मेनू टॉगल करें
Toggle personal menu
लॉग-इन नहीं किया है
Your IP address will be publicly visible if you make any edits.

सिमोन द बोउआर

भारतपीडिया से
Simone de Beauvoir 1955.jpg

साँचा:Infobox philosopher सिमोन द बोउआर (फ़्रांसीसी: Simone de Beauvoir) (जन्म: ९ जनवरी १९०८ - मृत्यु : १४ अप्रैल १९८६) एक फ़्रांसीसी लेखिका और दार्शनिक हैं। स्त्री उपेक्षिता (फ़्रांसीसी: Le Deuxième Sexe, जून १९४९) जैसी महत्वपूर्ण पुस्तक लिखने वाली सिमोन का जन्म पैरिस में हुआ था। लड़कियों के लिए बने कैथलिक विद्यालय में उनकी आरंभिक शिक्षा हुई। उनका कहना था की स्त्री पैदा नहीं होती, उसे बनाया जाता है। सिमोन का मानना था कि स्त्रियोचित गुण दरअसल समाज व परिवार द्वारा लड़की में भरे जाते हैं, क्योंकि वह भी वैसे ही जन्म लेती है जैसे कि पुरुष और उसमें भी वे सभी क्षमताएं, इच्छाएं, गुण होते हैं जो कि किसी लड़के में। सिमोन का बचपन सुखपूर्वक बीता, लेकिन बाद के वर्षो में अभावग्रस्त जीवन भी उन्होंने जिया। १५ वर्ष की आयु में सिमोन ने निर्णय ले लिया था कि वह एक लेखिका बनेंगी।

दर्शनशास्त्र, राजनीति और सामाजिक मुद्दे उनके पसंदीदा विषय थे। दर्शन की पढ़ाई करने के लिए उन्होंने पैरिस विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया, जहां उनकी भेंट बुद्धिजीवी ज्यां पॉल सा‌र्त्र से हुई। बाद में यह बौद्धिक संबंध आजीवन चला। द सेकंड सेक्स का प्रभा खेतान द्वारा किया गया हिंदी अनुवाद स्त्री उपेक्षिता भी बहुत लोकप्रिय हुआ। १९७० में फ्रांस के स्त्री मुक्ति आंदोलन में सिमोन ने भागीदारी की। स्त्री-अधिकारों सहित तमाम सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों पर सिमोन की भागीदारी समय-समय पर होती रही। १९७३ का समय उनके लिए परेशानियों भरा था। सा‌र्त्र दृष्टिहीन हो गए थे। १९८० में सा‌र्त्र का देहांत हो गया। १९८५-८६ में सिमोन का स्वास्थ्य भी बहुत गिर गया था। निमोनिया या फिर पल्मोनरी एडोमा में खराबी के चलते उनका देहांत हो गया। सा‌र्त्र की कब्र के बगल में ही उन्हें भी दफनाया गया।

आरंभिक जीवन

1908 की 9 जनवरी को सीमोन द बोउआर का जन्म पेरिस के एक मध्यमवर्गीय कैथोलिक परिवार में हुआ। पहली संतान होने के कारण उन्हें माता-पिता का भरपूर स्नेह मिला। 1913 में सीमोन को लड़कियों के एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ने के लिए भेजा गया। दस वर्ष की आयु आते-आते सीमोन ने अपना सर्जक व्यक्तित्व पहचान लिया। घंटों कल्पनालोक या किताबो में खोई रहने वाली इस लड़की ने निश्चय किया कि वह लेखक बनेगी, यही उसकी नियति है, किताबें और केवल किताबें। पिता को अपनी मेधावी बेटी पर गर्व था और माँ उसकी किताबों के प्रति पागलपन से चिन्तित। माँ सबसे अधिक आहत हुई, जब चौदह साल की किशोरी एक दिन एलान कर बैठी कि मैं प्रार्थना नहीं करूंगी, मुझे तुम्हारे यीशु पर विश्वास नहीं।

1925 -26 के दौरान सीमोन ने दर्शन और गणित में स्कूल की परीक्षा जीर्ण की और बाक्कालोरिया की डिग्री हासिल कर आगे पढ़ने के लिये यूपी की सैनत मारी और इस्टीट्यूट क्लिक पेरिस में दाखिला लिया। 1926 में सौरमोन के विश्वविद्यालय में उन्होंने दर्शन और साहित्य का कोर्स शुरू किया। सीमोन उन दिनों अपने कजिन जैक से, जो बड़े धनाढ्य परिवार का लड़का था, प्रेम करती थीं पर जैक ने उन्हें ठुकराया। आहत सीमोन समाज सेवा में रुचि लेने लगी, पर ज्यादा दिन नहीं। नियति कुछ और ही चाहती थी।

सन 1927 में उन्होंने दर्शन की डिग्री ली। 1928 में एकौल नौमाल सुपेरियर में दर्शन में स्नातकोत्तर के लिये दाखिला लिया। उन्हें पहली बार स्वतन्त्रता मिली। घरे के बन्धनों से दूर उन्होंने आजादी की खुली साँस ली। एकौल नौमाल में उनका परिचय अस्तित्ववाद के मसीहा दार्शनिक ज्यां पॉल सार्त्र से हो गया। दोनों मेधावी छात्र थे और बड़े अच्छे नम्बरों से परीक्षा पास की। 21 वर्ष की उम में पहले ही प्रयास में दर्शन में पास होकर प्रथम आने वाली पहली छात्रा थी सीमोन। सार्त्र का यह दुसरा प्रयास था। अब वे प्रोफेसर होने के काबिल थे आपस की दोस्ती प्रेम में परिणत होने लगी। सीमोन को सार्त्र किशोर वय में देखे हुए सपनों के साथी लगे। विवाह और वंश परम्परा की अनिवार्यता के खिलाफ दोनों ने निश्चय किया। सीमोन विवाह को एक जर्जर दहती हुई संस्था मानती थीं।[१]

अपने आखिरी दिनों में वे अकेली, मगर पूरी तरह एक-एक पल काम में जुटी रहीं। अपने एक इण्टरव्यू में वे कहती हैं: मैंने जिन्दगी को प्यार किया, शिद्दत से चाहा, उसका दायित्व सम्हाला, उसको दिशा-निर्देश दिया। यह मेरी जिंदगी है, जो बस, एक बार के लिए मिली है। अब लगता है, मानो मैं अपनी मंजिल की दिशा में आगे बढ़ रही हूं। जो कुछ भी आज कर रही हूँ, वह लेखकीय प्रगति नहीं, बल्कि मेरा जीवन खत्म करती है, मौत मेरे पीछे खड़ी है। 14 अप्रैल, 1986 को दुनिया से यह महान लेखिका अलविदा कहती हैं।

रचनात्मक जीवन

1947 में अपने महान् ग्रंथ ‘द सेकिण्ड सेक्स पर काम शुरू किया। औरत की नियति क्या है? वह गुलाम क्यों है? किसने ये बेड़ियाँ कुलांचे मारती हिरणी के पैरों में पहनाई?  सन 1948 में ‘अमेरिका: डे बाई डे’ का प्रकाशन होता है और ‘ल तौ मोर्दान’ में ‘सेकेंड सेक्स’ के कुछ हिस्से प्रकाशित होते हैं सीमोन अब नियमपूर्वक सुबह का समय अपने लेखन में और शाम का वक्त सार्त्र के साथ बिताने लगीं। अपने युग के बौद्धिक मसीहा ने स्त्री-स्वातंत्रय पर लिखी जानेवाली पुस्तक में पूरी रुचि ली। सन् 1949 में द सेकिण्ड सेक्स’ का प्रकाशन होता है। हजारों की संख्या में स्त्रियों ने उन्हें पत्र लिखे। जिस समय यह पुस्तक प्रकाशित हुई, सीमोन स्वयं को नारीवादी यानी पुरुषों के बीच स्त्री की स्वाभाविक स्थिति या यूं कहिए कि स्त्री के वास्तविक और बुनियादी अधिकारों की समर्थक नहीं मानती थीं, मगर वक्त के साथ उन्हें समझ में आने लगा कि यह आधी दुनिया की गुलामी का सवाल है, जिसमें अमीर-गरीब हर जाति और हर देश की महिला जकड़ी हुई है। कोई स्त्री मुक्त नहीं उन्होंने कभी कुछ विशिष्ट महिलाओं की उपलब्धियों पर ध्यान नहीं दिया और न ही अपने प्रति उनकी कोई गलतफहमी रही। स्त्री की समस्या साम्यवाद से भी नहीं सुलझ सकती। इसी समय सोवियत लेबर कैम्प में हुए अत्याचार दुनिया के अखबारों में छपे । सीमोन ने खुला विरोध किया। पार्टी के प्रति उनकी प्रतिबद्धता पर प्रश्न उठे। इसी मुद्दे पर उन्होंने व्यक्ति बड़ा या पार्टी समस्या पर ‘द मेन्डेरिस’ उपन्यास लिखा । 1951 में एल्ग्रेन से सम्बन्ध हमेशा के लिए, खत्म हो गये। सीमोन अफ्रीका घूमने गई। उन्होंने अपनी पहली गाड़ी खरीदी। [२]

प्रमुख रचनाएँ

  • द सेकेंड सेक्स
  • द मेंडारिंस
  • ऑल मेन आर मोर्टल
  • ऑल सेड एंड डन
  • द ब्लड ऑफ अदर्स
  • द कमिंग ऑफ एज
  • द एथिक्स ऑफ एम्बिगुइटी
  • सी केम टू स्टे
  • ए वेरी ईजी डेथ
  • वेन थिंग्स ऑफ द स्पिरिट कम फर्स्ट
  • विटनेस टू माइ लाइफ
  • वूमन डिस्ट्रॉयड

संदर्भ