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अर्थशास्त्र में सीमान्त से सम्बन्धित संकल्पनाएँ (marginal concepts) वे संकल्पनाएँ हैं जो किसी उत्पाद या सेवा के उपयोग में होने वाले विशिष्ट परिवर्तनों की बात करते हैं, न कि कुल उत्पाद या कुल सेवा की। यह भी कहा जाता है कि सीमान्त सोच ही तर्कसम्मत सोच है। उदाहरण के लिए, पेंसिल निर्माण करने वाली कोई कम्पनी को यह सोचना चाहिए कि उसे एक और पेंसिल बनाना चाहिए या नहीं, न कि यह कि उसे कुल कितनी पेंसिलें बनानी चाहिए।[१][२]
सीमान्त से सम्बन्धित प्रमुख संकल्पनाएँ निम्नलिखित हैं-
- सीमान्त प्रयोग (marginal use)
- सीमान्त उपयोगिता (marginal utility)
- सीमान्त लागत (marginal cost)
- सीमान्त लाभ (marginal benefit)
- प्रतिस्थापन की सीमान्त दर ( marginal rate of substitution )