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साढे़साती

भारतपीडिया से

शनि ग्रह कुण्डली में एक भाव में ढा़ई साल तक रहता है। इस प्रकार शनि ग्रह को पूरी कुण्डली का एक चक्र पूरा करने में पूरे तीस वर्ष लग जाते हैं। इस चक्र के दौरान कुण्डली में चन्द्रमा जिस राशि में स्थित होता है उस राशि से या उस भाव से एक भाव पहले शनि का गोचर शनि की साढे़साती के शुरु होने का संदेश देता है।

साढे़साती का अर्थ है - साढे़ सात साल. चन्द्रमा जिस राशि में स्थित होता है उस राशि से एक राशि पहले शनि की साढे़साती का प्रथम चरण आरम्भ हो जाता है। उसमें शनि ढा़ई वर्ष तक रहता है। उसके बाद साढे़साती का द्वितीय चरण शुरु होता है जिसमें शनि का गोचर चन्द्रमा के ऊपर से होता है। यहाँ भी शनि ढा़ई वर्ष तक रहता है। इसके बाद शनि चन्द्रमा से अगली राशि में प्रवेश करता है और यह अंतिम व तृ्तीय चरण होता है। इसमें भी शनि ढा़ई वर्ष तक रहता है। इस प्रकार चन्द्रमा से एक राशि पहले और एक राशि बाद तक शनि का गोचर साढे़साती कहलाता है।

अधिकतर विद्वान परम्परागत तरीके से शनि की साढे़साती का विश्लेषण उपरोक्त तरीके से करते हैं। परन्तु गणितीय विधि से हमारे प्राचीन ग्रंथों में इसका उल्लेख मिलता है। कुण्डली में चन्द्रमा जिस डिग्री पर स्थित होता है उस डिग्री से 45 डिग्री पहले और 45 डिग्री बाद तक शनि का गोचर ही शनि की साढे़साती कहलाता है। यह कुल 90 डिग्री का गोचर है। इस 90 डिग्री को पार करने में पूरे साढे़ सात वर्ष लग जाते हैं।

शनि की ढै़य्या या लघु कल्याणी

शनि एक राशि में पूरे ढा़ई वर्ष तक रहता है। कुण्डली में चन्द्रमा जिस राशि में स्थित होता है उस राशि से चतुर्थ भाव और अष्टम भाव में जब शनि का गोचर होता है तब उसे शनि की ढ़ैय्या कहते हैं। एक राशि में ढा़ई वर्ष रहने के कारण इसे ढ़ैय्या का नाम दिया गया है।

बाहरी कड़ियाँ

आनलाइन साढ़ेसाती परीक्षण साँचा:वैदिक साहित्य