रानी लक्ष्मीबाई
| लक्ष्मीबाई | |
|---|---|
| झाँसी की रानी | |
![]() फ़र्रूख़ाबाद के नवाब के महल में रानी लक्ष्मीबाई का कलात्मक चित्रण | |
| पूर्ववर्ती | गंगाधर राव |
| उत्तरवर्ती | ब्रितानी राज |
| जन्म | साँचा:Br separated entries |
| निधन | साँचा:Br separated entries |
| समाधि | साँचा:Br separated entries |
| जीवनसंगी | झाँसी नरेश महाराज गंगाधर राव नेवालकर |
| संतान | दामोदर राव, आनन्द राव (गोद लिया) |
| घराना | नेवालकर |
| पिता | मोरोपन्त ताम्बे |
| माता | भागीरथी सापरे |
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</noinclude>स्क्रिप्ट त्रुटि: "Check for unknown parameters" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। रानी लक्ष्मीबाई (जन्म: 19 नवम्बर 1828[१] – मृत्यु: 18 जून 1858) मराठा शासित झाँसी राज्य की रानी और 1857 की राज्यक्रान्ति की द्वितीय शहीद वीरांगना (प्रथम शहीद वीरांगना रानी अवन्ति बाई लोधी 20 मार्च 1858 हैं) थीं। उन्होंने सिर्फ 29 वर्ष की उम्र में अंग्रेज साम्राज्य की सेना से युद्ध किया और रणभूमि में वीरगति को प्राप्त हुईं। बताया जाता है कि सिर पर तलवार के वार से शहीद हुई थी लक्ष्मीबाई।[२]
जीवनी
लक्ष्मीबाई का जन्म वाराणसी में 19 नवम्बर 1828 को हुआ था। उनका बचपन का नाम मणिकर्णिका था लेकिन प्यार से उन्हें मनु कहा जाता था। उनकी माँ का नाम भागीरथीबाई और पिता का नाम मोरोपंत तांबे था। मोरोपंत एक मराठी थे और मराठा बाजीराव की सेवा में थे। माता भागीरथीबाई एक सुसंस्कृत, बुद्धिमान और धर्मनिष्ठ स्वभाव की थी तब उनकी माँ की मृत्यु हो गयी। क्योंकि घर में मनु की देखभाल के लिये कोई नहीं था इसलिए पिता मनु को अपने साथ पेशवा बाजीराव द्वितीय के दरबार में ले जाने लगे। जहाँ चंचल और सुन्दर मनु को सब लोग उसे प्यार से "छबीली" कहकर बुलाने लगे। मनु ने बचपन में शास्त्रों की शिक्षा के साथ शस्त्र की शिक्षा भी ली।[३] सन् 1842 में उनका विवाह झाँसी के मराठा शासित राजा गंगाधर राव नेवालकर के साथ हुआ और वे झाँसी की रानी बनीं। विवाह के बाद उनका नाम लक्ष्मीबाई रखा गया। सितंबर 1851 में रानी लक्ष्मीबाई ने एक पुत्र को जन्म दिया। परन्तु चार महीने की उम्र में ही उसकी मृत्यु हो गयी। सन् 1853 में राजा गंगाधर राव का स्वास्थ्य बहुत अधिक बिगड़ जाने पर उन्हें दत्तक पुत्र लेने की सलाह दी गयी। पुत्र गोद लेने के बाद 21 नवम्बर 1853 को राजा गंगाधर राव की मृत्यु हो गयी। दत्तक पुत्र का नाम दामोदर राव रखा गया।[२]
ब्रितानी राज ने अपनी राज्य हड़प नीति के तहत बालक दामोदर राव के ख़िलाफ़ अदालत में मुक़दमा दायर कर दिया। हालांकि मुक़दमे में बहुत बहस हुई, परन्तु इसे ख़ारिज कर दिया गया। ब्रितानी अधिकारियों ने राज्य का ख़ज़ाना ज़ब्त कर लिया और उनके पति के कर्ज़ को रानी के सालाना ख़र्च में से काटने का फ़रमान जारी कर दिया। इसके परिणाम स्वरूप रानी को झाँसी का क़िला छोड़कर झाँसी के रानीमहल में जाना पड़ा। पर रानी लक्ष्मीबाई ने हिम्मत नहीं हारी और उन्होनें हर हाल में झाँसी राज्य की रक्षा करने का निश्चय किया।[४]
झाँसी का युद्ध
झाँसी 1857 के संग्राम का एक प्रमुख केन्द्र बन गया जहाँ हिंसा भड़क उठी। रानी लक्ष्मीबाई ने झाँसी की सुरक्षा को सुदृढ़ करना शुरू कर दिया और एक स्वयंसेवक सेना का गठन प्रारम्भ किया। इस सेना में महिलाओं की भर्ती की गयी और उन्हें युद्ध का प्रशिक्षण दिया गया। साधारण जनता ने भी इस संग्राम में सहयोग दिया। झलकारी बाई जो लक्ष्मीबाई की हमशक्ल थी को उसने अपनी सेना में प्रमुख स्थान दिया।[५]
1857 के सितम्बर तथा अक्टूबर के महीनों में पड़ोसी राज्य ओरछा तथा दतिया के राजाओं ने झाँसी पर आक्रमण कर दिया। रानी ने सफलतापूर्वक इसे विफल कर दिया। 1858 के जनवरी माह में ब्रितानी सेना ने झाँसी की ओर बढ़ना शुरू कर दिया और मार्च के महीने में शहर को घेर लिया। दो हफ़्तों की लड़ाई के बाद ब्रितानी सेना ने शहर पर क़ब्ज़ा कर लिया। परन्तु रानी दामोदर राव के साथ अंग्रेज़ों से बच कर भाग निकलने में सफल हो गयी। रानी झाँसी से भाग कर कालपी पहुँची और तात्या टोपे से मिली।[६]
तात्या टोपे और रानी की संयुक्त सेनाओं ने ग्वालियर के विद्रोही सैनिकों की मदद से ग्वालियर के एक क़िले पर क़ब्ज़ा कर लिया। बाजीराव प्रथम के वंशज अली बहादुर द्वितीय ने भी रानी लक्ष्मीबाई का साथ दिया और रानी लक्ष्मीबाई ने उन्हें राखी भेजी थी इसलिए वह भी इस युद्ध में उनके साथ शामिल हुए। 18 जून 1858 को ग्वालियर के पास कोटा की सराय में ब्रितानी सेना से लड़ते-लड़ते रानी लक्ष्मीबाई की मृत्यु हो गई। लड़ाई की रिपोर्ट में ब्रितानी जनरल ह्यूरोज़ ने टिप्पणी की कि रानी लक्ष्मीबाई अपनी सुन्दरता, चालाकी और दृढ़ता के लिये उल्लेखनीय तो थी ही, विद्रोही नेताओं में सबसे अधिक ख़तरनाक भी थी।[७]
चित्र दीर्घा
सोलापुर, महाराष्ट्र में लक्ष्मीबाई की प्रतिमा
इन्हें भी देखें
झांसी की रानी कविता
सुभद्रा कुमारी चौहान जी ने रानी लक्ष्मीबाई की वीरता से प्रभावित होकर उनके यश का गान करते हुए झांसी की रानी कविता की रचना की है[८]--
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सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
- कविता झाँसी की रानी - अभी उम्र कुल तेइस की थी, मनुज नहीं अवतारी थी; हमको जीवित करने आयी, बन स्वतन्त्रता नारी थी।
साँचा:भारतीय स्वतंत्रता संग्राम साँचा:क्रांतिकारी नारियां
आज के दौर में अब झाँसी नहीं झाँसियों की जरूरत है
महिला सशक्तिकरण की प्रतीक हैं वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई
- ↑ Jhansi Ki Rani Lakshmibai Biography साँचा:Webarchive के अनुसार रानी लक्ष्मीबाई की जन्मतिथि 19 नवम्बर 1835 है
- ↑ २.० २.१ फ़ज़ल, रेहान (2019-01-25). "सिर पर तलवार के वार से शहीद गई थीं रानी लक्ष्मीबाई". BBC News हिंदी. मूल से 27 जनवरी 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2020-06-17.
- ↑ "काशी की विभूतियाँ". टीडिल. मूल (एचटीएम) से 4 अक्टूबर 2009 को पुरालेखित.
- ↑ भारद्वाज, पुलकित. "रानी लक्ष्मीबाई : झांसी की वह तलवार जिसके अंग्रेज भी उतने ही मुरीद थे जितने हम हैं". Satyagrah. मूल से 15 मई 2020 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2020-06-22.
- ↑ "यहां हुईं थीं रानी लक्ष्मीबाई शहीद, अंग्रेज अफसर ने किया था सेल्यूट". Dainik Bhaskar. 2015-11-16. मूल से 22 दिसंबर 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2020-06-22.
- ↑ "मात्र 29 साल में हिला दी थी अंग्रेजी शासन की नींव, जानिए कौन थी वीरांगना". Dainik Jagran. मूल से 18 जून 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2020-06-22.
- ↑ ^ David, Saul (2003), The Indian Mutiny: 1857, Penguin, London p367
- ↑ "कविता कोश". मूल से 13 नवंबर 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 27 मई 2020.
