पांडुरंग सदाशिव खानखोजे
साँचा:ज्ञानसन्दूक
| label1      = Wardha, महाराष्ट्र
| data1       = 7 नवम्बर 1883
Wardha, महाराष्ट्र
| label2      = मौत
| data2       = साँचा:Death date and age
नागपुर, महाराष्ट्र
| label3      = मौत की वजह
| data3       = 
| data4       = 
| label4      = शरीर मिला
| label5      = समाधि
| class5      = label
| data5       = {{{resting_place}}}
| label6      = आवास
| class6      = label
| data6       = 
| label7      = राष्ट्रीयता
| data7       = 
| label8      = उपनाम
| class8      = उपनाम
| data8       = 
| label9 = जाति
| data9 = 
| label10 = नागरिकता
| data10 = 
| label11 = शिक्षा
| data11 = {{{शिक्षा}}}
| label12 = शिक्षा की जगह
| data12 = 
| label13 = पेशा
| class13 = भूमिका
| data13 = 
| label14 = कार्यकाल
| data14 = 
| label15 = संगठन
| data15 = 
| label16 = गृह-नगर
| data16 = 
| label17 = पदवी
| data17 = 
| label18 = वेतन
| data18 = 
| label19 = कुल दौलत
| data19 = 
| label20 = ऊंचाई
| data20 = 
| label21 = भार
| data21 = {{{भार}}}
| label22 = प्रसिद्धि का कारण
| data22 = 
| label23 = अवधि
| data23 = 
| label24 = पूर्वाधिकारी
| data24 = 
| label25 = उत्तराधिकारी
| data25 = 
| label26 = राजनैतिक पार्टी
| data26 = 
| label27 = बोर्ड सदस्यता
| data27 = 
| label28 = धर्म
| data28 = 
| label29 = जीवनसाथी
| data29 = 
| label30 = साथी
| data30 = 
| label31 = बच्चे
| data31 = 
| label32 = माता-पिता
| data32 = 
| label33 = संबंधी
| data33 = 
| label35 = कॉल-दस्तखत
| data35 = 
| label36 = आपराधिक मुकदमें
| data36 = 
| label37 = 
| data37 = साँचा:Br separated entries
| class38 = label
| label39 = पुरस्कार
| data39 = 
| data40 = 
| data41 = 
| data42 = 
}}
पाण्डुरंग सदाशिव खानखोजे (7 नवम्बर 1883 – 22 जनवरी 1967) भारत के एक स्वतन्त्रता सेनानी, क्रान्तिकारी, विद्वान, इतिहासकार तथा कृषि वैज्ञानिक थे। वे गदर पार्टी के संस्थापकों में से एक थे।
पाण्डूरंग खानखोजे का जन्म नवम्बर १८८३ में वर्धा में हुआ था। उनके पिता वर्धा में याचिका लिखने का कार्य करते थे। उनका बचपन वर्धा में ही बीता और वहीं उनकी प्राथमिक एवं मिडिल स्कूल की शिक्षा पूरी हुई। उसके पश्चात उच्च शिक्षा के लिए वे नागपुर आ गए। उस समय वे महान स्वतन्त्रा सेनानी बालगंगाधर तिलक के राष्ट्रवादी कार्यों से बहुत प्रभावित थे। १९०० के प्रथम दशक में किसी समय वे भारत से बाहर जाने के लिए एक समुद्री यात्रा पर निकल पड़े और अन्ततः संयुक्त राष्ट्र अमेरिका जा पहुँचे। यहाँ उन्होने वाशिंगटन स्टेट कॉलेज में प्रवेश लिया जिसका नाम अब वाशिंगटन स्टेट विश्वविद्यालय है। वहाँ से उन्होने १९१३ में स्नातक परीक्षा उत्तीर्ण की।