लग्न

भारतपीडिया से
imported>संजीव कुमार द्वारा परिवर्तित २१:१०, १८ अगस्त २०२१ का अवतरण (2402:8100:22D4:F1D8:CB49:E72C:FD3:B304 (Talk) के संपादनों को हटाकर अनुनाद सिंह के आखिरी अवतरण को पूर्ववत किया)
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

भारतीय ज्योतिष में, लग्न उस क्षण को कहते हैं जिस क्षण आत्मा धरती पर अपनी नयी देह से संयुक्त होती है। व्यक्ति के जन्म के समय पूर्वी क्षितिज पर जो राशि उदित हो रही होती है उसके कोण को लग्न कहते हैं।

जन्म कुण्डली में 12 भाव होते है। इन 12 भावों में से प्रथम भाव को लग्न कहा जाता है। इसका निर्धारण बालक के जन्म के समय पूर्वी क्षितिज में उदित होने वाली राशि के आधार पर किया जाता है। सरल शब्दों में इसे इस प्रकार समझा जा सकता है। यदि पूरे आसमान को 360 डिग्री का मानकार उसे 12 भागों में बांटा जाये तो 30 डिग्री की एक राशि निकलती है। इन्ही 12 राशियों में से कोई एक राशि बालक के जन्म के समय पूर्व दिशा में स्थित होती है। यही राशि जन्म के समय बालक के लग्न भाव के रूप में उभर कर सामने आती है।

लग्न समय की अवधि

एक लग्न समय लगभग दो घंटे का होता है। इसलिये दो घंटे के बाद लग्न समय स्वतः बदल जाता है। कुण्डली में अन्य सभी भावों की तुलना में लग्न को सबसे अधिक महत्व पूर्ण माना जाता है। लग्न भाव बालक के स्वभाव, रुचि, विशेषताओ और चरित्र के गुणों को प्रकट करता है। मात्र लग्न जानने के बाद किसी व्यक्ति के स्वभाव व विशेषताओं के विषय में 50% जानकारी दी जा सकती है।

ज्योतिष में लग्न कुंडली का बड़ा महत्व है। व्यक्ति के जन्म के समय आकाश में जो राशि उदित होती है, उसे ही उसके लग्न की संज्ञा दी जाती है। कुंडली के प्रथम भाव को लग्न कहते हैं। प्रत्येक लग्न के लिए कुछ ग्रह शुभ होते हैं, कुछ अशुभ।। यदि लग्न भाव में 1 अंक लिखा है तो व्यक्ति का लग्न मेष होगा। इसी प्रकार अगर लग्न भाव में 2 है तो व्यक्ति का लग्न वृ्षभ होगा। अन्य लग्नों को इसी प्रकार समझा जा सकता है।

बाहरी कडि़यां

लग्‍न क्‍या है

साँचा:भारतीय ज्योतिष साँचा:वैदिक साहित्य