मेनू टॉगल करें
Toggle personal menu
लॉग-इन नहीं किया है
Your IP address will be publicly visible if you make any edits.

ऐतरेय ब्राह्मण

भारतपीडिया से

ऐतरेय ब्राह्मण ऋग्वेद की एक शाखा है जिसका केवल "ब्राह्मण" ही उपलब्ध है, संहिता नहीं। ऐतरेय ब्राह्मण ऋग्वेदीय ब्राह्मणों में अपनी महत्ता के कारण प्रथम स्थान रखता है। यह "ब्राह्मण" हौत्रकर्म से संबद्ध विषयों का बड़ा ही पूर्ण परिचायक है और यही इसका महत्व है। इस "ब्राह्मण" के अन्य अंश भी उपलब्ध होते हैं जो "ऐतरेय आरण्यक" तथा "ऐतरेय उपनिषद्" कहलाते हैं।

अध्याय एवं सामग्री

ऐतरेय ब्राह्मण में 40 अध्याय हैं जिनमें प्रत्येक पाँच अध्यायों को मिलाकर एक "पंचिका" कहते हैं और प्रत्येक अध्याय के विभाग को "कंडिका"। इस प्रकार पूरे ग्रंथ में आठ पंचिका, 40 अध्याय, अथवा 285 कंडिकाएँ हैं। समस्त सोमयागों की प्रकृति होने के कारण "अग्निष्टोम" का प्रथमत: विस्तृत वर्णन किया गया है और अनंतर सवनों में प्रयुक्त शास्त्रों का तथा अग्निष्टोम की विकृतियों–उक्थ्य, अतिरात्र तथा षोडशी याग–का उपादेय विवरण प्रस्तुत किया गया है। "राजसूय" का वर्णन, तदंतर्गत शुनःशेप का आख्यान तथा "ऐंद्र महाभिषेक" का विवरण ऐतिहासिक दृष्टि से विशेष महत्वपूर्ण हैं। अष्टम पंचिका में प्राचीन भारत के मूर्धाभिषिक्त सम्राटों का विशेष वर्णन किया गया है। जिसमें इस विषय की प्राचीन गाथाएँ उधृत की गई हैं। गाथाएँ भाषा तथा इतिहास दोनों दृष्टियों से महत्व रखती हैं।

"ऐतरेय" शब्द की व्याख्या

"ऐतरेय" शब्द की व्याख्या एक प्राचीन टीकाकार ने की है – इतरा का पुत्र, जिसके कारण इस ब्राह्मण के मूल प्रवर्तक पर हीन जाति का होने का दोष लगाया जाता है, परंतु वस्तुस्थिति ऐसी नहीं है। अवेस्ता का एक प्रख्यात शब्द है – "एथ्रेय" जिसका अर्थ है ऋत्विज्, यज्ञ करानेवाला पुरोहित। विद्वानों की दृष्टि में वैदिक "ऐतरेय" को इस "ऐतरेय" से संबद्ध मानना भाषाशास्त्रीय शैली से नितांत उचित है। फलत: "ऐतरेय" का भी अर्थ है "ऋत्विज"। इस ब्राह्मण में प्रतिपाद्य विषय की आलोचना करने पर इस अर्थ की यथार्थता में संदेह नहीं रहता।

बाहरी कड़ियाँ