ओम जय जगदीश हरे

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जय जगदीश हरे , इस आरती का प्रकाशन
गीताप्रेस से हुआ। इसके रचनाकार भक्त स्वामी शिवानन्द सरस्वती हैं। वे इसे अपने प्रवचन के बाद गाते थे।

आरती- आरती| श्री विष्णु भगवान् - जय जगदीश हरे, प्रभु! जय जगदीश हरे...

जय जगदीश हरे, प्रभु! जय जगदीश हरे। मायातीत, महेश्वर मन-वच-बुद्धि परे॥ जय.. आदि, अनादि, अगोचर, अविचल, अविनाशी। अतुल, अनन्त, अनामय, अमित, शक्ति-राशि॥ जय.. अमल, अकल, अज, अक्षय, अव्यय, अविकारी। सत-चित्-सुखमय, सुन्दर शिव सत्ताधारी॥ जय.. विधि-हरि-शंकर-गणपति-सूर्य-शक्तिरूपा। विश्व चराचर तुम ही, तुम ही विश्वभूपा॥ जय.. माता-पिता-पितामह-स्वामि-सुहृद्-भर्ता। विश्वोत्पादक पालक रक्षक संहर्ता॥ जय.. साक्षी, शरण, सखा, प्रिय प्रियतम, पूर्ण प्रभो। केवल-काल कलानिधि, कालातीत, विभो॥ जय.. राम-कृष्ण करुणामय, प्रेमामृत-सागर। मन-मोहन मुरलीधर नित-नव नटनागर॥ जय.. सब विधि-हीन, मलिन-मति, हम अति पातकि-जन। प्रभुपद-विमुख अभागी, कलि-कलुषित तन मन॥ जय.. आश्रय-दान दयार्णव! हम सबको दीजै। पाप-ताप हर हरि! सब, निज-जन कर लीजै॥ जय..