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साँचा:जैन धर्म जय जिनेन्द्र! एक प्रख्यात अभिवादन है। यह मुख्य रूप से जैन धर्म के अनुयायियों द्वारा प्रयोग किया जाता है। इसका अर्थ होता है "जिनेन्द्र भगवान (तीर्थंकर) को नमस्कार"।साँचा:Sfn यह दो संस्कृत अक्षरों के मेल से बना है: जय और जिनेन्द्र।
- जय शब्द जिनेन्द्र भगवान के गुणों की प्रशंसा के लिए उपयोग किया जाता है।
- जिनेन्द्र उन आत्माओं के लिए प्रयोग किया जाता है जिन्होंने अपने मन, वचन और काया को जीत लिया और केवल ज्ञान प्राप्त कर लिया हो।साँचा:Sfnसाँचा:Sfnसाँचा:Sfn
दोहा
- चार मिले चौंसठ खिले,मिले बीस कर जोड़।
- सज्जन से सज्जन मिले, हर्षित चार करोड़।।
अर्थात्-:जब भी हम किसी समाजबंधु से मिलते हैं तो दूर से ही हमारे चेहरे पर मुस्कान आ जाती है और दोनों हाथ जुड़ जाते हैं हमारे मुख से जय जिनेन्द्र निकल ही जाता है।