बिरसा मुंडा
बिरसा मुण्डा का जन्म 15 नवम्बर 1875 के दशक में छोटा किसान के गरीब परिवार में हुआ था। मुण्डा एक जनजातीय समूह था जो छोटा नागपुर पठार (झारखण्ड) निवासी था। बिरसा जी को 1900 में आदिवासी लोंगो को संगठित देखकर ब्रिटिश सरकार ने आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया तथा उन्हें 2 साल का दण्ड दिया। [१]
आरंभिक जीवन
इनका जन्म मुंडा जनजाति के गरीब परिवार में पिता-सुगना पुर्ती(मुंडा) और माता-करमी पुर्ती(मुंडाईन) के सुपुत्र बिरसा पुर्ती (मुंडा) का जन्म 15 नवम्बर 1875 को झारखण्ड के खुटी जिले के उलीहातु गाँव में हुआ था। जो निषाद परिवार से थे, साल्गा गाँव में प्रारम्भिक पढाई के बाद वे चाईबासा जी0ई0एल0चार्च(गोस्नर एवंजिलकल लुथार) विधालय में पढ़ाई किया था। इनका मन हमेशा अपने समाज की यूनाइटेड किंगडम|ब्रिटिश शासकों द्वारा की गयी बुरी दशा पर सोचते रहते थे। उन्होंने मुण्डा|मुंडा लोगों को अंग्रेजों से मुक्ति पाने के लिये अपना नेतृत्व प्रदान किया।1894 में मानसून के छोटा नागपुर पठार, छोटानागपुर में असफल होने के कारण भयंकर अकाल और महामारी फैली हुई थी। बिरसा ने पूरे मनोयोग से अपने लोगों की सेवा की। [२]
मुंडा विद्रोह का नेतृत्व
1 अक्टूबर 1894 को बिरसा मुंडा ने सभी आदिवासियों को एकत्र कर इन्होंने अंग्रेजो से लगान (कर) माफी के लिये आन्दोलन किया। 1895 में उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया और हजारीबाग केन्द्रीय कारागार में दो साल के कारावास की सजा दी गयी। लेकिन बिरसा और उसके सहयोगियों ने क्षेत्र की अकाल पीड़ित जनता की सहायता करने की ठान रखी थी और जिससे उन्होंने अपने छोटे से जीवन काल में ही एक महापुरुष का दर्जा पाया। उन्हें देश के सभी आदिवासी "धरती बाबा" अर्थात सर्वोच्च पुरखा के नाम से पुकारा करते थे। उनके प्रभाव की वृद्धि के बाद पूरे इलाके के मुंडा एवं दूसरे सभी आदिवासी समुदायों को संगठित होने की चेतना जागी।[३]
विद्रोह में भागीदारी और अन्त
1897 से 1900 के बीच मुंडाओं और अंग्रेज सिपाहियों के बीच युद्ध होते रहे और बिरसा और उसके चाहने वाले लोगों ने अंग्रेजों की नाक में दम कर रखा था। अगस्त 1897 में बिरसा और उसके चार सौ सिपाहियों ने तीर कमानों से लैस होकर खूँटी थाने पर धावा बोला। 1898 में तांगा नदी के किनारे मुंडाओं की भिड़ंत अंग्रेज सेनाओं से हुई जिसमें पहले तो अंग्रेजी सेना हार गयी लेकिन बाद में इसके बदले उस इलाके के बहुत से आदिवासी नेताओं की गिरफ़्तारियाँ हुईं।[४]
जनवरी 1900 डोम्बरी पहाड़ पर एक और संघर्ष हुआ था जिसमें बहुत सी औरतें व बच्चे मारे गये थे। उस जगह बिरसा अपनी जनसभा को सम्बोधित कर रहे थे। बाद में बिरसा के कुछ शिष्यों की गिरफ़्तारियाँ भी हुईं। अन्त में स्वयं बिरसा भी 3 मार्च 1900 को चक्रधरपुर में गिरफ़्तार कर लिये गये। बिरसा ने अपनी अन्तिम साँसें 9 जून१९०० को आंग्रेजों द्वारा जहर देकर मर गया |1900 को राँची कारागार में लीं। आज भी बिहार, उड़ीसा, झारखंड, छत्तीसगढ और पश्चिम बंगाल के आदिवासी इलाकों में बिरसा मुण्डा को भगवान की तरह पूजा जाता है।[३]
बिरसा मुण्डा की समाधि राँची में कोकर के निकट डिस्टिलरी पुल के पास स्थित है। वहीं उनका स्टेच्यू भी लगा है। उनकी स्मृति में रांची में बिरसा मुण्डा केन्द्रीय कारागार तथा बिरसा मुंडा अंतरराष्ट्रीय विमानक्षेत्र भी है।[५]
संदर्भ
- ↑ "रांची में बिरसा मुंडा की समाधि,उनके नाम से विमान क्षेत्र भी है-वास्कले". Dainik Bhaskar. 2019-11-18. अभिगमन तिथि 2020-06-09.
- ↑ "Birsa Munda: आज भगवान बिरसा मुंडा को याद कर रहा झारखंड, समाधि स्थल पर लोगों ने दी श्रद्धांजलि". Dainik Jagran. अभिगमन तिथि 2020-06-09.
- ↑ ३.० ३.१ भारद्वाज, अनुराग. "बिरसा मुंडा : जिनके उलगुलान और बलिदान ने उन्हें धरती आबा बना दिया". Satyagrah. मूल से 29 जून 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2020-06-09.
- ↑ "पुण्यतिथि पर याद किए गए भगवान बिरसा मुंडा". Dainik Bhaskar. 2019-06-10. मूल से 12 जून 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2020-06-09.
- ↑ "जेल में आने के दो माह बाद ही जेल में उन्हे खाना के बहना जहर खाकर बिरसा मुंडा की मृत्यु हो गया". जागरण.
इन्हें भी देखें
बाहरी कड़ियाँ
- बिरसा एक क्रांतिकारी थे, जिन्हें लोग पूजा करते हैं (प्रभासाक्षी)
- अब भी अधूरी है शहीद बिरसा मुंडा का सपना
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