मेनू टॉगल करें
Toggle personal menu
लॉग-इन नहीं किया है
Your IP address will be publicly visible if you make any edits.

ध्रुवदास

भारतपीडिया से

ध्रुवदास का राधावल्लभ सम्प्रदाय में भक्त कवियों में प्रमुख स्थान है।

जीवन परिचय

राधावल्लभ सम्प्रदाय में ध्रुवदास का भक्त कवियों में प्रमुख स्थान है। इस सम्प्रदाय भक्ति-सिद्धान्तों का जैसा सर्वांगपूर्ण विवेचन इनकी वाणी में उपलब्ध होता है वैसा किसी अन्य भक्तों की वाणी में नहीं।सम्प्रदाय में विशेष महत्वपूर्ण स्थान होते हुए भी आप के जन्म-संवत आदि का कुछ भी निश्चित पता नहीं है। आपने अपने रसानन्द लीला नामक ग्रन्थ में उसका रचना-काल इस प्रकार दिया है :

संवत सोलह सै पंचासा ,बरनत हित ध्रुव जुगल बिलासा।

विद्वानों के अनुसार इनका जन्म एक कायस्थ जमींदार परिवार में हुआ था। उनके जन्म तिथि को लेकर बहुत विषमता है लेकिन उनके रसानंद लीला ग्रन्थ को यदि आप की प्रारम्भिक रचना माना जाय तो उससे कम से कम बीस वर्ष पूर्व की जन्म तिथि माननी होगी। इस आधार पर आप का जन्म संवत १६३०[1830]के आसपास सुनिश्चित होता है। इसीप्रकार ध्रुवदास जी के रहस्यमंजरी लीला[१] नामक ग्रन्थ में उपलब्ध निम्न दोहे के आधार पर इनके मृत्यु संवत १७०० [1900] के आसपास का अनुमान लगाया जा सकता है :

सत्रह सै द्वै ऊन अरु अगहन पछि उजियार।
दोहा चौपाई कहें ध्रुव इकसत ऊपर चार।।

ध्रुवदास जी का जन्म देवबन्द ग्राम के कायस्थ कुल में हुआ था।आप के वंश में पहले से ही वैष्णव-पद्धति की अनन्य उपासना चलती थी। ध्रुवदास जी के वंशजों के अनुसार इनके पितामह श्री हितहरिवंश जी के शिष्य थे। इनके पिता श्यामदास भी परमभक्त और समाज सेवी पुरुष थे। ध्रुवदास की रचनाओं से पता चलता है कि पिता समान इन्होंने भी श्री गोपीनाथ जी से ही युगल-मन्त्र की दीक्षा ली

श्री गोपीनाथ पद उर धरैं महागोप्य रस धार।
बिनु विलम आवे हिये अद्भुत जुगल विहार।।

ध्रुवदास जी जन्मजात संस्कारों के कारण शैशव में ही विरक्त हो गए और अल्पायु में ही वृन्दावन चले आये। ये स्वभाव से अत्यंत विनम्र ,विनीत,साधुसेवी,सहनशील और गंभीर प्रकृति के महात्मा थे।

रचनाएँ

आप की सभी रचनाएँ मुक्तक हैं। अपने ग्रंथों का नाम लीला रखा। इनके ग्रंथों या लीलाओं की संख्या बयालीस है। इसके अतिरिक्त आप के १०३ फुटकर पद और मिलते हैं। जिन्हें पदयावली के नाम से बयालीस लीला में स्थान दिया गया है।

भक्ति माधुर्य का वर्णन

वृन्दावन घन-कुंज में प्रेम -विलास करने वाले अपने उपास्य-युगल श्यामा-श्याम का परिचय ध्रुवदास जी ने निम्न कवित्त में दिया है :

प्रीतम किशोरी गोरी रसिक रंगीली जोरी ,
प्रेम के रंग ही बोरी शोभा कही जाति है।
एक प्राण एक बेस एक ही सुभाव चाव ,
एक बात दुहुनि के मन को सुहाति है।
एक कुंज एक सेज एक पट ओढ़े बैठे ,
एक एक बीरी दोउ खंडि खंडि खात हैं।
एक रस एक प्राण एक दृष्टि हित ध्रुव
हेरि हेरि बढ़े चौंप क्यों हू न अघात हैं।।

राधा-कृष्ण के पारस्परिक प्रेम का वर्णन निम्न कवित्त में दृष्टव्य है :

जैसी अलबेली बाल तैसे अलबेले लाल ,
दुहुँनि में उलझी सहज शोभा नेह की।
चाहनि के अम्बु दे-दे सींचत हैं छिन-छिन ,
आलबाल भई -सेज छाया कुंज गेह की।।
अनुदिन हरी होति पानिष वदन जोति ,
ज्यों ज्यों ही बौछार ध्रुव लागे रूप मेह की।
नैननि की वारि किये हरैं सखी मन दियें ,
चित्र सी ह्वै रही सब भूली सुधि देह की।।

ध्रुवदास जी ने अपनी आराध्या राधा के स्वाभाव तथा सौन्दर्य का वर्णन कई कवित्त और सवैयों में किआ है। निम्न कवित्त उनकी काव्य-प्रतिभा एवं कल्पना शक्ति का पूर्ण परिचायक है।

हँसनि में फूलन की चाहन में अमृत की ,
नख सिख रूप ही की बरषा सी होति है।
केशनि की चन्द्रिका सुहाग अनुराग घटा ,
दामिनी की लसनि दशनि ही की दोति है।।
हित ध्रुव पानिप तरंग रस छलकत ,
ताको मानो सहज सिंगार सीवाँ पोति है।
अति अलबेलि प्रिये भूषित भूषन बिनु ,
छिन छिन औरे और बदन की जोति है।।

बाह्य स्रोत

  • ब्रजभाषा के कृष्ण-काव्य में माधुर्य भक्ति :डॉ रूपनारायण :हिन्दी अनुसन्धान परिषद् दिल्ली विश्वविद्यालय दिल्ली के निमित्त :नवयुग प्रकाशन दिल्ली -७

सन्दर्भ