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नंद वंश (साँचा:Lang-sa) प्राचीन भारत का एक शक्तिशाली राजवंश था, जिसने मगध में शासन किया। यह वंश शिशुनाग वंश के बाद सत्ता में आया और मौर्य साम्राज्य से पहले तक शासन करता रहा।
स्थापना और विस्तार
नंद वंश की स्थापना महापद्म नंद ने की थी, जिन्हें "एकच्छत्र" (संपूर्ण भारत का सम्राट) कहा जाता था। वे एक महान विजेता थे, जिन्होंने अवंति, कोशल, और कुरु राज्यों सहित कई महाजनपदों को अपने अधीन कर लिया। उनके शासनकाल में मगध भारत की सबसे शक्तिशाली महाशक्ति बन गया।
शासन और प्रशासन
नंद राजाओं का प्रशासन केंद्रीकृत और संगठित था। कर प्रणाली अत्यंत उन्नत थी और व्यापारिक संपन्नता अपने चरम पर थी। नंदों की विशाल सेना में 2 लाख पैदल सैनिक, 20 हजार घुड़सवार, 2 हजार रथ और 3 हजार हाथी थे, जो उनकी सैन्य शक्ति को दर्शाते हैं।
आर्थिक समृद्धि
नंद वंश के समय भारत की अर्थव्यवस्था अत्यंत समृद्ध थी। व्यापार, कृषि और उद्योग उन्नत अवस्था में थे। उस समय सिक्का प्रणाली का प्रयोग किया जाता था और व्यापारिक मार्गों का विस्तार हुआ।
कला और संस्कृति
नंद शासनकाल में साहित्य, शिक्षा और स्थापत्य कला को बढ़ावा मिला। पाटलिपुत्र में उस समय भव्य भवन और राजप्रासाद थे। शिक्षा केंद्रों में तक्षशिला और नालंदा जैसे स्थान प्रमुख थे।
अंतिम शासक और उत्तराधिकार
नंद वंश का अंतिम सम्राट धनानंद था, जो अत्यंत शक्तिशाली था। किंतु, चंद्रगुप्त मौर्य और उनके गुरु चाणक्य की कुशल रणनीति के कारण नंद वंश का अंत हुआ और मौर्य साम्राज्य की स्थापना हुई।
विरासत
नंद वंश ने भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान बनाया। उनकी सैन्य, प्रशासनिक और आर्थिक नीतियाँ आगे चलकर मौर्य साम्राज्य की नींव बनीं। वे भारत के पहले शासक थे जिन्होंने एक विशाल साम्राज्य को संगठित किया और उसकी समृद्धि को बढ़ाया।
संदर्भ
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