मेनू टॉगल करें
Toggle personal menu
लॉग-इन नहीं किया है
Your IP address will be publicly visible if you make any edits.

प्राङ्न्याय

भारतपीडिया से
WikiDwarf (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित १७:४६, १२ मार्च २०२० का अवतरण (नया लेख बनाया गया)
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

साँचा:आधारसाँचा:Wikify

Angelo Gambiglioni, De re iudicata, 1579

पूर्वन्याय या प्रांन्याय (प्राक् + न्याय ; लैटिन: Res judicata) न्याय का एक सिद्धान्त है जिसके अनुसार यदि किसी विषय पर अन्तिम निर्णय दिया जा चुका है (और जिसमें आगे अपील नहीं किया जा सकता) तो यह मामला फिर से उसी न्यायालय या किसी दूसरे न्यायालय में नहीं उठाया जा सकता। अर्थात् प्रांन्याय के सिद्धान्त का उपयोग करते हुए न्यायालय ऐसे मामलों को पुनः उठाने से रोक देगा। धारा 11 के अनुसार यदि कोई व्यक्तई एक ही वाद के कारण के लिए दोबारा परेशान नही किया जा सकता, और राज्य सरकार का कर्तव्य है की वह देखे की मुकदमेबआजी को लम्बा न खीचा जाये, अपितु उसे समाप्त किया जाना चाहिए।

इन्हें भी देखें