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धर्म और भूगोल

भारतपीडिया से

साँचा:भूमिका फिर लिखें साँचा:सिर्फ़ कहानी विश्व के सभी धर्मों की जन्मभुमि नदी टाइग्रीस व गंगा के मध्य का क्षेत्र ही है। कुल दो किस्म के धर्म पैदा हुये। पहला अब्राहमिक एव दूसरा हिन्दू। अब्राहमिक धर्म के अन्तर्गत मूलतः तीन धर्म आते हैं यहूदी, इसाई एवं मुस्लिम। तीनों के धार्मिक सिद्धन्तों में लम्बे समय तक एक भाई चारे की सी स्थिति रही थी। हंलांकि Crusade व जिहाद तबसे चल रहें जबसे इस्लाम की स्थापना हुयी है। तीनों धर्म के अनुयायीयों ने तलवार की धार पर विस्तारवाद का अनवरत प्रयास किया है। हिंसा का प्रादुर्भाव भी भौगोलिक परीस्थितियों की देन रही है। मरुस्थल कभी बेहद ठण्डे और कभी कभी बेहद गर्म। Extreme मौसम स्वभाव में हिंसात्मकों भावना का जन्म एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। विश्व में इन सबसे भिन्न एक और भी मुख्य धर्म है वह है हिन्दू धर्म। इस धर्म की जन्मभूमि भारत वर्ष रही है।

पहले तीनों धर्मों में एक जो मुख्य साम्यता है, वह है एकेश्वरवाद की। वहीं हिन्दू धर्म विविधताओं में विश्वास रखने वाला धर्म है। हिन्दू धर्म के अन्तर्गत तो तत् त्वम असि को उद्घोष के साथ ही हर व्यक्ति इश्वर या इश्वर की प्रतिमुर्ति है। यह एक से अनेक होने की प्रक्रिया है।

हमें इन धर्मों की तुलना करने हेतू इनकी पृष्ठभुमि खंगालने की आवश्यकता। अब्राहमिक परिवार के तीनों धर्म मरुस्थल में पैदा हुये हुये धर्म है और हिन्दू धर्म मूलतः नदी के किनारे पैदा होने वाला धर्म है।

मरुस्थल में विविधता नहीं होती है। एकमात्र चारों तरफ फैली हुआ बालुमय धरती ही दृष्टिगोचर होती है। ऐसे में एक ही असीम शक्ति का अनुभव एक सहज मनोभाव है। मनुष्य को इश्वर की चेतना साधारणतय प्रकृति के माध्यम से ही होती है। जब प्रकृति में कोई विविधता नहीं दिखायी देगी तब वहां से संस्कार और संस्कारों से निकला हुआ धर्म भी विविधता विहीन ही होगा। तीनों अब्राहमिक धर्मों का उद्भव स्थल रेगिस्तान ही हुआ। तो मरुस्थल की भांति MONOTONY या एकरसता है व मरुस्थल की तरह ही अपरिवर्तनशील भी है।

तीनों धर्मों में ढेर सारी समानतयें हैं। यथा एक इश्वर। एक सर्वशक्तिमान इश्वर जो संसार के जीवों को संचालित कता है और उनके पाप करने पर उन्हें सजा देता है। यानि इश्वर का शासन भय की सत्ता पर टिका हुआ है। आश्चर्यजनकरुप इन तीनों धर्मों से जुड़ी भाषाओं में किसी भी भाषा “पुण्य” के लिये कोई शब्द नहीं है। सिर्फ पाप के लिये शब्द (sin) है। अर्थात् समग्र रूप से भय के द्वारा इश्वर की स्थपना का प्रयास है। इश्वर किसी उंचें स्थान पर बैठ सबके पापों की गिनती कर कयामत का इन्तजार करता है। हिन्दू धर्म में नदी के प्रवाह की भांति एक प्रतिक्षण परिवर्तनशील नूतनता है। इसी कारण से इन्द्रधनुषी विविधता भी है।

अब्राहमिक धर्मों में एक Prophet है जिसके माध्यम से इश्वर लोगों को TEN COMMANDMENTS की नांई आदेश देता है। एवं उनकी अवहेलना करने पर सजा देने का प्रावधान है। यह इश्वरत्व के अवरोहण की प्रक्रिया है। उपर से नीचे आने की प्रक्रिया है।

हिन्दू में अहम् ब्रह्मास्मि का उद्घोष है। यानि आरोहण की प्रक्रिया है। मनुष्य के अपने सत्कर्मों से ब्रह्मत्व को प्राप्त करने की प्रक्रिया है। यहां भय नही उत्साह का उपादान है।