मेनू टॉगल करें
Toggle personal menu
लॉग-इन नहीं किया है
Your IP address will be publicly visible if you make any edits.

संगीत तथा गणित

भारतपीडिया से

साँचा:आधार

थोड़े भिन्न आवृत्ति वाली दो ध्वनि तरंगो के व्यतिकरण द्वारा उत्पन्न विस्पन्द (beat)

संगीत के सिद्धान्तकार इसे समझने के लिए कभी-कभी गणित का प्रयोग करते हैं। यद्यपि संगीत का कोई ठीक-ठीक गणितीय सिद्धान्त नहीं है किन्तु इसमें कोई सन्देह नहीं है कि संगीत, ध्वनि से बनी है तथा ध्वनि का गणितीय आधार अब सर्वविदित है।

विज्ञान व गणित का चोली दामन सा साथ है। संगीत के सिद्धान्तों को समझाने के लिए, प्राचीन समय से ही हमारे आचार्य व पण्डित, गणित का ही सहारा लेते आ रहे हैं। आधुनिक विज्ञान भी पूर्ण रूप से गणित आधारित है। समय के साथ साथ विज्ञान का विकास हुआ है और विज्ञान के साथ गणित का भी उतना ही विकास हुआ है।

संगीत में गणित का महत्व

व्यवहारिक रूप से सप्तक के 7 स्वर, श्रुति शृंखला की 22 श्रुतियां, संवादी स्वर का 13 व 9 श्रुतियां, आवृत्ति व तार की लम्बाई, ताल व ठेके की मात्राओं के हिसाब आदि के आंकड़े - ये सभी प्रसंग संगीत का गणित ही तो हैं।

संगीत की आत्मा मूल रूप से ध्वनि है, जो भौतिकविज्ञान का एक अंग है। अतः संगीत के चिंतन में विज्ञान स्वतः आ जाता है। भौतिक विज्ञान पूर्णरूप से गणित आधारित है। इसलिए संगीत का विषय, गणित से अछूता नहीं रह सकता है।

साधारणतः संगीत शिक्षा का श्रीगणेश ‘स्वर’ द्वारा किया जाता है और जब विद्यार्थी कुछ समझदार हो जाता है तब उसका ध्यान श्रुति जैसे विषय की ओर जाना शुरू होता है।

सामान्यतः गणित एक शुष्क विषय माना जाता रहा है और इसके विपरीत संगीत का साम्राज्य सब प्रकार से रस परिपूर्ण होता है किन्तु आंकलन संबंधित गुत्थियों को सुलझाने व समझने में, एक मात्र गणित ही सहायक होता है। एक बात तो स्पष्ट है कि स्वरज्ञान अर्जित करने के लिए, गणित की आवश्यकता नहीं पड़ती है।

गणित द्वारा विश्लेषण

वैज्ञानिक विचारधारा के अनुसार सप्तक के प्रत्येक स्वर की तारता यानी आवृत्ति को निर्धारित करने के लिए बल दिया जाता है। इस आवृत्ति का मूल्य, गणित तथा विज्ञान के सिद्धान्तों द्वारा पूरी तरह गुंथा रहता है। प्राचीन समय में यही तथ्य श्रव्यसापेक्ष था। अतः किसी भी प्रकार का प्रयोग या विश्लेषण पूर्णरूप से ऐसे ही श्रवणाधार सूत्रों पर निर्भर करता था। इस सन्दर्भ में भरत मुनि द्वारा प्रस्तुत ‘श्रुति दर्शन विधान’ एक उत्कृष्ट उदाहरण माना जा सकता है।

बाहरी कड़ियाँ