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साँचा:ज्ञानसन्दूक दार्शनिकअंतोनियो ग्राम्शी (१८९१- १९३७) इटली की कम्युनिस्ट पार्टी के संस्थापक, मार्क्सवाद के सिद्धांतकार तथा प्रचारक थे। बीसवीं सदी के आरंभिक चार दशकों के दौरान दक्षिणपंथी फ़ासीवादी विचारधारा से जूझने और साम्यवाद की पक्षधरता के लिए विख्यात हैं।
जीवनी
आरंभिक जीवन
ग्राम्शी का जन्म २२ जनवरी १८९१ को सरदानिया में कैगलियारी के एल्स प्रांत में हुआ था। फ़्रांसिस्को ग्राम्शी और गिसेपिना मर्सिया की सात संतानों में से अंतोनियो ग्राम्शी चौथी संतान थे। पिता के साथ ग्राम्शी के कभी भी मधुर संबंध नहीं रहे लेकिन माँ के साथ उनका गहरा लगाव था। माँ की सहज बयान शैली, परिस्थितियों के अनुरूप लचीलापन और जीवंत हास्यबोध का उनके व्यक्तित्व पर गहरा प्रभाव पड़ा।[१]
क्रांतिकारी जीवन
क्रांतिकारी गतिविधियों के लिए इटली की फ़ासीवादी अदालत ने ग्राम्शी को १९२८ में २० वर्ष के कारावास की सज़ा सुनायी।[२] मार्क्सवाद द्वारा प्राप्त क्रांतिधर्मी चेतना को ग्राम्शी ने अपने सामाजिक और राजनीतिक चिंतन में अभिव्यक्ति दी। ग्राम्शी का चिंतन और लेखन दो अवधियों में विभाजित किया जाता है- कारावास पूर्व (१९१0-२६)[३][४] और कारावास पश्चात (१९२९-३५)[५]। कारावास पूर्व लेखन का मूल स्वर जहाँ राजनीतिक था, वहीं कारावास के पश्चात ग्राम्शी ऐतिहासिक और सैद्धांतिक लेखन में प्रवृत्त हुए।[६]
विचारधारा और लेखन
बीसवीं सदी के तीसरे दशक में यूरोप की कुछ कम्युनिस्ट पार्टियों के बीच यंत्रवादी दर्शन का बोलबाला था। ग्राम्शी ने, दक्षिणपंथी भटकाव का आधार, इस यंत्रवादी दार्शनिक विचारधारा का पर्दाफ़ाश करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी। दर्शन के क्षेत्र में ग्राम्शी ने ऐतिहासिक भौतिकवाद की समस्याओं की ओर प्रमुखता से ध्यान दिया। कारावास के दौरान लिखी गयी प्रिज़न नोटबुक्स ग्राम्शी की विचारधारा और सैद्धांतिक लेखन की प्रतिनिधि दस्तावेज़ है।[७] इसमें उन्होंने आधार तथा अधिरचना, सर्वहारा वर्ग और बुद्धिजीवी समुदाय के पारस्परिक संबंधों की पड़ताल की। विचारधारा (दर्शन, कला, नीति आदि) की सापेक्ष स्वतंत्रता का गहन अध्ययन और विश्लेषण किया। इतावली संस्कृति का ग्राम्शी द्वारा किया गया अध्ययन, कैथोलिकवाद, क्रोचे के अभिव्यंजनावादी दर्शन और समाजशास्त्र में प्रत्ययवादी सिद्धांतों की आलोचना, मार्क्सवादी चिंतनधारा में महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं।[८]
सबाल्टर्न चिंतन
साँचा:Main कारावास के दौरान ग्राम्शी को जनवादी विचारधारा पर चिंतन करने से रोकने के लिए फ़ासीवादी ताकतों ने लगातार प्रयास किये। अवरोधों का रचनात्मक प्रतिरोध करते हुए 'प्रिज़न नोटबुक्स'[९] में ग्राम्शी ने चिंतन प्रक्रिया में एक नए स्वसंदर्भित पद 'सबाल्टर्न' का प्रयोग किया। सबाल्टर्न, समाज के दलित और वंचित समुदाय की, अधीनस्थता का द्योतक है।[१०] सबाल्टर्न पद औपनिवेशिक परिवेश में वंचितों के हितों की पक्षधरता और उनकी समस्याओं पर सरोकार का प्रतीक बन गया। ग्राम्शी के चिंतन ने समानांतर इतिहास लेखन विषयक सबाल्टर्न अध्ययन धारा को गहराई से प्रभावित किया।[११]
इन्हें भी देखें
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
- ↑ साँचा:Cite web
- ↑ दर्शनकोश, प्रगति प्रकाशन, मास्को, १९८0, पृष्ठ-१८७, ISBN: ५-0१000९0७-२
- ↑ साँचा:Cite web
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- ↑ दर्शनकोश, प्रगति प्रकाशन, मास्को, १९८0, पृष्ठ-१८७, ISBN: ५-0१000९0७-२
- ↑ साँचा:Cite web
- ↑ Selections from the Prison Notebooks of Antonio Gramsci, Ed- Q. Hoare & G.N. Smith, 1973 page- 53
- ↑ Edward Said's foreword in Selected Subaltern Studies, ed- Ranjit Guha & GC Spivak, OUP, 1984, page- vi