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पंच परमेष्ठी

भारतपीडिया से
पंच परमेष्ठी

पंच परमेष्ठी जैन धर्म के अनुसार सर्व पूजिए हैं। परमेष्ठी उन्हें कहते है हैं जो परम पद स्थित हों।साँचा:Sfn यह पंच परमेष्ठी हैं-

  1. अरिहन्त: जो दिव्य शरीर में स्थित रहते हैं। जिन्होंने चार घातिया कर्मों का नाश कर दिया हो|साँचा:Sfn
  2. सिद्ध: जो शरीर रहित हैं जिन्होंने सभी कर्मों का नाश कर दिया है।साँचा:Sfn सिद्ध परमेष्ठी के मुख्य आठ गुण होते हैं।साँचा:Sfn
  3. आचार्य परमेष्ठी- मुनि संघ के नेता। इनके छत्तीस मूल गुण होते हैं।
  4. उपाध्याय परमेष्ठी- जो नए मुनियों को ज्ञान उपार्जन में सहयोग करते हैं।
  5. मुनि

णमोकार मंत्र

साँचा:मुख्य

णमोकर मंत्र

जैन धर्म के सबसे मुख्य मंत्र 'णमोकार मंत्र' में पंच परमेष्ठी को नमस्कार किया जाता हैं।

णमो अरिहंताणं। णमो सिद्धाणं। णमो आइरियाणं।
णमो उवज्झायाणं। णमो लोए सव्वसाहूणं॥

अर्थात अरिहंतों को नमस्कार, सिद्धों को नमस्कार, आचार्यों को नमस्कार, उपाध्यायों को नमस्कार, सर्व लोक के साधुओं को नमस्कार।

सन्दर्भ

संदर्भ सूची