More actions
{{ज्ञानसन्दूक
| bodyclass = biography vcard
| bodystyle = width:{{#if:{{{box_width}}}|{{{box_width}}}| 22em}}; font-size:95%; text-align:left;
| above = "{{{name}}}{{{PAGENAME}}}""
| aboveclass = fn
| abovestyle = text-align:center; font-size:125%;
| image = {{#if:Punjab map (topographic) with cities.png|[[Image:Punjab map (topographic) with cities.png|{{{imagesize}}}
| imageclass = साँचा:Image class names
| imagestyle = padding:4pt; line-height:1.25em;
text-align:center; font-size:8pt;
| caption = पंजाब का भौगोलिक मानचित्र;
| captionstyle =padding-top:2pt;
| labelstyle = padding:0.2em 1.0em 0.2em 0.2em;
background:transparent; line-height:1.2em; text-align:left;
font-size:90%;
| datastyle = padding:0.2em; line-height:1.3em;
vertical-align:middle; font-size:90%;
| label1 = {{#if:{{{birth_name}}}|{{{birth_date}}}}}
{{{birth_place}}} जन्म
| data1 = {{#if:{{{birth_name}}}|{{{birth_name}}}
}}{{#if:{{{birth_date}}}|{{{birth_date}}}
}}{{{birth_place}}}
| label2 = {{#if:{{{death_date}}}|{{{death_place}}}|मृत्यु}}
| data2 = {{#if:{{{death_date}}}|{{{death_date}}}
}}{{{death_place}}}
| label3 = मृत्यु का कारण
| data3 = {{{death_cause}}}{{{मृत्यु का कारण}}}
| data4 = {{{Body_discovered}}}
| label4 = शव मिला
| label5 = समाधि
| class5 = label
| data5 = {{{resting_place}}}{{#if:{{{resting_place_coordinates}}}|
>{{{resting_place_coordinates}}}}}
| label6 = आवास
| class6 = label
| data6 = {{{residence}}}
| label7 = राष्ट्रीयता
| data7 = {{{राष्ट्रीयता}}}
| label8 = उपनाम
| class8 = उपनाम
| data8 = {{{उपनाम}}}
| label9 = नृजाति
| data9 = {{{नृजाति}}}
| label10 = नागरिकता
| data10 = {{{नागरिकता}}}
| label11 = शिक्षा
| data11 = {{{शिक्षा}}}
| label12 = शिक्षा का स्थान
| data12 = {{{alma_mater}}}
| label13 = उपजीविका
| class13 = भूमिका
| data13 = {{{occupation}}}
| label14 = कार्यकाल
| data14 = {साँचा:Years active
| label15 = सङ्गठन
| data15 = {{{employer}}}
| label16 = गृह-नगर
| data16 = {{{home_town}}}
| label17 = उपाधि
| data17 = {{{title}}}
| label18 = वेतन
| data18 = {{{वेतन}}}
| label19 = कुल सम्पत्ति
| data19 = {{{networth}}}
| label20 = ऊँचाई
| data20 = {{{ऊँचाई}}}
| label21 = भार
| data21 = {{{भार}}}
| label22 = प्रसिद्धि का कारण
| data22 = {{{प्रसिद्धि कारण}}}
| label23 = अवधि
| data23 = {{{अवधि}}}
| label24 = पूर्वाधिकारी
| data24 = {{{predecessor}}}
| label25 = उत्तराधिकारी
| data25 = {{{उत्तराधिकारी}}}
| label26 = राजनीतिक दल
| data26 = {{{party}}}
| label27 = बोर्ड सदस्यता
| data27 = {{{boards}}}
| label28 = धर्म
| data28 = {{{religion}}}
| label29 = जीवनसाथी
| data29 = {{{जीवनसाथी}}}
| label30 = साथी
| data30 = {{{partner}}}
| label31 = सन्तान
| data31 = {{{children}}}
| label32 = माता-पिता
| data32 = {{{माता-पिता}}}
| label33 = सम्बन्धी
| data33 = {{{relatives}}}
| label35 = आवाहान-सङ्केत
| data35 = {{{callsign}}}
| label36 = आपराधिक मुकदमा
| data36 = {{{criminal_charge}}}
| label37 = {{#if:{{{burial_place}}}|समाधि}}
| data37 = {{#if:{{{burial_place}}}|{{{burial_place}}}|{{#if:{Br separated entries|1={{{burial_place}}}|2={{{burial_coordinates}}}|1={{{resting_place}}}}}}}
| class38 = label
| label39 = पुरस्कार
| data39 = {{{पुरस्कार}}}
| data40 = {{#if:{{{signature}}}|"""हस्ताक्षर"""
}}
| data41 = {{#if:{{{website}}}|"""वेबसाइट्"""
{{{website}}}}}
| data42 = {{#if:{{{footnotes}}}|
}}
}} साँचा:स्रोतहीन प्रथम आंग्ल-सिख युद्ध पंजाब के सिख राज्य तथा अंग्रेजों के बीच 1845-46 के बीच लड़ा गया था। इसके परिणाम स्वरूप सिख राज्य का कुछ हिस्सा अंग्रेजी राज का हिस्सा बन गया।
- प्रथम सिक्ख युद्ध का प्रथम रण (१८ दिसम्बर १८४५) मुदकी में हुआ। प्रधानमंत्री लालसिंह के रणक्षेत्र से पलायन के कारण सिक्ख सेना की पराजय निश्चित हो गई।
- दूसरा मोर्चा (२१ दिसंबर) फिरोजशाह में हुआ। अंग्रेजी सेना की भारी क्षति के बावजूद, रात में लालसिंह, तथा प्रात: प्रधान सेनापति तेजासिंह के पलायन के कारण सिक्ख सेना पुन: पराजित हुई।
- तीसरा मोर्चा (२१ जनवरी १८४६) बद्दोवाल में हुआ। रणजीतसिंह तथा अजीतसिंह के नायकत्व में सिक्ख सेना ने हैरी स्मिथ को पराजित किया; यद्यपि ब्रिगेडियर क्योरेटन द्वारा सामयिक सहायता पहुँचने के कारण अंग्रेजी सेना की परिस्थिति कुछ सँभल गई।
- चौथा मोर्चा (२८ जनवरी) अलीवाल में हुआ, जहाँ अंग्रेजों का सिक्खों से अव्यवस्थित संघर्ष (Skirmish) हुआ।
- अंतिम रण (१० फरवरी) स्व्रोओं में हुआ। तीन घंटे की गोलाबारी के बाद, प्रधान अंग्रेजी सेनापति लार्ड गफ ने सतलुज के बाएँ तट पर स्थित सुदृढ़ सिक्ख मोर्चे पर आक्रमण कर दिया। प्रथमत: गुलाब सिंह ने सिक्ख सेना को रसद पहुँचाने में जान-बूझकर ढील दी। दूसरे, लाल सिंह ने युद्ध में सामयिक सहायता प्रदान नहीं की। तीसरे, प्रधान सेनापति तेजासिंह ने युद्ध के चरम बिंदु पर पहुँचने के समय मैदान ही नहीं छोड़ा, बल्कि सिक्ख सेना की पीठ की ओर स्थित नाव के पुल को भी तोड़ दिया। चतुर्दिक घिरकर भी सिक्ख सिपाहियों ने अंतिम मोर्चे तक युद्ध किया, किंतु, अंतत:, उन्हें आत्मसमर्पण करना पड़ा।
२० फ़रवरी १८४६, को विजयी अंग्रेज सेना लाहौर पहुँची। लाहौर (९ मार्च) तथा भैरोवाल (१६ दिसंबर) की संधियों के अनुसार पंजाब पर अंग्रेजी प्रभुत्व की स्थापना हो गई। लारेंस को ब्रिटिश रेजिडेंट नियुक्त कर विस्तृत प्रशासकीय अधिकार सौंप दिए गए। अल्प वयस्क महाराजा दिलीप सिंह की माता तथा अभिभावक रानी जिंदाँ को पेंशन बाँध दी गई। अब पंजाब का अधिकृत होना शेष रहा जो डलहौजी द्वारा संपन्न हुआ।
कारण
वास्तव में, अपरोक्ष रूप से, आंग्ल-सिक्ख संघर्ष का बीजारोपण तभी हो गया जब सतलज पर अंग्रेजी सीमांत रेखा के निर्धारण के साथ पूर्वी सिक्ख रियासतों पर अंग्रेजी अभिभावकत्व की स्थापना हुई। सिक्ख राजधानी, लाहौर, के निकट फिरोजपुर का अंग्रेजी छावनी में परिवर्तित होना (१८३८) भी सिक्खों के लिए भावी आशंका का कारण बना। गवर्नर जनरल एलनबरा और उसके उत्तराधिकारी हार्डिंज अनुगामी नीति के समर्थक थे। २३ अक्टूबर १८४५ को हार्डिज ने एलेनबरा को लिखा था कि पंजाब या तो सिक्खों का होगा, या अंग्रेजों का; तथा, विलंब केवल इसलिए था कि अभी तक युद्ध का कारण अप्राप्त था। वह कारण भी उपलब्ध हो गया जब प्रबल किंतु अनियंत्रित सिक्ख सेना, अंग्रेजों के उत्तेजनात्मक कार्यों से उद्वेलित हो, तथा पारस्परिक वैमनस्य और षड्यंत्रों से अव्यवस्थित लाहौर दरबार के स्वार्थ लोलुप प्रमुख अधिकारियों द्वारा भड़काए जाने पर, संघर्ष के लिए उद्यत हो गई। सिक्ख सेना के सतलुज पार करते ही (१३ दिसम्बर १८४५) हार्डिज ने युद्ध की घोषणा कर दी।
1 जनवरी 1845 के अपने एक पत्र में लॉर्ड हार्डिंग में स्पष्ट रूप से स्वीकार किया है कि वह युद्ध करने के लिए तत्पर है लेकिन अपनी कठिनाइयों को स्पष्ट करते हुए उसने यह भी लिखा है कि किस बहाने सिखों पर आक्रमण किया जाए क्योंकि सिखों के साथ अंग्रेजों केेे अच्छे संबंध हैैै अब तमाम मुश्किलों मेंं सिखों ने अंग्रेजों का साथ दिया है