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अच्युत कृष्णानन्द तीर्थ
अप्प्यय दीक्षित के ज्योतिष ग्रन्थ "सिद्धान्तलेश" के टीकाकार थे। इन्होने छायाबल निवासी स्वयंप्रकाशानन्द सरस्वती से शिक्षा प्राप्त की थी, यह काबेरी नदी के तीरवर्तो नीलकण्ठेश्वर नामक स्थान में रहते थे और भगवान श्री कृष्ण के भक्त थे, इनके ग्रन्थो में कृष्णभक्ति और ज्योतिष की तरफ़ काफ़ी रुचि मिलती है, सिद्धान्तलेश की टीका नाम इन्होने कृष्णालंकार ही रख दिया था, जिसमे इनको अद्भुत सफ़लता प्राप्त हुई है, विद्वान होने के साथ यह विनयशील भी थे, कृषालंकार के आरम्भ में इन्होने लिखा है,"आचार्यचरण्द्वंद स्मृतिर्लेखकरूपिणम, मां कृत्वा कुरुते व्याख्यां नाहमत्र प्रभुर्यत:", अर्थात गुरुदेव के चरणों की स्मृति ही मुझे लेखक बनाकर यह व्याख्या करा रही है, क्योंकि मुझमे यह व्याख्या करने की हिम्मत नहीं है, इससे इनकी गुरुभक्ति और निराभिमानिता सुस्पष्ट है, कृष्णालंकार के अलावा शांकर से भी "वनमाला" नामक टीका लिखी है, इससे भी इनकी कृष्णभक्ति की पहिचान मिलती है। साँचा:वैदिक साहित्य