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ओझा

भारतपीडिया से
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साइबेरिया क्षेत्र की ख़कास जाति की एक स्त्री ओझा की सन् १९०८ में ली गई तस्वीर

ओझा (अंग्रेज़ी: shaman, शेमन या शामन) *ओझाओं की विद्वत परम्परा*🙏🏻🙏🏻🚩🚩

ओझा परिवार में संस्कृत साहित्य , वेद-वेदाङ्ग , ज्योतिष , कर्मकाण्ड व तन्त्र साधना की पठन-पाठन की परम्परा शुरु से रही है। पुष्करणा समाज ही नहीं अपितु हिन्दू समाज के प्रत्येक वर्ग को इन्होंने विद्यादान दिया है इनकी यह योज्ञता को देखकर ही पुष्करणा समाज की गणमान्य जातियों ने इन्हें गुरु भाव से सम्मानित किया है। जिसका वर्णन इस प्रकार:- सिंध देश में " आशनी कोट " के एक ग्राम में पुष्करणा पुरोहित ने " मण्डी " अथवा बन्डी नाम की कन्या खींब जी नाम के ओझा को विधिवत् कन्या दान करके ब्याही ओर उनसे उत्पन्न सन्तान को अपने कुल गुरु के रूप में सम्मानित किया,साथ में उस कन्या के ननिहाल पक्ष वाले आचार्यो व बोहरो ने भी यहीं सम्मान दिया। यह पवित्र नाता कई पीढ़ी तक तो सादर भाव के साथ चलता रहा पर इतर के कुछ ५० वर्ष में अहंकार वश दूषित हो गया। इसका निराकरण होना आवश्यक है। इसी प्रकार बिस्सा व चोवटिया जोशी भी आपस में अन्यान्य जातियों के गुरु है पर सम्बन्ध स्थापित करने में कोई वैमनस्य नहीं है। बीकानेर नगर स्थापना काल से पांच पीढ़ी तक यह ओझा जाती राजदरबार में ज्योतिष का कार्य करती रही। ज्योतिष के तीनों स्कंधों का पठन-पाठन इनके वंशजो में बराबर चला आ रहा है। अब पुष्करणा ओझाओं की ज्योतिष सेवा ( दान ) का संक्षिप्त परिचय यह है कि ये लोग अपनी परम्परा के अनुसार ब्रह्मसिद्धान्त पर पञ्चाङ्ग निर्माण कर जन सेवा करते रहे। इनका ज्योतिषकार्य क्षेत्र माहेश्वरी वैश्य समाज में विशेष रहा है। नगर स्थापना के साथ साथ मोहता चौक में सातवें नम्बर घर इनके पूर्वजों का रहा तथा यह जाती सदैव स्वाभिमानी व दयापरक रही है। आचार्य जाती के बीकानेर आगमन पर इन्हें राजदरबार का ज्योतिष कार्य सोप कर स्वयं माहेश्वरी समाज में ज्योतिष कार्य व गणित का प्रचार प्रसार करती रही। जैसलमेर की तरह यहाँ भी पुष्करणा सावा ( विवाह ) का कार्य प्रारंभ हुवा। यह महान कार्य सर्वप्रथम जूनागढ़ में समाज के कर्णधारो द्वारा आयोजित किया गया। जिसका मुहूर्त शोधन ओझाओं द्वारा सम्पन्न हुआ। आज भी ओझा परिवार इस कार्य को समाज सेवा के रूप में करते आ रहे है। लेकिन बीकानेर के आचार्यो ने अपनी ख्याति में यह भाव दर्शया है " यद्यपि यह जाती आचार्यो की गुरु रही है , फिर भी ज्योतिष विद्या आचार्यो से सीखी है " परन्तु यह उनका भ्रम है या बिना प्रमाण अपनी इच्छा से लिख दिया है। सप्रमाण निराकरण देखिए :- ब्रह्मपक्ष गणित के मूर्धन्य विद्वान वराहमिहिर व भास्कराचार्य रहे है।भास्कराचार्य भी शाण्डिल्य गोत्री पुष्करणा पुरोहित रहे है। वराहमिहिर से लेकर आज तक के विद्वान पञ्चाङ्ग गणित में वासन्ती नवरात्रा स्थापना के पहले अमावस्या के दिन के वार को पञ्चाङ्ग में संवत्सर राजा बनाते आए है। परंतु इनके गुरु ओझा स्थापना के दिन जो वार हो उसे राजा बनाते आये है। बीकानेर में राजदरबार का ज्योतिषकार्य आचार्यो को देने के बाद नगर में स्वतंत्र रूप से ओझा लोग पञ्चाङ्ग निर्माण करते रहे। इस विषय की कमी को जान कर आचार्यो के घर में से एक व्यक्ति ने जोधपुर में जाकर यह कार्य सिख लिया , फिर पञ्चाङ्ग निर्माण किया। इस पर कई व्यक्तियों ने राजदरबार में शिकायत कर दी कि नगर में दो जातियों द्वारा पञ्चाङ्ग निर्माण किया जाता है तथा दोनों अलग अलग पंचांग में अलग अलग राजा बनाते है इसलिए शासन कर्ता राजा पर भार पड़ता है। दोनों की पेशी से राजा शास्त्र का निर्णय करने में असमर्थ कोने के कारण एक व्यक्ति को काशी भेज दिया। काशी के विद्वानों ने बहुशास्त्र सम्मत स्थापना के दिन वाले ग्रह को राजा होना घोषित कर किया। राजा ने यह देख वणिक बुद्धि से निर्णय लिया कि हमारे घर आचार्य आते है और नगर में ओझा इसलिए हमारे घर पर आचार्यो का व नगर में ओझाओं का राजा पञ्चाङ्ग में मान्य होगा। इस विषय के निर्णीत ग्रन्थ हमारे घर जीर्ण शीर्ण अवस्था में अब भी सुरक्षित है। अधिक जानकारी के लिए श्री वसुदेव कृष्ण धर्मसागर पंचांग सम्वत् 2043 में व्याकरणाचार्य याज्ञिक् सम्राट ज्यो. पं. भागीरथ जी ओझा द्वारा लिखित रजत जयन्ती आलेख देखे। पारम्परिक समाजों में ऐसे व्यक्ति को कहा जाता है जिनके बारे में यह विश्वास हो कि उनमें प्रत्यक्ष दुनिया से बाहर किसी रूहानी दुनिया, आत्माओं, देवी-देवताओं या ऐसे अन्य ग़ैर-सांसारिक तत्वों से सम्पर्क रखने या उनकी शक्तियों से लाभ उठाने की क्षमता है। ओझाओं के बारे में यह धारणा होती है कि वे अच्छी और बुरी आत्माओं तक पहुँचकर उनपर प्रभाव डाल सकते हैं और अक्सर ऐसा करते हुए वे किसी विशेष चेतना की अवस्था में होते हैं। ऐसी अवस्था को अक्सर किसी देवी-देवता या आत्मा का 'चढ़ना' या 'हावी हो जाना' कहतें हैं। पारम्परिक समाजों में अक्सर चिकित्सा के उपचार भी ओझा ही जाना करते थे। अक्सर जनजातियों या पारम्परिक क़बीलों में ओझाओं का प्रभाव ज़्यादा होता है और उन्हें धर्म और चिकित्सा दोनों का स्रोत माना जाता है।[१][२]

ओझा धर्म (shamanism, शेमनिज़म) ऐसे धर्म को कहते हैं जो ओझाओं द्वारा ही चलाया जाता हो। साइबेरिया, अफ़्रीका, मंगोलिया, मूल अमेरिकी आदिवासी समाज, जापान और भारत समेत ओझाओं को विश्व भर में जनजातीय समाजों में देखा गया है। जहाँ आधुनिक चिकित्सा उपलप्ध नहीं होती वहाँ अक्सर ओझा ही उपचार करते हैं, मसलन भारत में पारम्परिक रूप से सांप के काटे का इलाज ओझा ही किया करते थे।[३] अक्सर पारम्परिक समाजों में ओझा ही उसके रीति-रिवाजों के रखवाले होते हैं हालांकि वे अक्सर अंधविश्वास और हानिकारक प्रथाओं को फैलाने के लिए भी ज़िम्मेदार ठहराए जाते हैं। मसलन ब्रिटिश राज के दौरान कुछ अंग्रेज़ लेखकों ने भारत में ओझाओं द्वारा 'भूत-प्रेत उतारने' की विधि देखी तो उन्हें स्कोटलैंड में इस से मिलती-जुलती प्रथाओं की याद आई।[४] "ओझा" ब्राह्मणों का ही एक आस्पद हैं पदवी हैं

कुछ ओझाओं की तस्वीरें

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

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  1. The Way of the Shaman, Michael Harner, Michael J. Harner, HarperCollins, 1990, ISBN 978-0-06-250373-2, ... Shamans are especially healers, but they also engage in divination, seeing into the present, past, and future for other members of the community. A shaman is a see-er ...
  2. An Encyclopedia of Shamanism, Christina Pratt, The Rosen Publishing Group, 2007, ISBN 978-1-4042-1140-7, ... A shaman is a specific type of healer who uses a trance state, or alternate state of consciousness, to enter the invisible world ...
  3. Shamans in Asia, Clark Chilson, Psychology Press, 2003, ISBN 978-0-415-29679-3, ... It is the duty of the ojha to find this out. In Kushtia there is a custom that if anyone is bitten by a snake someone runs to the house of an ojha or a shaman with the news that a man or woman, as the case may be, has a kata gha (cut wound) ...
  4. North Indian notes and queries, Volumes 4-5, William Crooke, Pioneer Press, 1894, ... The ceremony performed by the Ojha to discover a witch is called kansa kurthi, and much resembles the old Scotch superstition ...