अभिहितान्वयवाद

भारतपीडिया से
imported>CommonsDelinker द्वारा परिवर्तित १६:०९, २२ मई २०२० का अवतरण ("कुमारिल_भट्ट.jpg" को हटाया। इसे कॉमन्स से Storkk ने हटा दिया है। कारण: Likely copyright violation; see c:COM:Licensing. If you are the copyright holder, please follow the instructions on c:OTRS.)
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

अभिहितान्वयवाद कुमारिल भट्ट द्वारा प्रतिपादित सिद्धांत है। इस सिद्धांत के अनुसार पद और वाक्य में पद की सत्ता है और वाक्य सार्थक पदों के योग से बनता है। इन्होंने इस‌ सिद्धांत के केंद्र में तात्पर्य शक्ति को रखा अर्थात हमारे कहने का जो तात्पर्य है जो वाच्य है उसके अनुसार हम पदों को सजाकर वाक्य बनाते हैं। इसके अनुसार पद ही महत्वपूर्ण है जो हमारे भावानुकूल वाक्य बनाते हैं।

इनके शिष्य प्रभाकर ने बाद में इनके मत‌ का विरोध किया और अन्विताभिधानवाद सिद्धांत का प्रतिपादन किया।[१][२][३][४]

संदर्भ