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साँचा:Infobox writer आशापूर्णा देवी (बांग्ला: আশাপূর্ণা দেবী, 8 जनवरी 1909-13 जुलाई 1995) भारत से बांग्ला भाषा की कवयित्री और उपन्यासकार थीं, जिन्होंने 13 वर्ष की अवस्था से लेखन प्रारम्भ किया और आजीवन साहित्य रचना से जुड़ीं रहीं। गृहस्थ जीवन के सारे दायित्व को निभाते हुए उन्होंने लगभग दो सौ कृतियाँ लिखीं, जिनमें से अनेक कृतियों का भारत की लगभग सभी भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। उनके सृजन में नारी जीवन के विभिन्न पक्ष, पारिवारिक जीवन की समस्यायें, समाज की कुंठा और लिप्सा अत्यंत पैनेपन के साथ उजागर हुई हैं। उनकी कृतियों में नारी का वयक्ति-स्वातन्त्र्य और उसकी महिमा नई दीप्ति के साथ मुखरित हुई है। उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं स्वर्णलता, प्रथम प्रतिश्रुति, प्रेम और प्रयोजन, बकुलकथा, गाछे पाता नील, जल, आगुन आदि। उन्हें 1976 में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।[१]यह पुरस्कार प्राप्त करने वाली वे पहली महिला हैं।[२][ट १]
प्रारंभिक जीवन
आशापूर्णा देवी का जन्म 8 जनवरी 1909 को पश्चिमी बंगाल के कलकत्ता [ट २] में हुआ था। उनका परिवार कट्टरपंथी था इसलिए उन्हें स्कूल और कॉलेज जाने का सुअवसर नहीं मिला। लेकिन बचपन से ही उन्हें पढ़ने-लिखने और अपने विचारों की अभिव्यक्ति की सुविधाएँ प्राप्त हुई। उनके घर में नियमित रूप से अनेक बांग्ला पत्रिकाएँ जैसे: प्रवासी, भारतवर्ष, भारती, मानसी-ओ मर्मबानी, अर्चना, साहित्य, सबूज पत्र आदि आती थी। जिनका अध्ययन और चिंतन उनके लेखन की नींव बना। उन्होंने 13 वर्ष की अवस्था से लेखन प्रारम्भ किया और आजीवन साहित्य रचना से जुड़ीं रहीं।[५] कला और साहित्यिक परिवेश की वज़ह से उनमें संवेदनशीलता का भरपूर विकास हुआ।[६]
व्यक्तिगत जीवन
उनका परिवार एक मध्यमवर्गीय परिवार था। इनके परिवार में पिता, माता और तीन भाई थे। इनके पिता एक अच्छे चित्रकार थे और इनकी माता की बांग्ला साहित्य में गहरी रुचि थी। पिता की चित्रकारी में रुचि और माँ के साहित्य प्रेम की वजह से आशापूर्णा देवी को उस समय के जानेमाने साहित्यकारों और कला शिल्पियों से निकट परिचय का अवसर मिला। उस युग में बंगाल में सभी निषेधों का बोलबाला था। पिता और पति दोनों के ही घर में पर्दा आदि के बंधन थे पर घर के झरोखों से मिली झलकियों से ही वे संसार में घटित होने वाली घटनाओं की कल्पना कर लेती थीं।[७]
साहित्यिक जीवन
आशापूर्णा देवी की कर्मभूमि पश्चिमी बंगाल थी। उनका पहला कहानी-संकलन "जल और जामुन" 1940 में यहीं से प्रकाशित हुआ था। उस समय यह कोई नहीं जानता था कि बांग्ला ही नहीं, भारतीय कथा साहित्य के मंच पर एक ऐसे नक्षत्र का आविर्भाव हुआ है जो दीर्घकाल तक समाज की कुंठा, संकट, संघर्ष, जुगुप्सा और लिप्सा-सबको समेटकर सामाजिक संबंधों के हर्ष, उल्लास और उत्कर्ष को नया आकाश प्रदान करेगा। उनकी कहानियाँ पात्र, संवाद या घटनाओं का जमघट नहीं हैं, परंतु जीवन की किसी अनकही व्याख्या को व्यंजित करती हैं और इस रूप में उनकी एकदम अलग पहचान है।[८]
उनकी अपनी एक विशिष्ट शैली थी। चरित्रों का रेखांकन और उनके मनोभावों को व्यक्त करते समय वे यथार्थवादिता को बनाये रखती थीं। सच को सामने लाना उनका उद्देश्य रहता था। उनका लेखन आशावादी दृष्टिकोण लिए हुए था। उनके उपन्यास मुख्यतः नारी केन्द्रित रहे हैं। उनके उपन्यासों में जहाँ नारी मनोविज्ञान की सूक्ष्म अभिव्यक्ति और नारी के स्वभाव उसके दर्प, दंभ, द्वंद और उसकी दासता का बखूबी चित्रण किया हुआ है वहीँ उनकी कथाओं में पारिवारिक प्रेम संबंधों की उत्कृष्टता दृष्टिगोचर होती है। उनकी कथाओं में तीन प्रमुख विशेषताएँ परिलक्षित होती हैं – वक्तव्य प्रधान, समस्या प्रधान और आवेग प्रधान। उनकी कथाएं हमारे घर संसार का विस्तार हैं। जिसे वे कभी नन्ही बेटी के रूप में तो कभी एक किशोरी के रूप में तो कभी ममत्व से पूर्ण माँ के रूप में नवीन जिज्ञासा के साथ देखती हैं।[८]
उनको अपनी प्रतिभा के कारण उन्हें समकालीन बांग्ला उपन्यासकारों की प्रथम पंक्ति में गौरवपूर्ण स्थान मिला। उनके लेखन की विशिष्टता उनकी एक अपनी ही शैली है। कथा का विकास, चरित्रों का रेखाकंन, पात्रों के मनोभावों से अवगत कराना, सबमें वह यथार्थवादिता को बनाए रखते हुए अपनी आशामयी दृष्टि को अभिव्यक्ति देती हैं। इसके पीछे उनकी शैली विद्यमान रहती है। वे यथार्थवादी, सहज और संतुलित थी। सीधे और कम शब्दों में बात को ज्यों का त्यों कह देना उनकी विशेषता थी। उनकी निरीक्षण शक्ति गहन और पैनी थी और विचारों में गंभीरता थी। पूर्वाग्रहों से रहित उनका दृष्टिकोण अपने नाम के अनुरूप आशावादी था। वे मानवप्रेमी थी। वे विद्रोहिणी थी। ‘मैं तो सरस्वती की स्टेनो हूँ’ उनका यह कथन उनकी रचनाशीलता का परिचय देता है। उन्होने अपने ८७ वर्ष के दीर्घकाल में १०० से भी अधिक औपन्यासिक कृतियों की रचना की, जिनके माध्यम से उन्होंने समाज के विभिन्न पक्षों को उजागर किया। उनके विपुल कृतित्व का उदाहरण उनकी लगभग २२५ कृतियां हैं। उनकी समग्र रचनाओं ने बंकिम, रवीन्द्र और शरत् की त्रयी के बाद बंगाल के पाठक वर्ग और प्रबुद्ध महिला पाठकों को सर्वाधिक प्रभावित और समृद्ध किया है।[९][८]
कृतियाँ
आशापूर्णा देवी के विपुल कृतित्व का उदाहरण उनकी लगभग २२५ कृतियां हैं। 'प्रथम प्रतिश्रुति' के लिए उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हुआ। लगभग पच्चीस वर्ष पूर्व दूरदर्शन में, 'प्रथम प्रतिश्रुति' नामक टीवी प्रसारित हुआ था। अपने जीवन की घटनाओं के बाद की कथा, आशापूर्णा देवी ने, दो अन्य उपन्यास, 'सुवर्णलता' और 'बकुल कथा' में लिखा है। उनकी कुछ महत्वपूर्ण पुस्तकें क्रमश: अधूरे सपने, अनोखा प्रेम, अपने अपने दर्पण में, अमर प्रेम, अविनश्वर, आनन्द धाम, उदास मन, कभी पास कभी दूर, कसौटी, काल का प्रहार, किर्चियाँ, कृष्ण चूड़ा का वृक्ष, खरीदा हुआ दु:ख, गलत ट्रेन में, चश्में बदल जाते हैं, चाबीबन्द सन्दूक, चैत की दोपहर में, जीवन संध्या, तपस्या, तुलसी, त्रिपदी, दृश्य से दृश्यान्तर, दोलना, न जाने कहाँ कहाँ, पंछी उड़ा आकाश, प्यार का चेहरा, प्रथम प्रतिश्रुति, प्रारब्ध, बकुल कथा, मंजरी, मन की आवाज़, मन की उड़ान, मुखर रात्रि, ये जीवन है, राजकन्या, लीला चिरन्तन, विजयी वसंत, विश्वास अविश्वास, वे बड़े हो गए, शायद सब ठीक है, श्रावणी, सर्पदंश, सुवर्णलता आदि हिन्दी में उपलब्ध है।[१०]साँचा:Multicol
चर्चित उपन्यास
- प्रेम ओ प्रयोजन (1944)
- अग्नि-परिक्षा (1952)
- छाड़पत्र (1959)
- प्रथम प्रतिश्रुति (1964)
- सुवर्णलता (1966)
- मायादर्पण (1966)
- बकुल कथा (1974)
- उत्तरपुरूष (1976)
- जुगांतर यवनिका पारे (1978)
अन्य प्रमुख उपन्यास
- और एक आशापूर्णा (प्रकाशक: मित्रा वो घोष)
- आशा पूर्णा बीथिका (प्रकाशक: निर्मल साहित्यम)
- अनामनिया (प्रकाशक: करुणा प्रकाशन)
- विश्वास-अविश्वास (प्रकाशक: देब साहित्य कुटीर)
- छविबन्ध सिंदक (प्रकाशक: मित्रा वो घोष)
- चित्रकलपा (प्रकाशक: मित्रा वो घोष)
- चोसमा पलटे जय (प्रकाशक: देब साहित्य कुटीर)
- दिब्याहासिनी डिनोलिपि (प्रकाशक: मित्रा वो घोष)
- दृश्य थाके दृश्यांटोर (प्रकाशक: मित्रा वो घोष)
- द्वितीयों अद्वितीयों (प्रकाशक: निर्मल साहित्यम)
- ई तो सेडिन (प्रकाशक: आनंद प्रकाशन)
- कल्याणी (प्रकाशक: निर्मल साहित्यम)
- कांता पुकुर लेनेर कोमोला (प्रकाशक: देब साहित्य कुटीर)
- लघु त्रिपोदी (प्रकाशक: पुष्पो प्रकाशन)
- लीला चिरंतन (प्रकाशक: मित्रा वो घोष)
- नक्षत्रेण आकाश (प्रकाशक: निर्मल साहित्यम)
- नोकषा काटा घोर (प्रकाशक: करुणा प्रकाशन)
- पंच नोदिर तीरे (प्रकाशक: पाल प्रकाशक)
- प्रियो गाल्पों (प्रकाशक: निर्मल साहित्यम)
- शशि बाबूर संगसार (प्रकाशक: पुनश्च)
- सिरी भाँगा अंका (प्रकाशक: मित्रा वो घोष)
- श्रीमति सतमा जीबोन (प्रकाशक: करुणा प्रकाशन)
- स्थान काल पात्र (प्रकाशक: करुणा प्रकाशन)
- सुबरनलता (प्रकाशक: मित्रा वो घोष)
- तीन प्रोहर (बालुचोरी, धूप का चश्मा, श्रींखोलिता) (प्रकाशक: निर्मल साहित्यम)
- त्रिमात्रिक (प्रकाशक: निर्मल साहित्यम)
- वी॰ आई॰ पी॰ बरीर लोक (प्रकाशक: करुणा प्रकाशन)
कहानी
- जल और आगुन (1940)
- आर एक दिन (1955)
- सोनाली संध्या (1962)
- आकाश माटी (1975)
- एक आकाश अनेक तारा (1977)
रचनावली
- आशापूर्णा देवीर रचनावोली [10 खंडों में] (प्रकाशक: मित्रा वो घोष)
युवा उपन्यास
- अलोय आदित्य महापात्र रहस्य (1995)
- अमरावती अंतराले (1994)
- ब्यपरता की होलो (1993)
- भग्गी जुधों बेधेचे (1986)
- भाग्यलक्ष्मी लॉटरी (1990)
- भितोरे की छिलो (1985)
- भूटुरे कुकुर (1982)
- बोलबेर मोटों नोई (1987)
- छाज जोने मिले (1979)
- छूटिटे छूटा-छूटी (1982)
- छोटोडेर श्रेष्ठों गोलपो (1955)
- छोटोडेर श्रेष्ठों गोलपो (1981)
- छोटों ठाकुरद्वार काशी यात्रा (1938)
- छोटोडेर भालो भालो गोलपो (1962)
- दक्कात र कोबोले आमी (1972)
- डिब्बोसुंदरेर डिब्बोज्ञान लव (1988)
- दोस्ती किशोर उपोन्यास
- दुरेर बासी (1978)
- एक कुरी गोलपो (1988)
- एक समुद्र अनेक देऊ (1963)
- एकर मोधे तीन (1991)
- गजकिल एर हत्या रहस्य (1979)
- गोलपो भालो आबेर बोलो (1958)
- गोलपो होलो सुरू (1955)
- गोलपेर मोटों गोलपो (1961)
- हाफ हॉलिडे (1941)
- हासीर गोलपो (1967)
- जीबोन कालीर पक्का हिसाब (1985)
- जुगलरतनों टिकटिकी ऑफिस (1992)
- कनकदीप (1962)
- करपाकर पक्चक्र (1997)
- काटो कांडों राइलगरिते 1985)
- किशोर अमोनिबास (1986)
- किशोर बचाई गोलपो (1999)
- किशोर साहित्यों समग्र (1983)
- किशोर साहित्यों समग्र (1-3)
- किशोर साहित्यों समग्र (1980)
- कोपल खुले गेलो नाकी (1992)
- कुमकुम (1970)
- मजरूमामा (1992)
- मानिकचंद ओ ऍरो छोड़ो (1992)
- मंसूर मोटों मानुष (1986)
- मोन थाकोन मोन कामोन (1996)
- निजे बुझे निन (1987)
- निखारचाइ आमोद (1982)
- ओनारा ठाकुरबेनी (1982)
- पाँच बहुतेर गोप्पो (1990)
- पंचस्ती किशोर गोलपो
- पाखी थेके हाती (1983)
- प्लैंशेट (1999)
- पोएला दोषरा (1992)
- राजकुमारेर पोशाके (1975)
- रहस्य संधाने (1981)
- राजा नोई रानी नोई (1959)
- रज़ाई गोलपो (1976)
- रानी मायाबाजार अंतरदर्शन रहस्य (1993)
- रोंगिन मोलात (1941)
- सकलेर सपनों (1994)
- सरोजन्तर नायक (1992)
- सतयी आमोद (1992)
- सेई सोब गोलपो (1967)
- सेरा बारो (1988)
- सीरा रहस्य समवार (1984)
- शनिर्वाचितों चोतोदर शेस्तों गोलपो (1996)
- शोनों शोनों गोलपो शोनों (1956)
किशोर उपन्यास
- राज कुमार एर पोशाके
- गज उकील एर हत्या रहस्य
- भूतर कुकुर
- लोंका मोरिच हे एक मोहमनब (मार्च 1983)
- मानुषेर मोटों मानुष
- चारा पुते गेलेन ननतु पिसे (1987)
- बोमार छेए बिशम
- सोमूदूर देखा (1988)
- अलोय आदित्यर इछ्छा पोट्रो रहस्यो
- हरनों थेके प्राप्ति
पुरस्कार/सम्मान
- लीला पुरस्कार, कलकत्ता विश्वविद्यालय से (1954)
- टैगोर पुरस्कार (1964)
- भूटान मोहिनी दासी स्वर्ण पदक (1966)
- बूँद मेमोरियल पुरस्कार, पश्चिम बंगाल सरकार से (1966)
- पद्मश्री (1976)
- ज्ञानपीठ पुरस्कार, प्रथम प्रतिश्रुति के लिए (1976)[११]
- हरनाथ घोष पदक, बंगीय साहित्य परिषद से (1988)
- जगतरानी स्वर्ण पदक, कलकत्ता विश्वविद्यालय से (1993)
उद्धरण
टिप्पणियाँ
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- ↑ श्रीमती आशापूर्णा देवी को जब २६ अप्रैल’ १९७८ को दिल्ली के विज्ञान-भवन में राष्ट्रपति श्री नीलम संजीव रेड्डी द्वारा ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’ समर्पित किया गया उस समय तक उनकी ख्याति मूर्धन्य और लोकप्रिय लेखिका के रूप में बंगाल में प्रतिष्ठित हो चुकी थी। बंगाल के बाहर, राष्ट्रीय साहित्यिक मंच पर उनका अभिनन्दन और उनके साहित्य में साक्षात्कार देश के लिए गौरवपूर्ण अनुभव प्रमाणित हुआ। ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’ प्राप्त करनेवाली वह पहली महिला हैं।।[३]
- ↑ साँचा:Audio, वर्तमान कोलकाता)।[४]
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
- आशापूर्ण देवी की संक्षिप्त जीवनी(अँग्रेजी में)
- साधारण जीवन, असाधारण कहानियां: आशापूर्ण देवी की कथा।(अँग्रेजी में)