अयन बल

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अयन बल विभिन्न छः प्रकार के बलों में से एक है। अन्य पाँच बल काल बल, चेष्टाबल, उच्च बल, दिक् बल और स्थान बल हैं।[१]

प्रत्येक ग्रह विषुवत रेखा के उतर या दक्षिण में स्थित होता है और अपनी स्थिति के अनुसार बल प्राप्त करता है। इस स्थिति को ध्यान में रखते हुए निकाले गये बल को अयन बल कहा जाता है। इस बल को निकालने के लिये क्रान्ति ज्ञात की जाती है। अयन बल उतरायन व दक्षियाणन पर आधारित है।

ग्रह की विषुवत रेखा से कोणीय दूरी ही क्रान्ति कहलाती है। सूर्य, मंगल, शुक्र और गुरु जब उतरायन में चलते हुए अपने अधिकतम क्रान्ति तक पहुंचते है तो इनका बल अधिकतम होता है।

इसके विपरीत दक्षिणायन में चलते हुए चन्द्र और शनि अधिकतम बल प्राप्त करते है। बुध दोनों अयनों में शक्तिशाली होता है।

सन्दर्भ

  1. गोपेश कुमार ओझा (२००१). "फलदीपिका - भावार्थबोधिनी". मोतीलाल बनारसीदास पब्लिकेशन्स. पृ॰ ८२. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9788120821477. मूल से 25 अक्तूबर 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 25 अक्तूबर 2014.

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