यौम अल-क़ियामा

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साँचा:इस्लाम यौम अल-क़ियामा या यौम अद-दीन : (अरबी : یوم القیامۃ) इस्लाम में छ: विश्वासों में आखरी पुनर्जीवन का दिन है, इसी को योम अल-क़ियामा (यौम=दिन, क़ियामा=रुक जाना या खडे होना) है। [१] इस की कोई प्रत्येक तारीख नहीं बताई गयी लैकिन कुछ चीज़ों को ज़रूर सूचित किया गया। [२][३] क़ुरान में इसका विस्त्रुत रूप से प्रस्ताव किया गया है। [४][५]

क़ुरान में सूरा अल-कियामह में इस का ज़िक्र है। और हदीसों में भी इसका ज़िक्र विस्तार रूप से किया गया है। इस दिन को फ़ैसले का दिन भी कहा जाता है।

क़यामत का दिन क्या है?

क़ुरान में प्रस्तावना

क़ुरन में "आखरी फ़ैसला" यानी क़ियामत के दिन का प्रस्ताव कई जगहों और आयतों में किया गया है। मूल रूप से यह बातें जानना आवष्यक है।

  1. क़यामत का वक़्त सिर्फ़ अल्लाह जानता है। (क़ुरान|33|63)
  2. मुहम्मद इसको आगे बढा नहीं सकते। (क़ुरान|6|57)
  3. जो मर चुके हैं उन्हें ऐसा लगेगा कि पैदा होने और मरने के बीच का वक़्त काफ़ी छोटा था। (क़ुरान|10|45) अल्लाह के सिवा कोई बाक़ी नहीं रहेगा। (क़ुरान|28|88)
  4. वह जो झूटे माबूदों को अपाये थे, आइन्दा की ज़िन्दगी में काफ़ी नश्ट उठायेंगे। [६]

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

साँचा:सन्दर्भ

  1. "Islamic Eschatology". मूल से 7 सितंबर 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 29 August 2015.
  2. "Major Signs before the Day of Judgment". Shaykh Ahmad Ali. मूल से 10 जुलाई 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 3 जुलाई 2016.
  3. "Signs of Qiyaamah". मूल से 23 जून 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 3 जुलाई 2016.
  4. साँचा:Cite book
  5. साँचा:Cite book
  6. साँचा:Citation