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साँचा:जैन धर्म दशवैकालिक आचार्य शय्यम्भव की निर्यूहणकृति है , वे श्रुतकेवली थे , उन्होंने [१]विभिन्न पूर्वों से दशवैकालिक निर्यूहण किया। इसमें १० अध्याय हैं , इसकी रचना विकाल में पूर्ण हुई थी। दशवैकालिक में मुख्य रूप से धर्मका स्वरूप साधु की भिक्षाचर्या , श्रामण्य की पूर्व भूमिका भाषाशुद्धि , विनय समाधि आदि का सुंदर विवेचन [२] हुआ है।