मेनू टॉगल करें
Toggle personal menu
लॉग-इन नहीं किया है
Your IP address will be publicly visible if you make any edits.

व्यवहार

भारतपीडिया से
WikiDwarf (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित १७:१९, ३१ जनवरी २०२१ का अवतरण
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

हिन्दू विधि के सन्दर्भ में व्यवहार एक महत्वपूर्ण संकल्पना है और विधिक प्रक्रिया का पर्याय है। कात्यायन ने इस शब्द का विश्लेषण इस प्रकार किया है- वयवहार = वि + अव + हार ; 'वि' का अर्थ 'विभिन्न' तथा 'अव' का अर्थ सन्देह है तथा हार का अर्थ 'हरना' या 'दूर करना' है। अर्थात यह (व्यवहार) विभिन्न प्रकार के सन्देहों को दूर करता है।

न्यायालय

बृहस्पति स्मृति के अनुसार भारत में चार प्रकार के न्यायालय होते थे --

  • १. प्रतिष्ठित (जो किसी पुर या ग्राम में प्रतिष्ठित हो),
  • २. अप्रतिष्ठित (जो एक स्थान पर प्रतिष्ठित न होकर विभिन्न ग्रामों में समय-समय पर स्थापित किये जाते थे),
  • ३. मुद्रित, तथा
  • ४. शासित।

इन्हें भी देखें