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सुब्रह्मण्य भारती (साँचा:Lang-ta, ११ दिसम्बर १८८२ - ११ सितम्बर १९२१) एक तमिल कवि थे। उनको 'महाकवि भारतियार' के नाम से भी जाना जाता है। उनकी कविताओं में राष्ट्रभक्ति कूट-कूट कर भरी हुई है। वह एक कवि होने के साथ-साथ भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में शामिल सेनानी, समाज सुधारक, पत्रकार तथा उत्तर भारत व दक्षिण भारत के मध्य एकता के सेतु समान थे।
जीवन
भारती जी का जन्म भारत के दक्षिणी प्रान्त तमिलनाडु के एक् गांव एट्टयपुरम् में एक तमिल ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा स्थानीय विद्यालय में ही हुई। मेधावी छात्र होने के नाते वहां के राजा ने उन्हें ‘भारती’ की उपाधि दी। जब वे किशोरावस्था में ही थे तभी उनके माता-पिता का निधन हो गया। उन्होंने सन् १८९७ में अपनी चचेरी बहन चेल्लमल के साथ विवाह किया। वे बाहरी दुनिया को देखने के बड़े उत्सुक थे। विवाह के बाद सन् १८९८ में वे उच्च शिक्षा के लिये बनारस चले गये। अगले चार वर्ष उनके जीवन में ‘‘खोज’’ के वर्ष थे।
राष्ट्रीय आन्दोलन से जुड़ाव
[[चित्र:1909magazine vijaya.jpg|right|thumb|200px|१९०९ में प्रकाशित 'विजया' नामक पत्रिका का मुखपृष्ठ ; यह पत्रिका पहले चेन्नै से प्रकाशित हुई और बाद में पांडिचेरी से।]] बनारस प्रवास की अवधि में उनका हिन्दू अध्यात्म व राष्ट्रप्रेम से साक्षात्कार हुआ। सन् १९०० तक वे भारत के राष्ट्रीय आन्दोलन में पूरी तरह जुड़ चुके थे और उन्होने पूरे भारत में होने वाली कांग्रेस की सभाओं में भाग लेना आरम्भ कर दिया था। भगिनी निवेदिता, अरविन्द और वंदे मातरम् के गीत ने भारती के भीतर आजादी की भावना को और पल्लवित किया। कांग्रेस के उग्रवादी तबके के करीब होने के कारण पुलिस उन्हें गिरफ्तार करना चाहती थी।
भारती १९०८ में पांडिचेरी गए, जहां दस वर्ष वनवासी की तरह बिताए। इसी दौरान उन्होंने कविता और गद्य के जरिये आजादी की बात कही। ‘साप्ताहिक इंडिया’ के द्वारा आजादी की प्राप्ति, जाति भेद को समाप्त करने और राष्ट्रीय जीवन में नारी शक्ति की पहचान के लिए वे जुटे रहे। आजादी के आन्दोलन में २० नवम्बर १९१८ को वे जेल गए।
प्रमुख रचनायें
‘स्वदेश गीतांगल’ (स्वदेश गीत ; १९०८) तथा ‘जन्मभूमि’ (१९०९) उनके देशभिक्तपूर्ण काव्य माने जाते हैं, जिनमें राष्ट्रप्रेम् और ब्रिटिश साम्राज्य के प्रति ललकार के भाव मौजूद हैं। आजादी की प्राप्ति और उसकी रक्षा के लिए तीन चीजों को वे मुख्य मानते थे - बच्चों के लिए विद्यालय, कल -कारखानों के लिए औजार और अखबार छापने के लिए कागज। एक कविता में भारती ने ‘भारत का जाप करो’ की सलाह दी है।
- तुम स्वयं ज्योति हो मां,
- शौर्य स्वरूपिणी हो तुम मां,
- दुःख और कपट की संहारिका हो मां,
- तुम्हारी अनुकम्पा का प्रार्थी हूं मैं मां।
- (डॉ॰ भारती की कविता ‘मुक्ति का आह्वान’ से)
‘एक होने में जीवन है। अगर हमारे बीच ऐक्य भाव नहीं रहा तो सबकी अवनति है। इसमें हम सबका सम्यक उद्घार होना चाहिए। उक्त ज्ञान को प्राप्त करने के बाद हमें और क्या चाहिए?’
हम गुलामी रूपी धन्धे की शरण में पकड़कर बीते हुए दिनों के लिए मन में लिज्जत होकर द्वंद्वों एवं निंदाओं से निवृत्त होने के लिए इस गुलामी की स्थिति को (थू कहकर) धिक्कारने के लिए ‘वंदे मातरम्’ कहेंगे।
उनकी कृतियाँ निम्नलिखित हैं-
- कुयिल् पाट्टु
- कण्णऩ् पाट्टु (=श्रीकृष्ण गान)
- चुयचरितै (=सुचरितम् ; आत्मकथा ; १९१०)
- तेचिय कीतंकळ् (देशभक्ति गीत)
- पारति अऱुपत्ताऱु
- ञाऩप् पाटल्कळ् (तात्विक गीत)
- तोत्तिरप् पाटल्कळ्
- विटुतलैप् पाटल्कळ्
- विनायकर् नाऩ्मणिमालै
- पारतियार् पकवत् कीतै (=भारतियार की भगवत गीता)
- पतंचलियोक चूत्तिरम् (=पतंजलि योगसूत्रम्)
- नवतन्तिरक्कतैकळ्
- उत्तम वाऴ्क्कै चुतन्तिरच्चंकु
- हिन्तु तर्मम् (कान्ति उपतेचंकळ्)
- चिऩ्ऩंचिऱु किळिये
- ञाऩ रतम (=ज्ञान रथम्)
- पकवत् कीतै (=भगवत गीता)
- चन्तिरिकैयिऩ् कतै
- पांचालि चपतम् (=पांचालि शपथम्)
- पुतिय आत्तिचूटि
- पॊऩ् वाल् नरि
- आऱिल् ऒरु पंकु
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
- आजादी का जोश भरने वाले महाकवि थे सुब्रह्माण्यम भारती
- सुब्रमण्य भारती के शिक्षा विषयक उदगार (देशबन्धु)
- तमिल काव्य में राष्ट्रवादी स्वर : सुब्रह्मण्य भारती (विश्व संवाद केन्द्र)
- डॉ॰ रामविलास शर्मा की दृष्टि में सुब्रह्मण्य भारती का जीवन और साहित्यकर्म (बिजय कुमार रबिदास)
- ↑ Attar Chand The great humanist Ramaswami Venkataraman Page 12.