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अशोक सुंदरी

भारतपीडिया से

साँचा:Infobox deity अशोक सुंदरी (संस्कृत: अशोकसुन्दरी, Aśokasundarī) यह एक हिन्दू देवकन्या हैं, जिनका वर्णन भगवान शिव और पार्वती की बेटी के रूप में किया गया है। वह आम तौर पर मुख्य शास्त्रों में शिव के पुत्री के रूप में वर्णित नहीं हैं, उनकी कथा पद्मपुराण में अंकित है। राजा नहुष की पत्नी हैं। जिनके २ पुत्र और १०० पुत्रियां हैं । माता पार्वती के अकेलेपन को दूर करने हेतु कल्पवृक्ष नामक पेड़ के द्वारा ही अशोक सुंदरी की रचना हुई थी। अ+शोक अर्थात् सुख, माता पार्वती को सुखी करने हेतु ही उनका निर्माण हुआ था और वह अत्यंत सुंदर थीं इसी कारण इन्हें सुंदरी कहा गया। यें भगवान शिव और माता पार्वती बेटी हैं यें भगवान कार्तिकेय से छोटी किन्तु गणेशजी ,मनसा देवी, देवी ज्योति और भगवान अय्यपा से बड़ी हैं । महर्षि जरत्कारू इनके बहनोई हैं। महर्षि आस्तिक की मौसी हैं । देवसैना , वल्ली और ऋद्धि , सिद्धि की ननंद तथा संतोषी माता , क्षेम और लाभ की बुआ हैं [१] इनके परिवार में निम्नलिखित सदस्य है:

दिव्य चरित्र

अशोक सुंदरी के जन्म की कथा पद्म पुराण में बताई गई है जो नहुष नामक राजा के चरित्र वर्णन की इकाई है। एक बार माता पार्वती द्वारा विश्व में सबसे सुंदर उद्यान लाने के आग्रह से भगवान शिव पार्वती को नंदनवन ले गये, वहाँ माता को कल्पवृक्ष से लगाव हो गया और उन्होने उस वृक्ष को ले लिया। कल्पवृक्ष मनोकामना पूर्ण करने वाला वृक्ष है, पार्वती नें अपने अकेलेपन को दूर करने हेतु उस वृक्ष से यह वर माँगा कि उन्हे एक कन्या प्राप्त हो, तब कल्पवृक्ष द्वारा अशोक सुंदरी का जन्म हुआ। माता पार्वती नें उस कन्या को वरदान दिया कि उसका विवाह देवराज इंद्र जितने शक्तिशाली यूवक से होगा। एक बार अशोक सुंदरी अपने दासियों के संग नंदनवन में विचरण कर रहीं थीं तभी वहाँ हुंड नामक राक्षस का प्रवेश हुआ जो अशोक सुंदरी के सुंदरता से मोहित हो गया तथा विवाह का प्रस्ताव किया, तब उस कन्या ने भविष्य में उसके पूर्वनियत विवाह के संदर्भ में बताया। राक्षस नें कहा कि वह नहूष को मार डालेगा तब अशोक सुंदरी ने राक्षस को श्राप दिया कि उसकी मृत्यु नहूष के हाथों होगी। उस राक्षस नें नहुष का अपहरण कर लिया जिससे नहूष को हुंड की एक दासी ने बचाया। महर्षि वशिष्ठ के आश्रम में नहूष बड़ा हुआ तथा आगे जाकर उसने हुंड का वध किया।

बाद में नहूष तथा अशोक सुंदरी का विवाह हुआ तथा वह ययाति जैसे वीर पुत्र तथा सौ रूपवती कन्याओं की माता बनीं। इंद्र के अभाव में नहूष को ही आस्थायी रूप से इंद्र बनाया गया, उसके घमंड के कारण उसे श्राप मिला तथा इसीसे उसका पतन हुआ। बादमें इंद्र नें अपनी गद्दी पुन: ग्रहण की।

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

बाहरी कड़ियाँ

साँचा:शैव धर्म