अलका सरावगी
साँचा:ज्ञानसन्दूक
| label1 = कोलकाता, पश्चिम बंगाल, (भारत)
| data1 = साँचा:Birth date and age
कोलकाता, पश्चिम बंगाल, (भारत)
| label2 =
| data2 =
| label3 = मौत की वजह
| data3 =
| data4 =
| label4 = शरीर मिला
| label5 = समाधि
| class5 = label
| data5 = {{{resting_place}}}
| label6 = आवास
| class6 = label
| data6 =
| label7 = राष्ट्रीयता
| data7 = भारतीय
| label8 = उपनाम
| class8 = उपनाम
| data8 =
| label9 = जाति
| data9 =
| label10 = नागरिकता
| data10 =
| label11 = शिक्षा
| data11 = {{{शिक्षा}}}
| label12 = शिक्षा की जगह
| data12 =
| label13 = पेशा
| class13 = भूमिका
| data13 = कथाकार और उपन्यासकार
| label14 = कार्यकाल
| data14 =
| label15 = संगठन
| data15 =
| label16 = गृह-नगर
| data16 =
| label17 = पदवी
| data17 =
| label18 = वेतन
| data18 =
| label19 = कुल दौलत
| data19 =
| label20 = ऊंचाई
| data20 =
| label21 = भार
| data21 = {{{भार}}}
| label22 = प्रसिद्धि का कारण
| data22 = ‘कलिकथा वाया बायपास’
| label23 = अवधि
| data23 =
| label24 = पूर्वाधिकारी
| data24 =
| label25 = उत्तराधिकारी
| data25 =
| label26 = राजनैतिक पार्टी
| data26 =
| label27 = बोर्ड सदस्यता
| data27 =
| label28 = धर्म
| data28 =
| label29 = जीवनसाथी
| data29 =
| label30 = साथी
| data30 =
| label31 = बच्चे
| data31 =
| label32 = माता-पिता
| data32 =
| label33 = संबंधी
| data33 =
| label35 = कॉल-दस्तखत
| data35 =
| label36 = आपराधिक मुकदमें
| data36 =
| label37 =
| data37 = साँचा:Br separated entries
| class38 = label
| label39 = पुरस्कार
| data39 =
| data40 =
| data41 =
| data42 =
}}
अलका सरावगी (जन्म- 17 नवम्बर,1960, कोलकाता) हिन्दी कथाकार हैं। वे साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित हो चुकी हैं। कोलकाता (भूतपूर्व कलकत्ता) में जन्मी अलका ने हिन्दी साहित्य में एम॰ए॰ और 'रघुवीर सहाय के कृतित्व' विषय पर पीएच.डी की उपाधि प्राप्त की है। "कलिकथा वाया बाइपास" उनका चर्चित उपन्यास है, जो अनेक भाषाओं में अनुदित हो चुके हैं।
अपने प्रथम उपन्यास ‘कलिकथा वाया बायपास’ से एक सशक्त उपन्यासकार के रूप में स्थापित हो चुकी अलका का पहला कहानी संग्रह वर्ष 1996 में 'कहानियों की तलाश में' आया। इसके दो साल बाद ही उनका पहला उपन्यास 'काली कथा, वाया बायपास' शीर्षक से प्रकाशित हुआ। 'काली कथा, वाया बायपास' में नायक किशोर बाबू और उनके परिवार की चार पीढिय़ों की सुदूर रेगिस्तानी प्रदेश राजस्थान से पूर्वी प्रदेश बंगाल की ओर पलायन, उससे जुड़ी उम्मीद एवं पीड़ा की कहानी बयाँ की गई है। वर्ष 2000 में उनके दूसरे कहानी संग्रह 'दूसरी कहानी' के बाद उनके कई उपन्यास प्रकाशित हुए। पहले 'शेष कादंबरी' फिर 'कोई बात नहीं' और उसके बाद 'एक ब्रेक के बाद'। उन्होने ‘एक ब्रेक के बाद’ उपन्यास के विषय का ताना-बाना समसामायिक कोर्पोरेट जगत को कथावस्तु का आधार लेते हुए बुना है। अपने पहले उपन्यास के लिए ही उनको वर्ष 2001 में 'साहित्य कला अकादमी पुरस्कार' और 'श्रीकांत वर्मा पुरस्कार' से नवाजा गया था। यही नहीं, उनके उपन्यासों को देश की सभी आधिकारिक भाषाओं में अनूदित करने की अनुशंसा भी की गई है।[१]
प्रमुख कृतियाँ
- कलिकथा वाया बाइपास (उपन्यास)[२] (कलि-कथा : वाया बाइपास (1998) उपन्यास के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।)
- शेष कादम्बरी (उपन्यास)[३]
- कोई बात नहीं (उपन्यास)[४]
- एक ब्रेक के बाद (उपन्यास)[५]
- कहानी की तलाश में (कहानी-संग्रह)[६]
- दूसरी कहानी (कहानी-संग्रह)[७]
पुरस्कार/सम्मान
- श्रीकांत वर्मा पुरस्कार (1998)
- साहित्य अकादमी पुरस्कार (2001)
- बिहारी पुरस्कार (2006)
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
- अलका सरावगी का परिचय (हिन्दी समय)
साँचा:हिन्दी के प्रमुख कथाकार साँचा:भारतीय महिला साहित्यकार
- ↑ आलम, जावेद. "एक ब्रेक के बाद". वेबदुनिया हिन्दी. मूल से 29 अप्रैल 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 28 अप्रैल 2014.
- ↑ साँचा:Cite book
- ↑ साँचा:Cite book
- ↑ साँचा:Cite book
- ↑ साँचा:Cite book
- ↑ साँचा:Cite book
- ↑ साँचा:Cite book