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प्रवचनसार

भारतपीडिया से

साँचा:जैन धर्म प्रवचनसार आचार्य कुन्दकुन्द की एक [१]महत्वपूर्ण कृति मानी जाती है यह समयसार के बाद की रचना है तथा सीमंधर स्वामी के समवसरण से लौटने के [२]पश्चात उनके प्रवचनों का सार के रूप में लिखी गई कृति है इसलिए इसका नाम भी प्रवचनसार रखा गया है। यह तीन भागों में विभक्त है: ज्ञानतत्त्व प्रज्ञापन, ज्ञेयतत्त्व प्रज्ञापन और चारित्र चूलिका।

सन्दर्भ

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