मेनू टॉगल करें
Toggle personal menu
लॉग-इन नहीं किया है
Your IP address will be publicly visible if you make any edits.

यम द्वितीया

भारतपीडिया से

साँचा:आज का आलेख

भ्रातृ द्वितीया (भाई दूज) कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाने वाला हिन्दू धर्म का पर्व है जिसे यम द्वितीया भी कहते हैं। यह दीपावली के दो दिन बाद आने वाला ऐसा पर्व है, जो भाई के प्रति बहन के स्नेह को अभिव्यक्त करता है एवं बहनें अपने भाई की खुशहाली के लिए कामना करती हैं।

साँचा:ज्ञानसन्दूक त्योहार

पौराणिक मान्यता

कार्तिक शुक्ल द्वितीया को पूर्व काल में [यमुना]] ने यमराज को अपने घर पर सत्कारपूर्वक भोजन कराया था। उस दिन नारकी जीवों को यातना से छुटकारा मिला और उन्हें तृप्त किया गया। वे पाप-मुक्त होकर सब बंधनों से छुटकारा पा गये और सब के सब यहां अपनी इच्छा के अनुसार सन्तोषपूर्वक रहे। उन सब ने मिलकर एक महान् उत्सव मनाया जो यमलोक के राज्य को सुख पहुंचाने वाला था। इसीलिए यह तिथि तीनों लोकों में यम द्वितीया के नाम से विख्यात हुई।[१]

जिस तिथि को यमुना ने यम को अपने घर भोजन कराया था, उस तिथि के दिन जो मनुष्य अपनी बहन के हाथ का उत्तम भोजन करता है उसे उत्तम भोजन समेत धन की प्राप्ति भी होती रहती है।[२] हलाकि, भैया दूज त्यौहार का वर्णन हमारे पवित्र धर्म ग्रंथो में नहीं मिलता, इसलिए भैया दूज मनाना एक शास्त्र अनुकूल साधना नही है।[३]

विधि एवं निर्देश

समझदार लोगों को इस तिथि को अपने घर मुख्य भोजन नहीं करना चाहिए। उन्हें अपनी बहन के घर जाकर उन्हीं के हाथ से बने हुए पुष्टिवर्धक भोजन को स्नेह पूर्वक ग्रहण करना चाहिए तथा जितनी बहनें हों उन सबको पूजा और सत्कार के साथ विधिपूर्वक वस्त्र, आभूषण आदि देना चाहिए। सगी बहन के हाथ का भोजन उत्तम माना गया है। उसके अभाव में किसी भी बहन के हाथ का भोजन करना चाहिए। यदि अपनी बहन न हो तो अपने चाचा या मामा की पुत्री को या माता पिता की बहन को[४] या मौसी की पुत्री या मित्र की बहन को भी बहन मानकर ऐसा करना चाहिए।[५] बहन को चाहिए कि वह भाई को शुभासन पर बिठाकर उसके हाथ-पैर धुलाये। गंधादि से उसका सम्मान करे और दाल-भात, फुलके, कढ़ी, सीरा, पूरी, चूरमा अथवा लड्डू, जलेबी, घेवर आदि (जो भी उपलब्ध हो) यथा सामर्थ्य उत्तम पदार्थों का भोजन कराये। भाई बहन को अन्न, वस्त्र आदि देकर उससे शुभाशीष प्राप्त करे।[६]

लोक प्रचलित विधि

एक उच्चासन (मोढ़ा, पीढ़ी) पर चावल के घोल से पांच शंक्वाकार आकृति बनाई जाती है। उसके बीच में सिंदूर लगा दिया जाता है। आगे में स्वच्छ जल, 6 कुम्हरे का फूल, सिंदूर, 6 पान के पत्ते, 6 सुपारी, बड़ी इलायची, छोटी इलाइची, हर्रे, जायफल इत्यादि रहते हैं। कुम्हरे का फूल नहीं होने पर गेंदा का फूल भी रह सकता है। बहन भाई के पैर धुलाती है। इसके बाद उच्चासन (मोढ़े, पीढ़ी) पर बैठाती है और अंजलि-बद्ध होकर भाई के दोनों हाथों में चावल का घोल एवं सिंदूर लगा देती है। हाथ में मधु, गाय का घी, चंदन लगा देती है। इसके बाद भाई की अंजलि में पान का पत्ता, सुपारी, कुम्हरे का फूल, जायफल इत्यादि देकर कहती है - "यमुना ने निमंत्रण दिया यम को, मैं निमंत्रण दे रही हूं अपने भाई को; जितनी बड़ी यमुना जी की धारा, उतनी बड़ी मेरे भाई की आयु।" यह कहकर अंजलि में जल डाल देती है। इस तरह तीन बार करती है, तब जल से हाथ-पैर धो देती है और कपड़े से पोंछ देती है। टीका लगा देती है। इसके बाद भुना हुआ मखान खिलाती है। भाई बहन को अपनी सामर्थ्य के अनुसार उपहार देता है।[७] इसके बाद उत्तम पदार्थों का भोजन कराया जाता है।

स्पष्ट है कि इस व्रत में बहन को अन्न-वस्त्र, आभूषण आदि इच्छानुसार भेंट देना तथा बहन के द्वारा भाई को उत्तम भोजन कराना ही मुख्य क्रिया है। यह मुख्यतः भाई-बहन के पवित्र स्नेह को अधिकाधिक सुदृढ़ रखने के उद्देश्य से परिचालित व्रत है।

भारत रत्न महामहोपाध्याय डॉ० पी० वी० काणे के अनुसार भ्रातृ द्वितीया का उत्सव एक स्वतंत्र कृत्य है, किंतु यह दिवाली के तीन दिनों में संभवतः इसीलिए मिला लिया गया कि इसमें बड़ी प्रसन्नता एवं आह्लाद का अवसर मिलता है जो दीवाली की घड़ियों को बढ़ा देता है। भाई दरिद्र हो सकता है, बहिन अपने पति के घर में संपत्ति वाली हो सकती है; वर्षों से भेंट नहीं हो सकी है आदि-आदि कारणों से द्रवीभूत होकर हमारे प्राचीन लेखकों ने इस उत्सव की परिकल्पना कर डाली है। भाई-बहन एक-दूसरे से मिलते हैं, बचपन के सुख-दुख की याद करते हैं। इस कृत्य में धार्मिकता का रंग भी जोड़ दिया गया है[८]

चित्रगुप्त जयन्ती

साँचा:Main इसके अलावा कायस्थ समाज में इसी दिन अपने आराध्य देव चित्रगुप्त की पूजा की जाती है। कायस्थ लोग स्वर्ग में श्री धर्मराज का लेखा-जोखा रखने वाले श्री चित्रगुप्त जी का पूजन सामूहिक रूप से तस्वीरों अथवा मूर्तियों के माध्यम से करते हैं। वे इस दिन कारोबारी बहीखातों की पूजा भी करते हैं।[९]

बाहरी कड़ियाँ

साँचा:हिन्दू पर्व-त्यौहार

सन्दर्भ

  1. पद्मपुराणम्, उत्तरखण्डम्-122-93से95, चौखंबा संस्कृत सीरीज ऑफिस, वाराणसी, संस्करण-2015, खंड-4, पृष्ठ-402; (ख)भविष्य महापुराणम् (उत्तर-पर्व)-14-18से20, हिंदी साहित्य सम्मेलन इलाहाबाद, संस्करण-2003, खंड-3, पृष्ठ 77.
  2. पद्मपुराणम्, उत्तरखण्डम्-122-97, चौखंबा संस्कृत सीरीज ऑफिस, वाराणसी, संस्करण-2015, खंड-4, पृष्ठ-402; (ख)भविष्य महापुराणम् (उत्तर-पर्व)-14-22, हिंदी साहित्य सम्मेलन इलाहाबाद, संस्करण-2003, खंड-3, पृष्ठ 77.
  3. साँचा:Cite web
  4. भविष्य महापुराणम् (उत्तर-पर्व)-14-23,24; हिंदी साहित्य सम्मेलन इलाहाबाद, संस्करण-2003, खंड-3, पृष्ठ 77.
  5. महामहोपाध्याय भारत रत्न डॉ० पी० वी० काणे, धर्मशास्त्र का इतिहास, भाग-4, उत्तरप्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ, संस्करण-1996, पृष्ठ-78.
  6. व्रत परिचय, गीता प्रेस गोरखपुर, पृष्ठ-143.
  7. मिथिलाक पाबनि-तिहार, श्रीमती मोहिनी झा, कालिंदी प्रकाशन, सरिसवपाही, तृतीय संस्करण-2005, पृष्ठ-99-100.
  8. महामहोपाध्याय भारत रत्न डॉ० पी० वी० काणे, धर्मशास्त्र का इतिहास, भाग-4, उत्तरप्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ, संस्करण-1996, पृष्ठ-78.
  9. साँचा:Cite web