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पाकिस्तान का संविधान

भारतपीडिया से

साँचा:Infobox document साँचा:पाकिस्तान की राजनीति

पाकिस्तान का संविधान (साँचा:Lang-ur;आईन-(ए)-पाकिस्तान) या दस्तूर-ए-पाकिस्तान साँचा:Lang-ur) को १९७३ की विधि भी कहते हैं। यह पाकिस्तान का सर्वोच्च विधान है।[१] पाकिस्तान का संविधान 10 अप्रैल 1973 को संविधान सभा पारित किया गया तथा 14 अगस्त 1973 से प्रभावी हुआ।[२] इस का प्रारूप जुल्फिकार अली भुट्टो की सरकार और प्रतिपक्ष ने मिलकर तैयार किया थख। यह पाकिस्तान का तीसरा संविधान है और इसमें कई बार संशोधन किया जा चुका है।

पाकिस्तानी संविधान का इतिहास व उत्पत्ति

1950 में भारत के संविधान में संशोधन के पश्चात्पाकिस्तान के सांसदों ने अपने संविधान को बनाने का प्रयास तेज कर दिया। प्रधानमन्त्री मोहम्मद अली और उनकी सरकार के अधिकारियों ने देश में प्रतिपक्षी दलों के सहयोग के साथ मिलकर पाकिस्तान के लिए एक संविधान तैयार किया। [३]

अन्त में इस संयुक्त कार्य के कारण, संविधान के पहले समुच्चय को लागू किया गया। यह घटना 23 मार्च 1956 को हुई थी, इस दिन को आज भी पाकिस्तान के संविधान के प्रवर्तन के उपलक्ष्य में गणतंत्रता दिवस(या पाकिस्तान दिवस) मनाता है। इस संविधान ने पाकिस्तान को "एकसदनीय विधायिका" के साथ सरकार की संसदीय प्रणाली प्रदान की। साथ ही इसने आधिकारिक तौर पर पाकिस्तान को एक इस्लामी गणराज्य घोषित भी किया(इसी के साथ पाकिस्तान विश्व की पहली इस्लामी गणराज्य बन गरी)। इसके अलावा इसमें समता के सिद्धान्त को भी पहली बार प्रस्कितुत या गया था।

संविधान द्वारा, इस्कंदर मिर्जा ने अध्यक्ष पद ग्रहण किया, लेकिन राष्ट्रीय मामलों में उनकी लगातार असंवैधानिक भागीदारी के कारण, चार निर्वाचित प्रधानमंत्रियों को मात्र दो सालों में ही बर्खास्त कर दिया गया। जनता के दबाव के तहत, राष्ट्रपति इस्कंदर मिर्जा ने 1958 में तख्तापलट को वैध ठहराया; और इस प्रकार यह संविधान लगभग निलम्बित हो गया। शीघ्र ही बाद में जनरल अयूब खान ने इस्कन्दर मिर्जा अपदस्थ और खुद को राष्ट्रपति घोषित कर दिया। और इसलिए इस यह संविधान केवल 3 वर्ष के लिए ही चल पाया।

17 फरवरी 1960, को अयूब खान ने देश के भविष्य के राजनीतिक ढाँचे पर रिपोर्ट करने के लिए एक आयोग की नियुक्ति की। आयोग पाकिस्तान के पूर्व मुख्य न्यायाधीश, मोहम्मद शहाबुद्दीन की अध्यक्षता में दस अन्य सदस्यों के साथ गठित की गई थी। इसमें पूर्वी पाकिस्तान से पाँच सदस्य और पाँच पश्चिमी पाकिस्तान से भी पाँच सदस्य थे। यह पूर्णतः सेवानिवृत्त न्यायाधीशों, वकीलों, उद्योगपतियों और जमींदारों से बना था। इस संविधान आयोग की रिपोर्ट को 6 मई 1961 को राष्ट्रपति अयूब के समक्ष प्रस्तुत की गई और राष्ट्रपति और उनके मन्त्रिमण्डल द्वारा जाँच के पश्चात जनवरी 1962 में, कैबिनेट अन्त में नए संविधान के मूल पाठ को मंजूरी दे दी गई। इसे राष्ट्रपति अयूब द्वारा 1 मार्च 1962 को लागू किया गया था और अन्त में 8 जून 1962 को यह प्रभाव में आया। यह संविधान निहित 250 अनुच्छेद और बारह भागों और तीन कार्यक्रम में बाँटा गया था।

पिछले संविधान की तरह ही इसमें भी पाकिस्तान को इस्लामी मूल्यों पर बनाने की बात की गई थी और एकसदनीय विधायिका को तथस्त रखा गया था। परन्तु 1956 के संविधान के मुकाबले इस संविधान की परियोजनाओं के मुताबिक पाकिस्तान के राष्ट्रपति को अनेक कर्याधिकार दिये गए थे, और मूलतः एक अध्यक्षीय व्यवस्था गठित की गई थी।

१९५६ के संविधान की तरह ही 1962 का संविधान भी अधिक समय तक नहीं रह पाया। पाकिस्तान में दूसरा मार्शल लॉ(सैन्य शासन), 26 मार्च 1969 को लगाया गया था जब राष्ट्रपति अयूब खान ने 1962 में संविधान निराकृत किया और सेना के कमाण्डर-इन-चीफ़ जनरल आगा मोहम्मद याह्या खान को सत्ता सौंप दिया। राष्ट्रपति पद संभालने पर, जनरल याह्या खान पश्चिम पाकिस्तान में लोकप्रिय माँग पर एक इकाई व्यवस्था को खत्म कर दिया और एक आदमी एक वोट के सिद्धान्त पर आम चुनाव का आदेश दिया।[४]

सन्दर्भ

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