मेनू टॉगल करें
Toggle personal menu
लॉग-इन नहीं किया है
Your IP address will be publicly visible if you make any edits.

प्राणचंद चौहान

भारतपीडिया से
WikiDwarf (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित ०७:३६, १२ मार्च २०२१ का अवतरण
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

प्राणचंद चौहान भक्तिकाल के कवि थे। 'रामायण महानाटक' उनकी प्रसिद्ध कृति है। इनके व्यक्तित्व पर पर्याप्त विवरण नहीं मिलता है।[१][२][३]

पं. रामचंद्र शुक्ल के अनुसार, संस्कृत में रामचरित संबंधी कई नाटक हैं जिनमें कुछ तो नाटक के साहित्यिक नियमानुसार हैं और कुछ केवल संवाद रूप में होने के कारण नाटक कहे गए हैं। इसी पिछली पद्धति पर संवत 1667 (सन् 1610ई.) में प्राणचंद चौहान रामायण महानाटक लिखा।[४]

प्राणचन्द की रचना का ढंग नीचे उद्धृत अंश से ज्ञात हो सकता है-

कातिक मास पच्छ उजियारा । तीरथ पुन्य सोम कर वारा॥
ता दिन कथा कीन्ह अनुमाना । शाह सलेम दिलीपति थाना॥
संवत् सोरह सै सत साठा । पुन्य प्रगास पाय भय नाठा॥
जो सारद माता कर दाया । बरनौं आदि पुरुष की माया॥
जेहि माया कह मुनि जग भूला । ब्रह्मा रहे कमल के फूला॥
निकसि न सक माया कर बाँधा । देषहु कमलनाल के राँधा॥
आदिपुरुष बरनौं केहिभाँती । चाँद सुरज तहँ दिवस न राती॥
निरगुन रूप करै सिव धयाना । चार बेद गुन जेरि बखाना॥
तीनों गुन जानै संसारा । सिरजै पालै भंजनहारा॥
श्रवन बिना सो अस बहुगुना । मन में होइ सु पहले सुना॥
देषै सब पै आहि न ऑंषी । अंधकार चोरी के साषी॥
तेहि कर दहुँ को करै बषाना । जिहि कर मर्म बेद नहिं जाना॥
माया सींव भो कोउ न पारा । शंकर पँवरि बीच होइ हारा॥

सन्दर्भ

साँचा:टिप्पणीसूची

साँचा:भक्ति काल के कवि

साँचा:जीवनचरित-आधार