सम्पातिक काल

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पृ्थ्वी के अपनी धूरी पर घूमने से ही संपातिक काल का जन्म होता है। सम्पातिक काल को इस प्रकार भी समझा जा सकता है, संम्पातिक काल किसी स्थान विशेष के याम्योतर वृत (Meridian Circle) से किसी स्थान विशेष से बसंत संपात बिन्दु (vernal equinox point) से कितना पश्चिम में है। इस कोण का घण्टा, मिनट में मान है। संम्पातिक काल सदा घंटा, मिनट में ही व्यक्त किया जाता है। यह समय 0 से 24 घंटे के मध्य हो सकता है। ]

सरल शब्दों में अर्धरात्रि या दोपहर से अभीष्ट समय तक की अवधि साम्पातिक काल या सम्पातिक इष्ट काल कहलाती है। यह पद्वति प्राचीन काल से ही चली आ रही है। जिसे आज भी प्रयोग में लाया जाता है। साँचा:वैदिक साहित्य