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द्रव्यसङ्ग्रह (द्रव्यों का संग्रह) ९-१० वीं सदी में लिखा गया एक जैन ग्रन्थ है। यह सौरसेणी प्राकृत में आचार्य नेमिचंद्र द्वारा लिखा गया था। द्रव्यसंग्रह में कुल ५८ गाथाएँ है। इनमें छः द्रव्यों का वर्णन है: जीव, पुद्गल, धर्म द्रव्य, अधर्म द्रव्य, आकाश और काल द्रव्य।[१] यह एक बहुत महत्वपूर्ण जैन ग्रन्थ है और जैन शिक्षा में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। द्रव्यसंग्रह ग्रन्थ को अक्सर याद किया जाता है क्योंकि इसमें संक्षिप्त पर बहुत अच्छे से द्रव्यों के स्वरूप का वर्णन है।[१]
सामग्री और अवलोकन
द्रव्यसंग्रह में व्यवहार नय और निश्चय नय की अपेक्षा से कथन किया गया है। ग्रन्थ का अंग्रेज़ी भाषा में अनुवाद करने वाले, शरत् चन्द्र घोषाल ने द्रव्यसंग्रह को ३ भागों में बांटा था —पहले भाग में छह द्रव्यों का वर्णन (छंद 1-27), दूसरे में सात तत्त्व (छंद 28-39) और तीसरे भाग में मोक्ष या की मुक्ति मार्ग का निरूपण है (छंद 40-57)।[२]
पंच परमेष्ठी
द्रव्यसंग्रह की गाथा ४९ से ५४ में पंच परमेष्ठी और उनकी विशेषताओं का वर्णन है। [३]साँचा:Sfnसाँचा:Quote
टीकाएँ
द्रव्यसंग्रह पर लिखी गयी टीकाओं में प्रमुख टीका ब्रह्मदेव की है।[४]