मेनू टॉगल करें
Toggle personal menu
लॉग-इन नहीं किया है
Your IP address will be publicly visible if you make any edits.

रघुनाथ कृष्ण जोशी

भारतपीडिया से
WikiDwarf (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित १४:२०, ३ जुलाई २०२० का अवतरण (नया लेख बनाया गया)
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

रघुनाथ कृष्ण जोशी (1936 – 2008) कैलिग्राफर, डिजाइनर, कवि एवं शिक्षक थे। वे देवनागरी के मंगल फॉण्ट के जनक थे। उनकी वजह से आज से हिन्दी और मराठी जैसी भाषाओं को इंटरनेट पर एक अलग पहचान मिली। वे वैदिक संस्कृत लिपि को मान्यता देने संबंधी एक प्रस्ताव लेकर अमरीका गए थे और वहाँ एअरपोर्ट पर ही उनका निधन हो गया। उन्होने भारत की सभी लिपियों का अध्ययन करके 'देशनागरी' नामक लिपि विकसित की।

वे भारतीय लिपियों के कम्प्यूटरीकरण हेतु सुन्दर फॉण्ट डिजाइन करने वाले, टाइपोग्राफर तथा कैलिग्राफर थे। वे देवनागरी लिपि हेतु यूनिकोड मानकों के निर्धारण के लिए निरन्तर कार्यरत थे। श्री जोशी ने अनेकानेक फॉण्ट्स के कम्प्यूटरीकरण किए, जिसमें लिनक्स प्लेटफॉर्म में हिन्दी का रघु, तथा माइक्रोसॉफ्ट विण्डोज का डिफॉल्ट हिन्दी फॉण्ट मंगल शामिल है। प्रोफेसर जोशी भारतीय भाषाओं/लिपियों के कम्प्यूटरीकरण को पूर्णतः फोनेटिक, सरल, सपाट और एकमुखी बनाने के लिए मौलिक शोधपूर्ण सरल प्रौद्योगिकी के मानकीकरण के लिए सतत् प्रयत्नशील थे।

परिचय

जोशी को बचपन से ही शब्दों के साथ लगाव था। कोल्हापुर की एक दु‍कान के नामपट्ट से उनका अक्षरों के साथ नाता जुडा़। उसके बाद अक्षर और रकृ कभी भी अलग नहीं हुए।

1954 में उन्होंने मुंबई के जेजे स्कूल मे प्रवेश लिया। उस समय जेजे में टाइपोग्राफी नाम का विषय ही नहीं था। अभ्यास के लिए फ्रेंच और अन्य अक्षर रचनाओं का किया जाता था। 1963 में वे जेजे में अतिथि प्राध्यापक के रूप मे नियुक्त हुए। उन्होंने यहाँ अक्षरांकन (कैलिग्राफी) विषय प्रारंभ किया।

अक्षरों के इस पागलपन की वजह से ही रकृ ने शिलालेखों के अध्ययन का संकल्प लिया। शिलालेखों को खोजना, उनको पढ़ने और समझने के लिए एक ओर पुरातत्व वैज्ञानिकों के साथ रहने लगे तो दूसरी ओर व्यावसायिक क्षेत्र में डिजाइनें बनाकर नाम कमाया।

नेरोलॅक, यह है रंगों की कंपनी, उसके लिए भी श्वेत और श्याम (ब्लेक एंड व्हाइट) जमाने में रंगों के विज्ञापन को उन्होंने अक्षरांकन और कविता के माध्यम से लोकप्रिय किया। नेरोलॅक को लोकप्रिय बनाने में रकृ बहुत बड़ा योगदान था। कविता के क्षेत्र में भी रकृ ने बहुत प्रयोग किए।

हैंगर नामक कविता में पहली बार मराठी में हैंगर से लटके हुए शब्दों के रूप में कविता पढ़ने को मिली। रकृजी ने मूर्त कविता को नई जान देने का प्रयत्न किया। "शब्द केवल शब्द, स्वरूप क्यों नहीं?" यह उनके मन का प्रश्न था जिसके उत्तर के लिए ही मराठी कविता को नया स्वरूप मिला। यहाँ तक ही रकृ रूकेंगे कैसे?

उन्होंने हैपनिंग नामक कार्यक्रम से कला सीधा जनमानस तक पहुँचाने का प्रयास किया। जेजे से हुतात्मा चौक के बीच कहीं भी कैनवास फैलाकर अक्षरांकन शुरू कर देते थे और आने जाने वालों में कौतुहल जगाकर उनको अक्षरकुल में शामिल कर लेते थे।

यह हैपनिंग केवल मौज नहीं था। उनका मानना था कि प्रत्येक व्यक्ति में कला छुपी होती है और उसको सामने लाने के लिए उसे बस एक मौका दिया जाना चाहिए।

इसीलिए सभी लिपियों का अध्ययन करके उन्होंने 'देशनागरी' नामक लिपि विकसित की। जब वे उल्का में थे, तब उन्होंने अक्षरांकन के लिए स्कॉलरशिप शुरू की।

मृत्यु

प्रोफेसर रा.कृ, जोशी जी का 5 फरवरी को सान फ्रांसिस्को, अमेरिका में दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। प्रो॰ जोशी जी वैदिक संस्कृत स्वर-चिह्नों के यूनिकोड मानकीकरण के सम्बन्ध में यूनिकोड कोन्सोर्टियम की एक बैठक में विशेष उपस्थापन पेश करने के लिए सान-फ्रांसिस्को गए हुए थे। प्रो॰ जोशी सी-डैक मुम्बई में विजिटिंग डिजाइन स्पेशलिस्ट के रूप में कार्यरत थे।

बाहरी कड़ियाँ