हिन्दू पौराणिक कथाएँ

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साँचा:WPCUP साँचा:सन्दूक हिन्दू धर्म हिन्दू पौराणिक कथाएँ हिन्दू धर्म से सम्बन्धित पारम्परिक विवरणों का एक विशाल संग्रह है। यह संस्कृत-महाभारत, रामायण, पुराण आदि, तमिल-संगम साहित्य एवं पेरिय पुराणम, अनेक अन्य कृतियाँ जिनमें सबसे उल्लेखनीय है। भागवत पुराण; जिसे पंचम वेद का पद भी दिया गया है तथा दक्षिण के अन्य प्रान्तीय धार्मिक साहित्य में निहित है।इनके मूल में स्मृति ग्रन्थ और स्मार्त परम्परा है। यह भारतीय एवं नेपाली संस्कृति का अंग है। एकभूत विशालकाय क्रति होने की जगह यह विविध परम्पराओं का मण्डल है जिसे विविध सम्प्रदायों, व्यक्तियों, दश्न शृंखला, विभिन्न प्रान्तों, भिन्न कालावधि में विकसित किया गया। ऐसा आवश्यक नहीं कि इन्हें ऐतिहासिक `टनाओं का यथा शब्द, वस्तविक विवरण होने की मान्यता सभी हिन्दुओं से प्राप्त हो, पर गूढ़, अधिकाशतः सांकेतिक अर्थयुक्त अवश्य माना गया है।
वेद देवगाथाओं के मूल, जो प्राचीन हिन्दू धर्म से विकसित हुए, वैदिक सभ्यता एवं वैदिक धर्म के समय से जन्में हैं। चतुर्वेदों में उनेक विषयवस्तु के लक्षण मिलतें हैं। प्राचीन वैदिक कथाओं के पात्र, उनके वि’वास तथा मूलकथा का हिन्दू दर्शन से अटूट सम्बन्ध है। वेद चार हैं यथा ऋग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद व सामवेद। कुछ अवतरण ऐसी तात्विक अवधारणा तथा यन्त्रों का उल्लेख करते हैं जो आधुनिक काल के वैज्ञानिक सिद्धान्तों से बहुत मिलते-जुलते हैं।

इतिहास तथा पुराण

संस्कृत की अधिकांश सामग्री महाकाव्यों के रूप में सुरक्षित है। कथाओं के अतिरिक्त इन महाकाव्यों में तत्कालीन समाज, दर्शन्, संस्कृति, धर्म तथा जीवनचर्या पर विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है।

Hindu Mythological Artefact at AP Museum, Amaravathi.jpg

रामायणमहाभारत, ये दो महाकाव्य विषेश्त: विष्णु के दो अवतारों राम एवं कृष्ण की कथा सुनाते हैं। ये इतिहास कहलाए गए हैं। ये दोनो धर्मिक ग्रन्थ् तो हैं ही, दर्शन एवं नैतिकता की अमूल्य निधि भी हैं। इन महाकाव्यों को विभिन्न काण्डों में विभक्त किया गया है जिनमें अनेक लगुकथाएँ हैं जहाँ प्रस्तुत परिस्थियों को पात्र हिन्दू धर्म तथा नैतिकता के अनुसार निभाता है। इनमें से महाकाव्य का सबसे महत्त्वपूर्ण अध्याय है भगवद गीता जिसमें श्री कृष्ण कुरुक्षेत्र के युद्ध से पहले अर्जुन को धर्म, कर्म और नीतिपरायणता का ज्ञान देते हैं।
ये महाकाव्य भी अलग-अलग युगों में रचे गए हैं। वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण त्रेता युग में विष्णु के सातवें अवतार राम की कथा है। महाभारत पाण्डवों तथा विष्णु के आठवें अवतार कृष्ण से सम्बन्धित द्वापर युग में रची रचना है।

कुल 4 युग माने गए हैं-सत~युग अथवा कृत~युग, त्रेतायुग, द्वापरयुग तथा कलियुग।

पुराणों में वे कथाएँ समाहित हैं जो महाकाव्यों में नहीं पायी गयी हैं अथवा उनका क्षणिक उल्लेख है। इनमें संसार की उत्पत्ति, अनेकानेक देवी-देवताओं नायक-नयिकाओं प्राचीनकालीन जीवों ;
असुर, दानव, दैत्य, यक्ष, राक्षस, गन्धर्व, अप्सराओं, किंपुरुषों आदि द्ध के जीवन तथा साहसिक अभियानों की दन्तकथाएँ और कहानियाँ हैं।

भागवद्पुराण सम्भवत: सर्वाधिक पठित एवं विख्यात पुराण है। इसमें भगवान विष्णु के अवतारों के वृत्तान्तों को लिपिबद्ध किया गया है।

ब्रह्माण्ड सृजन एवं ब्रह्माण्ड विज्ञान प्राचीनतम सृजन की कथा ऋगवेद में मिलती है जिसमें ब्रह्माण्ड उत्पत्ति हिरण्यगर्भ-सोने के अण्डे से मानी गई है।

पुरुष सूक्त में कहा गया है कि देवताओं ने एक दिव्य पुरुष की बलि दी, उसके भिन्न अंगों से सभी जीवों की रचना हुई। पुराणों में विष्णु के वराह अवतार पराभौतिक सागर से पृथ्वी को उभार लाए थे।

शतपथ् ब्रह्माण्ड में माना गया है कि आदि में जब प्रजापति-प्रथम सृजनकर्ता अकेले थे तब उन्होंने अपने को पति-पत्नी के दो स्वरूपों में विभक्त कर लिया।

पत्नी ने अपने सृजनकर्ता के साथ इस सम्बन्ध को व्यभिचार माना और उनके प्रेमपाश से बचने के लिये विभिन्न जीव-जन्तुओं का रूप धारण किए पति ने भी उन्हीं रूपों को
धारण्करके पत्नी का अनुकरण किया और इन्हीं संयोगो से विभिन्न प्रजातियों का जन्म हुआ। पुराणों में ब्रह्मा, विष्णु, महेश्वर की ईश्वरीय त्रिमूर्ति के गठन का वर्णन है जो क्रमश:सृजनकर्ता, वहनकर्ता और विनाश कर्ता माने गए हैं।

ब्रह्माण्ड का सर्जनब्रमाण्ड ने किया, विष्णु इसके संरक्षक हैं तथा महादेव शिव् अगले सृजन के लिए इसका विनाश् करतें हे। कुछ किंवदन्तियों में ब्रमाण्ड के सृजनकर्ता विष्णु माने गए हैं जिनकी नाभि से उत्पन्न कमल पर ब्रह्माण्ड आसीन हैं।

समय की प्रकृति

हिंशन्दू व्यवस्था अनुसार ब्रह्माण्ड अनन्त काल तक समय चक्रो में विचरण करता है। 360 ऐसे दिन और रात ब्रह्म का एक वर्ष बनाते हैं। उनका जीवन ऐसे 100 वर्षों की अवधी का है।। प्रति मन्वन्तर के बीच लम्बी अवधि का अन्तराल होता है। इस अवधि में संसार का पुन:सृजन होता है और मनुष्य जनक रूप में नए मनु प्रकट होते हैं। इस समय हम सातवें मन्वन्तर में हैं जिसके मनु वैवस्वत मनु हैं। प्रति मन्वन्तर में 71 महायुग होते हैं। प्रत्येक महायुग चार युगों में विभक्त है-कृता, त्रेता, द्वापर और कलि। इनकी अवधि क्रमश्: 4800, 3600, 2400, 1200 देव वर्षों के बराबर है। हर युग में पवित्रता, नैतिकता, ’शौर्य्, क्षमता, जीवन अवधि तथा सुख का हाzस होता जाता है। इस समय हम कलियुग में हैं जों तत्वानुसार 3102 साल् पूर्व प्रारम्भ हुआ। यह साल् महाभारत के युद्ध का साल माना जाता है। कलियुग के अन्त के लक्षण माने गए हैं वर्णसंकरता, स्थापित मूल्यों का तिरस्कार, धार्मिक प्रथाओं की समाप्ति, क्रूर् एवं बाहरी राजाओं का राज। इसके तुरन्त बाद संसार का प्रलय एवं अग्नि से नाश होगा। सभी ग्रन्थो के अनुसार प्रलय कल्प के अन्तिम चक्र के बाद ही होता है। एक महायुग से दूसरे महायुग में परागमन सहजता से हो जाता है। जीवों का अन्त तीन प्रकार का माना गया है-नैमित्तिक, जो प्रति कल्प के अन्त में ब्रह्म् के दिन के अन्त में होता है। प्राकृतिक विनाश् ब्रह्म् के जीवन के अन्त में होता है। अत्यान्तिक-यह सम्पूर्ण तत्व मोक्ष की प्राप्ति है जहाँ से पुर्नजन्म के बन्धन से मुक्ति मिल जाती है।

हिन्दू देवगण

विष्णु

अपनी चार भुजाओं में शंख, चक्र, गदा, पदम लिये भगवान विष्णु संरक्षक माने गए हैं। आदि में ऋग्वेद में वे गौण देवता के रूप में प्रस्तुत किए गए बाद में वे त्रिमूति के अंग के रूप में तत्पश्चात् वैष्णव धर्म में वे अखण्ड ब्रह्माण्ड स्वरूप ईश्वर के रूप में प्रस्तुत हुए। धर्म की संस्थापना हेतु अवतरित हाने के कारण तथा करुणामय वरदान प्रदाता होने के कारण ही उन्हें यह परमतत्व स्वरूप भगवान की उपाधि दी गई। विष्णु के 10 अवतार हैं - मत्स्य, कूर्म, वराह, वामन, नरसिंह, परशुराम्, राम, कृष्ण, कलकी।

शिव

शैव समृप्रदाय के लोग शिव को परमेश्वर् मानते हैं, जो सर्वश्रेष्ठ स्रोत तथा चरम लक्ष्य हैं। पशुपत शिव सिद्धान्त इन्हें परब्र के बराबर या उनसे भी महान मानते हैं। शिव नैतिक एवं पिता स्वरूप देवता हैं। वे उनके भी देवता है जो ब्रह्माणि समाज की मुख्यधारा से बाहर हैं। वे अनेक विधियों से पूजित हैं। तान्त्रिक भी शिव की आराधना करते हैं। अंग में भस्म लगाए, चर्माम्बर धारण किए, नाग का हार, जटाओं में अर्धचद्रधारी विनाश के देवता योगी स् पर्वत पर वास करते हैं। शिव का पुरातन नाम रुद्र है। वैदिक ग्रन्थो के अनुसार रुद्र् र्को यज्ञ के प्रसाद में सम्मिलित नही किया जाता था। शिव् के ससुर दक्ष ने शिव-सती को अपने यज्ञ में आमन्त्रित नहीं किया। सती ने अपने पिता से शिकायत् की तो उन्होंने शिव का अपमान किया। सती यह सहन न कर पाई और यज्ञ की अग्नि में अपना दाह कर लिया। अपनी पत्नी की मृत्यु की सूचना पा क्रोधित शिव ने दक्ष का सर छिन्न कर दिया। बाद में बलि के बकरे का सर लगाकर उन्हें पुन: जीवित किया। अपनी समाधी भंग करने के प्रयास में अपने तीसरे नेत्र से उन्होंने कामदेव को भस्म कर दिया। तदनन्तर हिमालय पुत्री पार्वती ने अपने तप से शिव को पाया असैर इन्हीं के कहने पर उन्होंने कामदेव को अदृश्य रूप में जीवित किया।

देवी

देवी अपने पुरु प्रतिरूप की शक्ति है, बल है, अन्त:’शक्ति है। शिव की पत्नी के रूप में अधीनस्थ दिखाई देती है, तो दूसरी ओर महादेवी के रूप में ’शिव के बराबर या ब्रह्माण्ड की उच्चतम देवी के रूप में सर्व जीवों की चेतना, शक्ति व साक्रियता का मूलभूत सुोत है। माता अथवा पत्नी के रूप में उसकी पारम्परिक प्रकृति दिखाई इेती है- सुन्दर, अज्ञाकारिणी जैसे पार्वती-’शिव, लक्ष्मी-विष्णु, सरस्वती-ब्रह्मा।
उग रूप में दुर्गा महिशासुर का वध करने वाली तथा अति उग भे में वह चामुण्डा-काली है जिसने रक्तबीज दानव का रक्त पी लिया अन्यथा उसके रक्त की हर बूँद से पुन: नया दानव उत्पन्न हो जाता था।

इतर देवता

विष्णु, ’शिव, दुर्गा के साथ अनेक अन्य देवी-देवताओं को भी पूजा जाता है। उत्तर वैदिक काल में अरण्यकों और उपनिशदों में ब्राह्मण का महत्तव बढ़ा। पहले प्रजापति बाद में सृजनकर्ता माने जाने लगे। कुछ देवतागण किसी कार्य विढेश से ही सम्बन्धित माने गए : इन्द्र-देवताओं के राजा, अस्र के धारक, वायू र्के देवता, वरुण-जल देवता, यम-काल, मृत्यु के देवता, कुबेर-धन-सम्पत्ति के देवता, अग्निदेव, पवनदेव, चन्द्रदेव, आदि यम, इन्द्र, वरुण व कुबेर लोकपाल कहलाते हैं।’शिव-पार्वती के पुत्र स्कन्द-युद्ध के देवता, गणेश-विघ्न विना’शक हैं। प्रत्येक कार्य को सुचारु रूप से सम्पन्न करने के लिए प्रारम्भ में गणेश की पूजा की जाती है।
देवियों में लक्ष्मी-सौभाज्ञ एवं लौकिक, धन की देवी, सरस्वती-विद्या एवं कला की देवी हैं।

यक्ष-गन्धर्व

हिन्दू धार्मिक कथाओं में अनेकानेक देवी-देवता माने गए हैं। नाग-बहुमूल्य को की रक्षा करते हैं, यक्ष-कुबेर के गण हैं, गन्धर्व-इन्द्र के संगीतकार हैं, किन्नर गन्धर्वों के साथ रहते हैं, गन्धर्वों की स्त्री प्रतिरूप हैं अप्सराएँ, जो सुन्दर और कामुक होती हैं।

ऋषियों ने वैदिक शलोकों की संरचना करी। इनमें मुख्य हैं सप्त ऋषि- मारीचि, अत्री, अंगीरस, पुलस्त्य, कृतु, वशिष्ठ। ये तारामण्डल के रूप में आकाश में दिखाई देते हैं।

दक्ष व कशयप देवों एवं मानवों के पूर्वज हैं, नारद वीणा के आविशकारक, बृहस्पति व शुक सुर तथा असुरों के गुरु, अगस्त्य ने दक्षिण प्रायद्वीप में धर्म एवं संस्कृति का प्रचार किया।

पितृ पूर्वजों की आत्माएँ जिन्हें पिण्ड दान दिया जाता है।

असुर मुख्य दुरात्माएँ जो सदा देवजाओं से युद्धरत रहते थे। ये दिति की सन्तानें दैत्य कहलाते हैं, दनु की सन्तानें दानव कहलाते हैं। असुरों के प्रमुख राजा वृत्र, हिरणाकशिप, बाली आदि, पुलस्त्य ऋषि के पुत्र रावण राक्षस हैं।

युद्ध

देव और असुरों के बीच त्रिलोक के लिए कुल 12 भीण युद्ध हुए। हिरणाक्ष्य-वराह युद्ध जिसमें हिरणाक्ष्य दिव्य सागर में मारा गया। नरसिंह-हिरण्याक’शिप युद्ध-नरसिंह ने दैत्य का वध किया।
वजगपुत्र तारकासुर स्कन्द द्वारा मारा गया। अश्धक वध इसमें अन्धकासुर ’शिव के द्वारा मारा गया।


पंचम युद्ध में देवता जब तारकासुर के तीन पुत्रों को मारने में विफल हुए, तब ’शिव ने अपने धनु पिनाक के एक बाण से तीनों को उनके नगरों समेत ध्वस्त कर दिया।

अमृतमन्थन-इन्द्र ने महाबली को परास्त किया वामन अवतार धर विष्णु ने तीन पग में त्रिलोक लेकर महाबली को बन्दी बनाया।

आठवें युद्ध में इन्द्र ने मारा विप्रचित्ती तथा उसके अनुचर जो अदृशय हो गए थे।

आदिवक युद्ध में इक्ष्वाकु राजा के पौत्र काकुशथ ने इन्द्र की सहायता की और आदिवक को परास्त किया। कोलाहल युद्ध में शुक पुत्र सन्द एवं मर्क का वध हुआ।

दानवों की सहायता लेकर वृत्र ने इन्द्र से युद्ध किया। विष्णु की मदद पाकर इन्द्र ने उसे मार डाला।

बारहवें युद्ध में नहुश के भाता राजी ने इन्द्र की सहायता की और असुरों को मार डाला।


अस्त्र-शस्त्र

शस्त्र-जिनको हाथ में पकड़ कर प्रहार किया जाता है जैसे तलवार, कटार। अस्त्र-जिनको शत्रु पर फेंका जाता है जैसे बाण। पारम्परिक अस्त्र- शस्त्र जैसे धनु-बाण, तलवार, कटार, भाले, गदा, ढाल के अतिरिक्त दैविक अस्त्र जैसे इन्द्र का अस्र, ब्स्त्र, त्रिशूल, सुदर्शन चक्र, पिनाक आदि हैं। अनेक अस्त्र ई’वरों द्वारा देवताओं, राक्षसों या मनुष्यों को वरदान स्वरूप दिए जाते थे जैसे, ब्रह्मास्त्र, आग्नेयास्त्र। इन्हें चलाने के लिए विश ज्ञान का होना आवश्यक था।

कुछ अस्त्र एक सुनिशि्चत कार्य के लिए ही बने होते थे यथा - नागास्त्र जिसके उपयोग से विरोधी सेना पर कोटी-कोटी सर्पों की वृष्टि हो जाती थी। आग्नेयास्त्र विरोधी को जलाने, वरुणास्त्र अग्निशमन करने अथवा बाढ़ लाने के लिए, ब्रह्मास्त्र का प्रयोग केवल शत्रु विशेश पर ही प्राणघाती वार करने के लिए होता था। इनके अतिरिक्त अन्य दैविक उपकरणों का उल्लेख भी है जैसे कवच, कुण्डल, मुकुट, शिरस्त्राण आदि।

प्रलय

शतपथ ब्राह्मण में महाप्रलय की कथा कही गई है। अन्य धर्मों के विवरणों से इसकी तुलना की जाती है। मनु को आनेवाले प्रलय की पूर्व सूचना देकर भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार लिया और धर्मका पालन करने वाले मनुष्यों एवं अन्य जीव-जंतुओं को बचाया।


लोक

पौराणिक कथाओं में 14 लोकों का वर्णन पाया जाता है इनमें गृह नहीं आतेद्धं। 7 उच्च तथा 7 निम्न। उच्च लोकों में सबसे नीचे है पृथ्वी। उच्च लोक हैं- भू, भुवस, स्वर, महस, जनस, तपस व सत्य जो सामाज्य है। निम्न लोक हैं - अताल, विताल, सुताल, रसातल, तलातल, महातल तथा पाताल। मृत्यु के निर्णय धर्मराज यम प्राणी के अच्छे-बुरे कर्म देखकर तय करतें हैं कि आत्मा किस लोक में जाए। ये इतरलोक केवल अस्थाई वास स्थान हैं। यहाँ से आत्मा को पुन: पृथ्वी पर जन्म लेना होता है। ऐसा माना जाता है कि केवल पृथ्वी लोक से ही और मनुष्य योनि के बाद ही कर्मों के अनुसार आत्मा को मोक्ष प्राप्त हो सकता है। [१] [२] [३]

सन्दर्भ

  1. "संग्रहीत प्रति". मूल से 22 जनवरी 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 1 फ़रवरी 2014.
  2. Sanskrit Documents Collection: Documents in ITX format of Upanishads, Stotras etc.
  3. Clay Sanskrit Library publishes classical Indian literature, including the Mahabharata and Ramayana, with facing-page text and translation. Also offers searchable corpus and downloadable materials.