सिंधु घाटी सभ्यता
| सिंधु घाटी सभ्यता | |
| चित्र:Indus Valley Civilization map.svg | |
| अवधि | कांस्य युग |
| कालखंड | ईसा पूर्व 3300 – ईसा पूर्व 1300 |
| उत्तरवर्ती सभ्यता | वैदिक सभ्यता |
सिंधु घाटी सभ्यता (ईसा पूर्व 3300 – 1300) दक्षिण एशिया में विकसित एक प्राचीन कांस्य युग की सभ्यता थी। यह मुख्य रूप से वर्तमान पाकिस्तान और पश्चिमी भारत के क्षेत्रों में फैली थी। इस सभ्यता के प्रमुख नगरों में हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, धोलावीरा और राखीगढ़ी शामिल हैं।
प्रमुख विशेषताएँ
- योजनाबद्ध नगर निर्माण
- पक्की ईंटों के मकान और जल निकासी प्रणाली
- व्यापारिक और आर्थिक गतिविधियाँ
नगर और स्थल
- हड़प्पा – पंजाब, पाकिस्तान
- मोहनजोदड़ो – सिंध, पाकिस्तान
- धोलावीरा – गुजरात, भारत
- राखीगढ़ी – हरियाणा, भारत
लिपि और भाषा
सिंधु घाटी सभ्यता की लिपि अब तक पूरी तरह पढ़ी नहीं जा सकी है। यह चित्रलिपि के रूप में अंकित की जाती थी।
अर्थव्यवस्था
सिंधु घाटी के लोग में फैली हुई थी। यह सभ्यता मेसोपोटामिया और प्राचीन मिस्र की सभ्यताओं के समकालीन थी। प्रमुख नगरों में हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, धोलावीरा, कालीबंगा और राखीगढ़ी शामिल थे।
विशेषताएँ
सिंधु घाटी सभ्यता अपनी उन्नत शहरी योजना, जल निकासी प्रणाली, तथा कला और शिल्प के लिए जानी जाती है। इसके नगरों में सुव्यवस्थित सड़कों, जल निकासी प्रणाली, और विशाल सार्वजनिक स्नानागार जैसी संरचनाएँ मिली हैं।
अर्थव्यवस्था
इस सभ्यता की अर्थव्यवस्था कृषि और व्यापार पर आधारित थी। यहाँ के लोग गेहूं, जौ, और कपास की खेती करते थे। व्यापार मेसोपोटामिया और अन्य सभ्यताओं के साथ समुद्री और स्थल मार्गों के माध्यम से होता था।
भाषा और लेखन
सिंधु घाटी सभ्यता की लिपि अब तक पढ़ी नहीं जा सकी है।[१] इसके अभिलेख टेराकोटा मुहरों पर मिलते हैं, जिन पर चित्रलिपि जैसी लेखन प्रणाली देखी गई है।
पतन के कारण
सिंधु घाटी सभ्यता के पतन के बारे में कई सिद्धांत हैं। कुछ विद्वानों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन, सरस्वती नदी के सूखने, या आर्यों का आगमन इसके पतन के प्रमुख कारण रहे होंगे।
महत्वपूर्ण स्थलों की सूची
- मोहनजोदड़ो (सिंध, पाकिस्तान)
- हड़प्पा (पंजाब, पाकिस्तान)
- धोलावीरा (गुजरात, भारत)
- राखीगढ़ी (हरियाणा, भारत)
- कालीबंगा (राजस्थान, भारत)
संदर्भ
- ↑ Possehl, Gregory L. (2002). The Indus Civilization: A Contemporary Perspective. Rowman Altamira. ISBN 978-0-7591-0172-2.