More actions
ब्रह्मसूत्र, वेदान्त दर्शन का आधारभूत ग्रन्थ है। इसके रचयिता महर्षी बादरायण हैं। इसे वेदान्त सूत्र, उत्तर-मीमांसा सूत्र, शारीरक सूत्र और भिक्षु सूत्र आदि के नाम से भी जाना जाता है। इस पर अनेक आचार्यांने भाष्य भी लिखे हैं। ब्रह्मसूत्र में उपनिषदों की दार्शनिक एवं आध्यात्मिक विचारों को साररूप में एकीकृत किया गया है।
वेदान्त के तीन मुख्य स्तम्भ माने जाते हैं - उपनिषद्, श्रीमद्भगवद्गीता एवं ब्रह्मसूत्र। इन तीनों को प्रस्थानत्रयी कहा जाता है। इसमें उपनिषदों को श्रुति प्रस्थान, गीता को स्मृति प्रस्थान और ब्रह्मसूत्रों को न्याय प्रस्थान कहते हैं। ब्रह्मसूत्रों को न्याय प्रस्थान कहने का अर्थ है कि ये वेदान्त को पूर्णतः तर्कपूर्ण ढंग से प्रस्तुत करता है। (न्याय = तर्क)
परिचय
प्राचीन परम्परा के अनुसार वेदान्तसूत्र के लेखक बादरायण माने जाते हैं। पर इन सूत्रों में ही बादरायण का नामोल्लेख करके उनके मत का उद्धरण दिया गया है अत: कुछ लोग इसे बादरायण की कृति न मानकर किसी परवर्ती संग्राहक की कृति कहते हैं। बादरायण और व्यास की कभी-कभी एक माना जाता है। जैमिनि ने अपने पूर्वमीमांसासूत्र में बादरायण का तथा बादरायण ने वेदांतसूत्रों में जैमिनि का उल्लेख किया है। यदि बादरायण और व्यास एक ही हैं तो महाभारत की परंपरा के अनुसार जैमिनि व्यास के शिष्य थे। और गुरु अपनी कृति में शिष्य के मत का उल्लेख करे, यह विचित्र सा लगता है।
इन सूत्रों में सांख्य, वैशेषिक, जैन और बौद्ध मतों की और संकेत मिलता है। गीता की ओर भी इशारा किया गया है। इन सूत्रों में बहुत से ऐसे आचार्यों और उनके मत का उल्लेख है जो श्रौत सूत्रों में भी उल्लिखित हैं। गरुड़पुराण, पद्मपुराण और मनुस्मृति वेदांत सूत्रों की चर्चा करते हैं। हापकिंस के अनुसार हरिवंश का रचनाकाल ईसा की दूसरी शताब्दी है और इसमें स्पष्ट रूप से वेदान्तसूत्र का उल्लेख है। कीथ के अनुसार यह रचना २०० ई. के बाद की नहीं होगी। जाकोबी इसे २०० से ४५० ई. के बीच का मानते हैं। मैक्समूलर इसे भगवद्गीता के पहले की रचना मानते हैं क्योंकि उसमें ब्रह्मसूत्र शब्द आया है जो वेदान्तसूत्र का पर्यायवाची है। भारतीय विद्वान् इसका रचनाकाल ई.पू.५०० से २०० के बीच मानते हैं।
जिस प्रकार मीमांसासूत्र में वेद के कर्मकांड भाग की व्यख्या प्रस्तुत की गई है उसी तरह चार अध्यायों में विभाजित लगभग ५०० वेदान्तसूत्रों में वैदिक वाङ्मय के अंतिम भाग अर्थात् उपनिषदों की व्याख्या दी गई है। उपनिषदों में प्रतिपादित सिद्धांत इतने परस्पर विरोधी तथा बिखरे हुए है कि उनसे एक पप्रकार का दार्शनिक मत निकालना कठिन है। वेदान्त सूत्र 'समन्वय' के सिद्धांत का सहारा लेकर उपनिषदों में एक दार्शनिक दृष्टि का प्रतिपादन करता है। पर ये सूत्र स्वयं इतने संक्षिप्त है कि बिना व्याख्या के सहारे उनसे अर्थ निकालना कठिन है। इनकी संक्षिप्तता के कारण इनपर कई व्याख्याएँ लिखी गई जो परस्पर विरोधी दृष्टि से वेदांत का प्रतिपादन करती है। वेदांत के सभी प्रस्थान इन सूत्रों को अपना प्रमाण मानते हैं। ब्रह्म का प्रतिपादन करने के कारण इन सूत्रों को ब्रह्मसूत्र भी कहते हैं।
संरचना
ब्रह्मसूत्र में चार अध्याय हैं जिनके नाम हैं - समन्वय, अविरोध, साधन एवं फल। प्रत्येक अध्याय के चार पाद हैं। कुल मिलाकर इसमें ५५५ सूत्र हैं।
अध्याय नाम | सूत्र सँख्या | अधिकरण संख्या |
---|---|---|
समन्वय | 134 | 39 |
अविरोध | 157 | 47 |
साधन | 186 | 67 |
फल | 78 | 38 |
कुल | 555 | 191 |
भाष्य
ब्रह्मसूत्र पर बहुत से भाष्य लिखे गए हैं। उनमें सबसे प्राचीन श्री निम्बार्क भाष्य है। श्री शंकराचार्य के भाष्य पर वाचस्पति मिश्र तथा पद्मपाद ने भाष्य लिखा। श्री रामानुजाचार्य द्वारा ब्रह्मसूत्र का जो भाष्य लिखा गया उसका नाम 'श्रीभाष्य' है।
इसके अतिरिक्त श्री मध्वाचार्य, श्रीजयतीर्थ, श्री व्यासतीर्थ, श्री भास्कर, आदि ने भी ब्रह्मसूत्र के भाष्य लिखे हैं।
सूत्रकार | शताब्दी | दर्शन | सम्प्रदाय | विषय/प्रभाव[१][२] |
श्री आदि शंकराचार्य[३] | ५वीं शताब्दी ईपू | अद्वैत | ? | एको ब्रह्म द्वितीयो नास्ति |
श्री भास्कराचार्य ,[४] Yadava Prakasha[५] |
१०वीं शताब्दी | भेदाभेद | ? | भक्ति आन्दोलन |
श्री रामानुजाचार्य [६] | ११वीं शताब्दी | विशिष्टाद्वैत | श्री (लक्ष्मी) सम्प्रदाय | Qualified Advaita वैष्णव धर्म[७] |
श्री मध्वाचार्य, (इन्हें पूर्णप्रज्ञ तथा आनन्दतीर्थ भी कहते हैं)[८] | १३वीं शताब्दी | द्वैत | ब्रह्म (मध्व) \ सम्प्रदाय | द्वैतवाद
Vaishnavism |
श्री निम्बार्काचार्य [९] | ३०९६ ईसापूर्व [१०] | स्वाभाविक द्वैताद्वैत | कुमार सम्प्रदाय | द्वैत अद्वैत |
श्रीकण्ठ[११] | १३वीं शताब्दी | शैव | शैव | Theistic Monism शैव सिद्धान्त[१२][१३] |
श्री वल्लभाचार्य [१४] | १६वीं शताब्दी | शुद्धाद्वैत | रूद्र सम्प्रदाय | शुद्ध अद्वैत |
शुक[१५] | १६वीं शताब्दी | भेदाभेद | ? | Revised dualism |
बलदेव विद्याभूषण (गौडीय वैष्णव) | १६वीं शताब्दी | अचिन्त्यभेदाभेद | ब्रह्म-मध्व-गौडीय वैष्णव सम्प्रदाय (ISKCON) | अचिन्त्यभेदाभेद |
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
- देवनागरी में ब्रह्मसूत्र
- ब्रह्मसूत्र के शांकर भाष्य (अंग्रेजी एवं संस्कृत में)
- Brahma Sutra Bhashya of Adi Shankaracharya - Translated by George Thibaut
- Sri Bhashya - Ramanujacharya's commentary on Brahma Sutras
- ब्रह्मसूत्रशांकरभाष्यम् (गोविन्दानन्द की भाष्यरत्नप्रभा, वाचस्पतिमिश्र की भामती एवं आनन्दगिरि के न्यायनिर्णय भाष्यों सहित गूगल पुस्तक)
- Brahma Sutras by Swami Sivananda (Basic Introduction)
- Swami Sivananda's complete translation and commentary on Brahma Sutras.
- Swami Sivananda's section of Brahma Sutras refuting Buddhism, Jainism and other schools.
- The Internet Sacred Texts Archive: Read the complete eText of the Vedanta-Sutras -- with the commentary of Ramanuja Translated by George Thibaut Sacred Books of The East Vol. 48
- Brahma sutras (Vedanta sutras) online
- ब्रह्मसूत्र (ओशो की प्रिय पुस्तकें)
- ↑ सन्दर्भ त्रुटि: अमान्य
<ref>
टैग;sradhakrish27
नामक संदर्भ की जानकारी नहीं है - ↑ Steven Katz (2000), Mysticism and Sacred Scripture, Oxford University Press, साँचा:ISBN, page 12
- ↑ साँचा:Cite book
- ↑ साँचा:Cite book
- ↑ साँचा:Cite book
- ↑ साँचा:Cite book
- ↑ साँचा:Cite book
- ↑ साँचा:Cite book
- ↑ साँचा:Cite book
- ↑ साँचा:Cite book
- ↑ साँचा:Cite book
- ↑ K Sivaraman (2001), Śaivism in Philosophical Perspective, Motilal Banarsidass, साँचा:ISBN, pages 33-36, 472-499
- ↑ Gavin Flood (1989), Shared Realities and Symbolic Forms in Kashmir Śaivism, Numen, Vol. 36, Fasc. 2, pages 225-247
- ↑ साँचा:Cite book
- ↑ साँचा:Cite book