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प्रकाशिकी

भारतपीडिया से
दर्पणो से प्रकाश के परिवर्तन प्रकाशिकी का विषय है।

प्रकाश का अध्ययन भी दो खंडों में किया जाता है। पहला खंड, ज्यामितीय प्रकाशिकी, प्रकाश किरण की संकल्पना पर आधारित है। दर्पणों से प्रकाश का परार्वतन और लेंसों तथा प्रिज्मों से प्रकाश का अपवर्तन, ज्यामितीय प्रकाशिकी के विषय है। सूक्ष्मदर्शी, दूरदर्शी, फोटोग्राफी कैमरा तथा अन्य उपयोगी प्रकाशिकी यंत्रों की क्रियाविधि ज्यामितीय प्रकाशिकी के नियमों पर ही आधारित है।

प्रकाशिकी का दूसरा खंड भौतिक प्रकाशिकी है। इसमें प्रकाश की मूल प्रकृति तथा प्रकाश और द्रव्य की पारस्परिक क्रिया का अध्ययन किया जाता है। प्रकाश सूक्ष्म कणों का संचार है, ऐसा मानकर न्यूटन ने ज्यामितीय प्रकाशिकी के मुख्य परिणामों की व्याख्या की। पर 19वीं शताब्दी में प्रकाश के व्यतिकरण की घटनाओं का आविष्कार हुआ। इन क्रियाओं की व्याख्या कणिका सिद्धांत से संभव नहीं है, अत: बाध्य होकर यह मानना पड़ा कि प्रकाश तरंगसंचार ही है। ऊपर वर्णित मैक्सवेल के विद्युतचुंबकीय सिद्धांत ने प्रकाश के तरंग सिद्धांत को ठोस आधार दिया।

भौतिक प्रकाशिकी का एक महत्वपूर्ण भाग [[स्पेक्ट्रामिकी (Spectroskopy) है। इसमें प्रकाश तरंगों के स्पेक्ट्रम का अध्ययन किया जाता है। अणु परमाणुओं की रचना को समझने में इस प्रकार के अध्ययन का प्रमुख योगदान रहा है। विज्ञान की यह शाखा तारा भौतिकी की आधारशिला है।

इन्हें भी देखें

बाहरी कड़ियाँ

पाठ्यपुस्तकें तथा पठनसामग्री

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