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पानीपत का तृतीय युद्ध

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पानीपत का तृतीय युद्ध

पानीपत का तीसरा युद्ध अहमद शाह अब्दाली और मराठा सेनापति सदाशिव राव भाऊ के बीच 14 जनवरी 1761 को वर्तमान पानीपत के मैदान मे हुआ जो वर्तमान समय में हरियाणा में है, इस युद्ध में भील प्रमुख इब्राहीम ख़ाँ गार्दी ने मराठों का साथ दिया [१]। इस युद्ध मे दोआब के अफगान रोहिला और अवध के नवाब शुजाउद्दौला ने अहमद शाह अब्दाली का साथ दिया।

मुग़ल साम्राज्य का अंत (1748 - 1857) में शुरु हो गया था, जब मुगलों के ज्यादातर भू भागों पर मराठाओं का आधिपत्य हो गया था। 1739 में नादिरशाह ने भारत पर आक्रमण किया और दिल्ली को पूर्ण रूप से नष्ट कर दिया। 1757 ईस्वी में रघुनाथ राव ने दिल्ली पर आक्रमण कर दुर्रानी को वापस अफ़गानिस्तान लौटने के लिए विवश कर दिया तत-पश्चात उन्होंने अटक और पेशावर पर भी अपने थाने लगा दिए। जिससे अब अहमद शाह दुर्रानी को मराठो का संकट पैदा हो गया और अहमद शाह दुर्रानी को ही नहीं अपितु संपूर्ण उत्तर भारत की शक्तियों को मराठों से संकट पैदा हो गया जिसमें अवध के नवाब सुजाउद्दौला और रोहिल्ला सरदार नजीब उददोला भी सम्मिलित थे। मराठों ने राजपूताना मे जाना शुरू कर दिया जिससे राजस्थान के सभी राजपूत राजा जैसे जयपुर के राजा माधो सिंह जी इनसे रूष्ट हो गए और इन सब ने मिलकर ठाना कि मराठों को सबक सिखाया जाए उनकी दृष्टि में मराठों को उस समय ऐसा व्यक्ति था जो सबक सिखा सकता था और वह अहमद शाह दुर्रानी जो कि दुर्रानी साम्राज्य का संस्थापक था और 1747 में राज्य का सुल्तान बना था सब ने अहमदशाह को भारत में आने का न्योता दिया यह समाचार पहुंंचा तो 1757 पेशावर में दत्ता जी सिंधिया जिनको पेशवा बालाजी बाजीराव ने वहां पर नियुक्त किया था उनको परास्त कर भारत में घुसा था। उस वक्त सदाशिव राव भाऊ की पानीपत के युद्ध के नायक थे वह उदगीर में थे जहां पर उन्होंने 1759 निजाम की सेनाओं को हराया हुआ था। सेना को हराने के बाद उनके ऐश्वर्य में काफी वृद्धि हुई और वह मराठा साम्राज्य की सबसे ताकतवर सेनापति में गिने जाने लगे ।इसलिए बालाजी बाजी राव ने अहमदशाह से लड़ने के लिए भी उनको ही चुना जबकि उन्हें उत्तर में लड़ने का कोई अनुभव नहीं था। उस वक्त भारत में सबसे ज्यादा अनुभव प्राप्त एक रघुनाथ राव और महादजी सिंधिया थे। परंतु इन दोनों पर विश्वास ना करके शायद बालाजी बाजीराव ने सबसे बड़ी भूल की या फिर समय मराठों के साथ नहीं था। सदाशिवराव भाऊ अपनी समस्त सेना को उदगीर से सीधे दिल्ली की ओर रवाना हो गए जहां वे लोग 1760 ईस्वी में दिल्ली पहुंचे। उस वक्त अहमद शाह अब्दाली दिल्ली पार करके अनूप शहर यानी दोआब में पहुच चुका था और वहां पर उसने अवध के नवाब सुजाउदौला और रोहिल्ला सरदार नजीबूदौला के साथ एक युद्ध और मराठों के खिलाफ रसद भी मिलने का पूरा काम भारतीयों ने ही किया यानी अवध के नवाब ने उसको रसद पहुंचाने का काम किया। मराठे दिल्ली में पहुंचे और उन्होंने लाल किला जीत लिया । यही वह समय था जब शिवाजी महाराज की मृत्यु के ८० वर्ष बाद पहली बार लाल किला जीता गया था । लाल किला जीतने के बाद उन्होंने कुंजपुरा पर हमला कर दिया जो कि एक जहां पर एक अफगान सेना की कम से कम 166fhv थी में उसको तबाह कर दिया और कुंजपुरा में अफगान को पूरी तरह तबाह करके उनसे सभी सामान और खाने-पीने की आपूर्ति मराठों को हो गई मराठों ने लाल किले की चांदी की चादर को भी पिघला कर उससे भी धन अर्जित कर लिया और उस वक्त मराठों के पास उत्तर भारत में रह सकता एक मात्र साधन दिल्ली था परंतु बाद में अब्दाली को रोकने के लिए यमुना नदी पहले उन्होंने एक सेना तैयार की थी परंतु अहमदशाह ने नदी पार कर ली अक्टूबर के महीने में और किसी गद्दार की गद्दारी की वजह से मराठों कि वास्तविक जगह और स्तिथि का पता लगाने में सफल रहा । जब मराठों कि सेना वापिस मराठवाड़ा जा रही थी तो उन्हें पता चला कि अब्दाली उनका पीछा कर रहा है, तब उन्होंने युद्ध करने का निश्चय किया। अब्दाली ने दिल्ली और पुणे के बीच मराठों का संपर्क काट दिया । मराठों ने भी अब्दाली का संंपर्क काबुल से काट दिया। इस तरह तय हो गया था कि जिस भी सेना की सप्लाई लाइन चलती रहेगी वह युद्ध जीत जाएगी ।करीब डेढ़ महीने की मोर्चा बंदी के बाद 14 जनवरी सन् 1761 को बुधवार के दिन सुबह 8:00 बजे यह दोनों सेनाएं आमने-सामने युद्ध के लिए आ गई कि मराठों को रसद की आमद हो नहीं रही थी और उनकी सेना में भुखमरी फैलती जा रही थी उस वक्त तक हो सकती थी परंतु अहमदशाह को अवध और रूहेलखंड से हो रही थी युद्ध का फैसला किया इस युद्ध में मराठों की अच्छी साबित हुई ऐसा हुआ नहीं विश्वासराव को करीब 1:00 से 2:30 के बीच एक गोली शरीर पर लगी और वह गोली इतिहास को परिवर्तित करने वाली साबित हुई और सदाशिवराव भाऊ अपने हाथी से उतर कर विश्वास राव को देखने के लिए मैदान में पहुंचे जहां पर उन्होंने उसको मृत पाया बाकी मराठा सरदारों ने देखा कि सदाशिवराव भाऊ अपने हाथी पर नहीं है तो पूरी सेना में हड़कंप मच गया जिसे सेना का कमान ना होने के कारण पूरी सेना में अफरा तफरी मच गई और इसी कारण कई सैनिक मारे गए इसलिए कुछ छोड़ कर भाग गए परंतु सदाशिव राव भाऊ अंतिम दिन तक उस युद्ध में लड़ते रहे इस युद्ध में शाम तक आते-आते पूरी मराठा सेना खत्म हो गई ।अब्दाली ने इस मौके को एक सबसे अच्छा मौका समझा और 15000 सैनिक जो कि आरक्षित थे उनको युद्ध के लिए भेज दिया और उन 15000 सैनिकों ने बचे-खुचे मराठा सैनिक जो सदाशिवराव भाऊ के नेतृत्व में थे उनको खत्म कर दिया ।मल्हार राव होळकर वहाँ से पेशवा के वचन के कारण साथ गई 20 मराठा स्त्रियों को युद्ध से सुरक्षित बडी ही कूटनीति से निकालकर लाए , सिंधिया और नाना फडणवीस इस से भाग निकले उनके अलावा और कई महान सरदार जैसे विश्वासराव पेशवा सदाशिवराव भाऊ जानकोजी सिंधिया यह सभी इस युद्ध में मारे गए और इब्राहिम खान गार्दी जो कि मराठा तोपखाने की कमान संभाले हुए थे उनकी भी इस युद्ध में बहुत बुरी तरीके से मौत हो गई और कई दिनों बाद सदाशिव राव भाऊ और विश्वासराव का शरीर मिला इसके साथ 40000 तीर्थयात्रियों जो मराठा सेना के साथ उत्तर भारत यात्रा करने के लिए गये थे उनको पकड़ कर उनका कत्लेआम करवा दिया। पानी पिला पिला कर उनका वध कर दिया गया। एक लाख से ज्यादा लोगों को हमेशा के लिए युद्ध मे मारे गए यह बात जब पुणे पहुंची तब बालाजी बाजीराव को गुस्से का ठिकाना नहीं रहा वह बहुत बड़ी सेना लेकर वापस पानीपत की ओर चल पड़े जब अहमद शाह दुर्रानी को यह खबर लगी तो उसने खुद को रोक लेना ही सही समझा क्योंकि उसकी सेना में भी हजारों का नुकसान हो चुका था और वह सेना वापस अभी जो भी नहीं लग सकती थी इसलिए उसने 10 फरवरी,1761 को पेशवा को पत्र लिखा कि "मैं जीत गया हूं और मैं दिल्ली की गद्दी नहीं लूगा, आप ही दिल्ली पर राज करें मैं वापस जा रहा हूं।" अब्दााली का भेजा पत्र बालाजी बाजीराव ने पत्र पढ़ा और वापस पुणे लौट गए ।परंतु थोड़े में ही 23 जून 1761 को उनकी मौत हो गई डिप्रेशन के कारण क्योंकि इस युद्ध में उन्होंने अपना पुत्र और अपने कई सारे मराठा सरदारों को महान सरदारों को खो दिया था पानीपत के साथ एक बार आता साम्राज्य की सबसे बड़ा दर्द हुआ और 18 वीं सदी का सबसे भयानक युद हुआ और अंत में यह भारतीय इतिहास का सबसे काला दिन रहा सभी को मार दिया गया वापस लौटने भारत का सबसे बड़ा कई सारी विदेशी ताकतें भारत में आने लगी परंतु 1761 में माधवराव द्वितीय पेशवा बने और उन्होंने महादाजी सिंधिया और नाना फडणवीस की सहायता से उत्तर भारत में अपना प्रभाव फिर से जमा लिया । 1761 से 1772 तक उन्होंने वापस रोहिलखंड पर आक्रमण किया और रोहिलखंड में नजीर दुला के पुत्र को भयानक पूरी तरीके से पराजित किया और पूरे रोहिल्ला को ध्वस्त कर दिया नजीबुदौला की कब्र को भी तोड़ दिया और संपूर्णता भारत में फिर अपना परचम फैला दिया और दिल्ली को वापस उन्होंने मुगल सम्राट शाह आलम को वापस दिल्ली की गद्दी पर बैठाया और पूरे भारत पर शासन करना फिर से प्रारंभ कर दिया महादाजी सिंधिया और नाना फडणवीस का मराठा पुनरुत्थान में बहुत बड़ा योगदान है और माधवराव पेशवा की वजह से ही यह सब हो सका वापस मराठा साम्राज्य बना बाद में मराठों ने ब्रिटिश को भी पराजित किया और सालाबाई की संधि की। पानीपत का युद्ध भारत के इतिहास का सबसे काला दिन रहा। और इसमें कई सारे महान सरदार मारे गए जिस देश के लिए लड़ रहे थे और अपने देश के लिए लड़ते हुए सभी श्रद्धालुओं की मौत हो गई इसमें सदाशिवराव भाऊ, शमशेर बहादुर, इब्राहिम खान गार्दी, विश्वासराव, जानकोजी सिंधिया की भी मृत्यु हो गई।इस युद्ध के बाद खुद अहमद शाह दुर्रानी ने मराठों की वीरता को लेकर उनकी काफी तारीफ की और मराठों को सच्चा देशभक्त भी बताया।

इस युद्ध में मराठा के लगभग सभी छोटे-बड़े सरदार मारे गए इस संग्राम पर टिप्पणी करते हुए जे.एन.सरकार जादुनाथ सरकारने लिखा है इस देशव्यापी विपत्ति में संम्भवत महाराष्ट्र का कोई ऐसा परिवार ने होगा जिसका कोई न कोई सदस्य इस युद्ध में मारा न गया हो  !

प्रभाव

  • मराठों की दुर्गति
  • अहमदशाह की अन्तिम विजय
  • नानासाहेब की मृत्यु
  • मुगलों की दुर्दशा
  • अंग्रेजों के प्रभाव में वृद्धि
  • सिख सत्ता की स्थापना
  • हैदर अली का उदय
  • माधवरा

सन्दर्भ

साँचा:टिप्पणीसूचीपानीपत का तीसरा युद्ध अहमद शाह अब्दाली व मराठों के बीच 14जनवरी1761को सुबह 8:00बजे लङा गया जिसमे अहमद शाह अब्दाली की जीत हुई।