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रेले व ब्रेस के प्रयोग (साँचा:Lang-en) (1902-1904) का उद्देश्य द्विअपवर्तन सिद्धान्त की सहायता से लम्बाई में संकुचन का प्रायोगिक अध्ययन करना था। यह प्रयोग उन उन प्रारम्भिक प्रयोगों से एक है जो पृथ्वी की आपेक्षिक गति और प्रकाशवाही ईथर का मापन करने के लिए बने तथा इसकी प्रकाश के वेग के लिए मापन शुद्धता v/c की द्वितीय कोटी तक थी। इसके परिणाम नकारात्मक रहे जो लोरेन्ट्स रूपांतरण के विकास के लिए बहुत महत्व रखता है जिसके फलस्वरूप आपेक्षिकता सिद्धांत का निर्माण हुआ।
प्रयोग
माइकलसन मोर्ले प्रयोग से मिले नकारात्मक परिणामों को समझने के लिए जॉर्ज फिट्जगेराल्ड (1889) और हेंड्रिक लारेंज़ (1892) ने संकुचन परिकल्पना का प्रतिपादन किया जिसके अनुसार स्थिर ईथर माध्यम से गुजरने पर वस्तुओं की लम्बाई में संकुचन पैदा होता है।