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चौथ 17 वीं और 18 वीं शताब्दी में एक-चौथाई राजस्व प्राप्ति को कहा जाता था। यह भारत में एक जिले की राजस्व प्राप्ति या वास्तविक संग्रहण की एक चौथाई उगाही थी। यह कर (शुल्क) ऐसे जिले से लिया जाता था, जहां मराठा मार्गाधिकार या स्वामित्व चाहते थे। यह नाम संस्कृत शब्द से लिया गया है, जिसका अर्थ है 'एक चौथाई'।[१][२][३]
चौथ की शुरुआत 1726 मराठों ने अपने अधीन रहे कुछ राज्यो से लेना शुरू किया और 1744 तक लगभग पूरे उत्तर भारत के राजपूत और मुस्लिम शासकों से चौथ वसूले जाने लगे व्यावहारिक रूप में चौथ अक्सर राजपूत या मुसलमान शासकों द्वारा मराठों को खुश करने के लिए दिया जाने वाला शुल्क था, ताकि मराठे उनके प्रांत की सुरक्षा करें या उनके जिले में विद्रोही घुसपैठ को दूर रखें। मराठों का दावा था, कि इस भुगतान के बदले में वे दूसरों के आक्रमणों से उनकी रक्षा कराते थे। लेकिन बहुत कम राजपूत या मुसलमान राजा चौथ के भुगतान को इस नज़र से देखते थे। चूंकि शासक पूरा राजस्व वसूलने की कोशिश कराते थे, इसलिए नियमित राजस्व की मांग के साथ इस भार से जुडने से इसे सिर्फ मराठा राज्य हितकारी माना जाता था। इसके फलस्वरूप भारत में राजपूत और मुसलमान, दोनों में ही मराठों की लोकप्रियता घटी लेकिन हिन्दू जनमानस के अंदर लोकप्रियता बढ़ती गई। अब[४]
सन्दर्भ
- ↑ साँचा:Cite book
- ↑ साँचा:Cite web
- ↑ साँचा:Cite book
- ↑ भारत ज्ञानकोश, खंड-2, पृष्ठ संख्या- 180, प्रकाशक- पापयुलर प्रकाशन, मुंबई, आई एस बी एन 81-7154-993-4