मेनू टॉगल करें
Toggle personal menu
लॉग-इन नहीं किया है
Your IP address will be publicly visible if you make any edits.

जया एकादशी

भारतपीडिया से
WikiDwarf (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित १६:२५, ५ फ़रवरी २०२० का अवतरण (नया लेख बनाया गया)
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

साँचा:स्रोतहीन साँचा:ज्ञानसन्दूक त्योहार

हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशियाँ होती हैं। जब अधिकमास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है। जया एकादशी के विषय में जो कथा प्रचलित है उसके अनुसार धर्मराज युधिष्ठिर भगवान श्री कृष्ण से निवेदन करते हैं कि माघ शुक्ल एकादशी को किनकी पूजा करनी चाहिए, तथा इस एकादशी का क्या महात्मय है। श्री कृष्ण कहते हैं माघ शुक्ल पक्ष की एकादशी को "जया एकादशी" कहते हैं। यह एकादशी बहुत ही पुण्यदायी है, इस एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति नीच योनि जैसे भूत, प्रेत, पिशाच की योनि से मुक्त हो जाता है।साँचा:ASF श्री कृष्ण ने इस संदर्भ में एक कथा भी युधिष्ठिर को सुनाई।

जया एकादशी की कथा

नंदन वन में उत्सव चल रहा था। इस उत्सव में सभी देवता, सिद्ध संत और दिव्य पुरूष वर्तमान थे। उस समय गंधर्व गायन कर रहे थे और गंधर्व कन्याएं नृत्य प्रस्तुत कर रही थीं। सभा में माल्यवान नामक एक गंधर्व और पुष्पवती नामक गंधर्व कन्या का नृत्य चल रहा था। इसी बीच पुष्यवती की नज़र जैसे ही माल्यवान पर पड़ी वह उस पर मोहित हो गयी। पुष्यवती सभा की मर्यादा को भूलकर ऐसा नृत्य करने लगी कि माल्यवान उसकी ओर आकर्षित हो। माल्यवान गंधर्व कन्या की भंगिमा को देखकर सुध बुध खो बैठा और गायन की मर्यादा से भटक गया जिससे सुर ताल उसका साथ छोड़ गये।

इन्द्र को पुष्पवती और माल्यवान के अमर्यादित कृत्य पर क्रोध हो आया और उन्होंने दोनों को श्राप दे दिया कि आप स्वर्ग से वंचित हो जाएं और पृथ्वी पर निवास करें। मृत्यु लोक में अति नीच पिशाच योनि आप दोनों को प्राप्त हों। इस श्राप से तत्काल दोनों पिशाच बन गये और हिमालय पर्वत पर एक वृक्ष पर दोनों का निवास बन गया। यहां पिशाच योनि में इन्हें अत्यंत कष्ट भोगना पड़ रहा था। एक बार माघ शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन दोनो अत्यंत दु:खी थे उस दिन वे केवल फलाहार रहे। रात्रि के समय दोनों को बहुत ठंढ़ लग रही थी अत: दोनों रात भर साथ बैठ कर जागते रहे। ठंढ़ के कारण दोनों की मृत्यु हो गयी और अनजाने में जया एकादशी का व्रत हो जाने से दोनों को पिशाच योनि से मुक्ति भी मिल गयी। अब माल्यवान और पुष्पवती पहले से भी सुन्दर हो गयी और स्वर्ग लो में उन्हें स्थान मिल गया।

देवराज ने जब दोनों को देखा तो चकित रह गये और पिशाच योनि से मुक्ति कैसी मिली यह पूछा। माल्यवान के कहा यह भगवान विष्णु की जया एकादशी का प्रभाव है। हम इस एकादशी के प्रभाव से पिशाच योनि से मुक्त हुए हैं। इन्द्र इससे अति प्रसन्न हुए और कहा कि आप जगदीश्वर के भक्त हैं इसलिए आप अब से मेरे लिए आदरणीय है आप स्वर्ग में आनन्द पूर्वक विहार करें।

कथा सुनकार श्री कृष्ण ने यह बताया कि जया एकादशी के दिन जगपति जगदीश्वर भगवान विष्णु ही सर्वथा पूजनीय हैं। जो श्रद्धालु भक्त इस एकादशी का व्रत रखते हैं उन्हें दशमी तिथि से को एक समय आहार करना चाहिए। इस बात का ध्यान रखें कि आहार सात्विक हो। एकादशी के दिन श्री विष्णु का ध्यान करके संकल्प करें और फिर धूप, दीप, चंदन, फल, तिल, एवं पंचामृत से विष्णु की पूजा करे।

विधि

साँचा:Manual पूरे दिन व्रत रखें संभव हो तो रात्रि में भी व्रत रखकर जागरण करें। अगर रात्रि में व्रत संभव न हो तो फलाहार कर सकते हैं। द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को भोजन करवाकर उन्हें जनेऊ सुपारी देकर विदा करें फिर भोजन करें। इस प्रकार नीयम निष्ठा से व्रत रखने से व्यक्ति पिशाच योनि से मुक्त हो जाता है।साँचा:ASF

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

साँचा:हिन्दू पर्व-त्यौहार