मेनू टॉगल करें
Toggle personal menu
लॉग-इन नहीं किया है
Your IP address will be publicly visible if you make any edits.

विट्ठलविपुल देव

भारतपीडिया से

विट्ठलविपुल देव स्वामी हरिदास जी के सर्वश्रेष्ठ भक्त है।

परिचय

ये स्वामी हरिदास के मामा के पुत्र थे। विद्वानों के अनुसार ये स्वामी हरिदास से आयु में कुछ बड़े थे तथा ये स्वामी जी के समकालीन हैं। इनका निधन-काल वि ० सं ० १६३२ माना जा सकता है। [१] इनका जन्म कहाँ हुआ यह निश्चित नहीं है लेकिन यह सर्वसम्मत है कि स्वामी हरिदास के जन्म के बाद आप उनके पास राजपुर में ही रहते थे और स्वामी जी के विरक्त होकर वृन्दावन आ जाने पर आप भी वृन्दावन आ गये। आयु में बड़े होने पर भी स्वामी हरिदास का शिष्यत्व स्वीकार किया।[२] ये बाल्यकाल से ही स्वामी जी से प्रभावित थे और उन्हें एक महापुरुष मानते थे। स्वामी जी की अंतर्ध्यान उपरान्त ये गादी पर बैठे किन्तु स्वामी जी के वियोग की भावना इतनी प्रवल थी एक सप्ताह बाद ही इनका निकुंज गमन हो गया।

रचनाएँ

  • चालीस स्फुट पद एवं कवित्त

माधुर्य भक्ति का वर्णन

विट्ठलविपुल देव के उपास्य श्यामा-श्याम परम रसिक हैं। ये नित्य -किशोर सदा विहार में लीन रहते हैं। इनकी वह निकुंज-क्रीड़ा केलि रस-पागी होने पर प्रेम-परक होने के कारण सदा भक्तों का मंगल विधान करती है। विट्ठलविहारी देव ने नित्य विहारी को ही उपास्य स्वीकार किया है ,कुछ लीला परक पदों में उनका नित्य-नव सम्बन्ध सूचित होता है :

मिलि खेलि मोहन सो करि मनभायो।
कुंज बिहारीलाल रसबस बिलसत मेरे तन मन फूलि अपनो कर पायो।।
तुम बिन दुलहिन ए दिन दूलह सघन लता गृह मंडप छायो।
कोकिल मधुपगन परेगी भाँवरी तहाँ श्री विट्ठलविपुल मृदंग बजायो।।

उपास्य -युगल की लीलाओं का गान एवं ध्यान ही इनकी उपासना है। अतः इन्होंने युगल की प्रातःकाल से निशा-पर्यन्त होने वाली सभी लीलाओं का गान अपनी वाणी में किया है। इनमें से वन-विहार ,झूलन, वीणा -वादन-शिक्षा आदि लीलाएं उल्लेखनीय हैं। जिनकी बाँसुरी की तान सुनकर चार,अचर सभी मोहित हो जाते हैं। उन्हीँ विहारीजू को वीणा सिखाती हुई श्यामाजू का यह वर्णन भाव और भाषा दोनों दृष्टियों से सुन्दर है :

प्यारी पियहि सिखावति बीना।
ताल बंध्यान कल्यान मनोहर इत मन देह प्रवीना।।
लेति सम्हारि- सम्हारि सुघरवर नागरि कहति फबीना।
श्री विट्ठलविपुल विनोद बिहारी कौ जानत भेद कवीना।।

बाह्य स्रोत

  • ब्रजभाषा के कृष्ण-काव्य में माधुर्य भक्ति :डॉ रूपनारायण :हिन्दी अनुसन्धान परिषद् दिल्ली विश्वविद्यालय दिल्ली के निमित्त :नवयुग प्रकाशन दिल्ली -७

सन्दर्भ