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हाइबुन जापानी साहित्य में एक गद्य की विधा हैं। इसमें पद्य और गद्य दोनों ही विधाओ का समावेश होता हैं।[१]
हाइबुन एक संक्षिप्त गद्य और हाइकु का सम्मिश्रण है जो कि एक यात्रा विवरण के रूप में लिखा जाता हैं। मात्सुओ बाशो, जो एक संत और हाइकु कवि थे, इस लेखन शैली के आरम्भ कर्ता हैं। उन्होंने अपनी यात्राओं में कई हाइबुन लिखे। समकालीन हाइबुन का प्रयोग व उनकी रचना अभी विकसित हो रही है। सामान्य तौर पर एक हाइबुन में एक या दो पैराग्राफ (छोटे खंड) होते हैं और एक या दो अन्तःस्थापित हाइकु। गद्य का भाग आमतौर पर पहले लिखा जाता है और संक्षिप्त होता है। उसमें किसी दृश्य या किसी विशेष पल का वर्णन बड़ी वर्णनात्मकता से किया जाता है। उसके साथ जुड़े हाइकु का गद्य से सीधा सम्बंध होता है अर्थात् वह गद्य के भावार्थ को पूरी तरह से घेर लेता है और उस उस अनुभव का एक आलेख प्रस्तुत करता है।
गद्य व हाइकु के विपरीत भावों को इकट्ठे पढ़कर पाठक को अधिक प्रभावशाली या गहराई का अनुभव होता है जो केवल गद्य या केवल हाइकु पढ़ने से नहीं मिल पाता। यह आवश्यक है कि कुछ भी सीधी तरह नहीं कहा जाना चाहिए बल्कि उस पल का एक चित्र अंकित कर पढ़ने वाले के सामने इस तरह रखा जाये कि वह अपनी कल्पना से लेखक के अनुभव को समझ सके। वर्तमान काल, गद्य की संक्षिप्तता और कम शब्दों में वाक्य विन्यास का प्रयोग करना आधुनिक हाइबुन की रचना में अधिमान्य है। हाइबुन का लेखक सामान्यता का परिहार करते हुए दृश्य को असंपृक्तता से चित्रित करता है। गद्य एक दैनिकी का भाग हो सकता है। परन्तु बहुत सावधानी व देख-रेख से इसे कई बार पढ़कर देखना चाहिए। एक उत्तम हाइबुन में गद्य का भाग हाइकु के बारे में कुछ नहीं बतलाएगा बल्कि हाइकु उस अनुभव के पारिभाषिक पल को बढ़ावा देगा। हाइकु गद्य के साथ तिरछा सम्बंध रखते हुए गद्य में प्रयोग किये संज्ञा, क्रिया, विशेषण और कर्म का परिहार करता है।[२]
डॉ॰ अंजलि देवधर का एक हाइबुन,