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अलका सरावगी

भारतपीडिया से

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"Notes"
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}} अलका सरावगी (जन्म- 17 नवम्बर,1960, कोलकाता) हिन्दी कथाकार हैं। वे साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित हो चुकी हैं। कोलकाता (भूतपूर्व कलकत्ता) में जन्मी अलका ने हिन्दी साहित्य में एम॰ए॰ और 'रघुवीर सहाय के कृतित्व' विषय पर पीएच.डी की उपाधि प्राप्त की है। "कलिकथा वाया बाइपास" उनका चर्चित उपन्यास है, जो अनेक भाषाओं में अनुदित हो चुके हैं।

अपने प्रथम उपन्यास ‘कलिकथा वाया बायपास’ से एक सशक्त उपन्यासकार के रूप में स्थापित हो चुकी अलका का पहला कहानी संग्रह वर्ष 1996 में 'कहानियों की तलाश में' आया। इसके दो साल बाद ही उनका पहला उपन्यास 'काली कथा, वाया बायपास' शीर्षक से प्रकाशित हुआ। 'काली कथा, वाया बायपास' में नायक किशोर बाबू और उनके परिवार की चार पीढिय़ों की सुदूर रेगिस्तानी प्रदेश राजस्थान से पूर्वी प्रदेश बंगाल की ओर पलायन, उससे जुड़ी उम्मीद एवं पीड़ा की कहानी बयाँ की गई है। वर्ष 2000 में उनके दूसरे कहानी संग्रह 'दूसरी कहानी' के बाद उनके कई उपन्यास प्रकाशित हुए। पहले 'शेष कादंबरी' फिर 'कोई बात नहीं' और उसके बाद 'एक ब्रेक के बाद'। उन्होने ‘एक ब्रेक के बाद’ उपन्यास के विषय का ताना-बाना समसामायिक कोर्पोरेट जगत को कथावस्तु का आधार लेते हुए बुना है। अपने पहले उपन्यास के लिए ही उनको वर्ष 2001 में 'साहित्य कला अकादमी पुरस्कार' और 'श्रीकांत वर्मा पुरस्कार' से नवाजा गया था। यही नहीं, उनके उपन्यासों को देश की सभी आधिकारिक भाषाओं में अनूदित करने की अनुशंसा भी की गई है।[१]

प्रमुख कृतियाँ

  • कलिकथा वाया बाइपास (उपन्यास)[२] (कलि-कथा : वाया बाइपास (1998) उपन्यास के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।)
  • शेष कादम्बरी (उपन्यास)[३]
  • कोई बात नहीं (उपन्यास)[४]
  • एक ब्रेक के बाद (उपन्यास)[५]
  • कहानी की तलाश में (कहानी-संग्रह)[६]
  • दूसरी कहानी (कहानी-संग्रह)[७]

पुरस्कार/सम्मान

  • श्रीकांत वर्मा पुरस्कार (1998)
  • साहित्य अकादमी पुरस्कार (2001)
  • बिहारी पुरस्कार (2006)

सन्दर्भ

साँचा:टिप्पणीसूची

बाहरी कड़ियाँ

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