सिख पंथ के प्रसार में बाधाएं उत्पन्न की। शाहजहां की मृत्यु के बाद गैर मुस्लिमों के प्रति शासक औरंगजेब का रूख और कड़ा हो गया।

मुगल शासक औरंगजेब ने सत्ता संघर्ष की स्थितियों में, गुरू हरराय साहिब जी द्वारा की गई दारा शिकोह की मदद को राजनैतिक बहाना बनाया। उसने गुरू साहिब पर बेबुनियाद आरोप लगाये। उन्हें दिल्ली में पेश होने का हुक्म दिया गया। गुरू हरराय साहिब जी के बदले रामराय जी दिल्ली गये। उन्होंने धीरमल एवं मिनहास द्वारा सिख धर्म एवं गुरू घर के प्रति फैलायी गयी भ्रांतियों को स्पष्ट करने का प्रयास किया। रामराय जी ने मुगल दरबार में गुरबाणी की त्रुटिपूर्ण व्याख्या की। उस समय की राजनैतिक परिस्थितियों एवं गुरु मर्यादा की दृष्टि से यह सब निन्दनीय था।

जब गुरू हरराय साहिब जी को इस घटना के बारे में बताया गया तो उन्होने राम राय जी को तुरंत सिख पंथ से निष्कासित किया। राष्ट्र के स्वाभिमान व गुरुघर की परम्पराओं के विरुद्ध कार्य करने के कारण रामराय जी को यह कड़ा दण्ड दिया गया। इस घटना ने सिखों में देश के प्रति क्या कर्तव्य होने चाहिए, ऐसे भावों का संचार हुआ। सिख इस घटना के बाद गुरु घर की परम्पराओं के प्रति अुनशासित हो गए। इस प्रकार गुरू साहिब ने सिख धर्म के वास्तविक गुणों, जो कि गुरू ग्रन्थ साहिब जी में दर्ज हैं, गुरू नानक देव जी द्वारा बनाये गये किसी भी प्रकार के नियमों में फेरबदल करने वालों के लिए एक कड़ा कानून बना दिया।

अपने अन्तिम समय को नजदीक देखते हुए उन्होने अपने सबसे छोटे पुत्र गुरू हरकिशन जी को 'अष्टम्‌ नानक' के रूप में स्थापित किया। कार्तिक वदी ९ (पांचवीं कार्तिक), बिक्रम सम्वत १७१८, (६ अक्टूबर १६६१) में कीरतपुर साहिब में ज्योति जोत समा गये।

सन्दर्भ

बाहरी कड़ियाँ

साँचा:Sikh Gurus

साँचा:सिख धर्म